मोदी की विदेश नीति का अहम हिस्सा हैं ‘आप्रवासी भारतीय’

Wednesday, Sep 04, 2019 - 12:31 AM (IST)

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस महीने के आखिर में यू.एन. कांफ्रैंस में भाग लेने के लिए अमरीका जा रहे हैं, जहां एक बार फिर वह आप्रवासी भारतीयों को लुभाने की कोशिश करेंगे। ह्यूस्टन में 22 सितम्बर को एक विशाल सामुदायिक कार्यक्रम ‘हाऊडी मोदी’ (टैक्सास का आधिकारिक स्वागत) की योजना है, जिसमें तीसरी बार अमरीकियों को आकर्षित करने के लिए वह 70,000 भारतीय अमरीकियों को सम्बोधित करेंगे।

इस तरह का पहला कार्यक्रम न्यूयार्क में 2014 में हुआ था, जब मैडीसन स्क्वायर गार्डन रैली के दौरान आकर्षक कार्यक्रम में 40 से अधिक अमरीकी सांसद भी उनके साथ थे। उस दौरान ‘मोदी-मोदी’ के नारे लगाती हुई उत्साहित भीड़ को सम्बोधित करते हुए मोदी ने कहा था, ‘‘आप लोग न केवल अमरीका में बल्कि पूरी दुनिया में भारत की सकारात्मक छवि बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हो।’’ अमरीका में उनका दूसरा सम्बोधन 2016 में सिलीकॉन वैली में हुआ था। यह दोनों कार्यक्रम काफी हिट रहे थे। 

शोमैन के तौर पर मोदी की छवि
ह्यूस्टन का यह कार्यक्रम इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि 2019 के आम चुनावों में भारी बहुमत से जीत हासिल करने के बाद अमरीका में यह उनका पहला कार्यक्रम होगा। शोमैन के तौर पर जाने जाते मोदी इस अवसर का इस्तेमाल भारतीय अमरीकियों तथा आप्रवासी भारतीयों से सम्पर्क कायम करने में करेंगे। टैक्सास में 3 लाख भारतीय हैं। दुनिया की ऊर्जा राजधानी के रूप में मशहूर टैक्सास का भारत से विशेष नाता है। मोदी आप्रवासी भारतीयों पर इतना ध्यान क्यों दे रहे हैं? मोदी के लिए आप्रवासी भारतीय उनकी राजनीति और अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। 

पहली बात यह है कि वह आप्रवासी भारतीयों को लामबंद करना चाहते हैं। दूसरा यह कि वह उनके माध्यम से अमरीका में अपनी छवि बनाना चाहते हैं। तीसरा कारण यह है कि इस अवसर का इस्तेमाल वह भारत के व्यावसायिक हितों के लिए करना चाहते हैं क्योंकि आप्रवासी भारतीयों का प्रभाव काफी बढ़ गया है, ऐसे में यह स्वाभाविक है कि मोदी इसका लाभ उठाना चाहते हैं। यहां तक कि गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर भी वह इसका महत्व जानते थे। चौथे, आप्रवासी भारतीयों को सम्बोधित करते समय उनका घरेलू लोकसभा क्षेत्र भी उनका लक्ष्य होता है। चीन के बाद आप्रवासी भारतीयों की संख्या सबसे अधिक है। दुनिया के 205 देशों में 3 करोड़ भारतीय रह रहे हैं। 

आप्रवासी भारतीयों से संवाद 
मोदी ने आप्रवासी भारतीयों से संवाद को अपने विदेशी दौरों का मुख्य हिस्सा बना लिया है। इसके विपरीत भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू उनसे जानबूझ कर कटे हुए रहते थे। यह पी.वी. नरसिम्हा राव के कार्यकाल से पहले तक चलता रहा। नरसिम्हा राव ने उदारीकरण के बाद आप्रवासी भारतीयों को लामबंद करने की जरूरत को महसूस किया। भारतीय अमरीकियों को लुभाने वाले मोदी पहले व्यक्ति नहीं हैं। वाजपेयी के शासनकाल (1998-2004) के दौरान ही यह लॉबी काफी प्रभावशाली थी, जिसके कारण पोखरण परमाणु विस्फोट के बाद अमरीका को प्रतिबंध हटाने पड़े और इस लॉबी ने सन् 2000 में अमरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन को भारत दौरे के लिए राजी किया। 

उत्साहित वाजपेयी ने उस समय अग्रिहोत्री नामक एक आप्रवासी भारतीय को ‘एम्बैसेडर एट लार्ज’ नियुक्त किया था लेकिन अमरीका ने 2 राजदूतों को मान्यता देने से इंकार कर दिया था। वाजपेयी पहले प्रधानमंत्री थे जिन्होंने आप्रवासी भारतीयों के योगदान की सराहना के लिए प्रवासी दिवस का आयोजन किया था। बाद में आप्रवासी भारतीयों के प्रभाव के कारण मनमोहन सिंह के समय 2008 में भारत-अमरीका परमाणु संधि हुई। मोदी के दौरे से जुड़ा ग्लैमर कूटनीति का भी हिस्सा है। भारत की पारम्परिक विदेश नीति में एक बड़ा बदलाव यह आया है कि मोदी ने सभी भारतीय दूतावासों को यह निर्देश दे रखा है कि आप्रवासी भारतीयों की चिंताओं और समस्याओं का त्वरित समाधान करें। दूसरे, उन्होंने आप्रवासी भारतीयों को अपनी विदेश नीति का प्रभावी हिस्सा बना दिया है, जो उनकी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। मोदी ने उनकी प्रशंसा करते हुए उन्हें भारत के राजदूत कहा है। उनका मानना है कि भारतीय अमरीकी अमरीका में सबसे अमीर और शिक्षित आप्रवासी भारतीयों में शामिल हैं। 

राजनीतिक लाभ
तीसरे, चुनाव के दृष्टिकोण से भी मोदी के चुनाव प्रचार में भारतीय अमरीकी काफी मदद करते रहे हैं। उन्होंने न केवल प्रचार के लिए पैसे व तकनीकी सेवाएं उपलब्ध करवाईं बल्कि प्रचार और लॉबिंग में भी सहायता की। इसके अलावा आप्रवासी भारतीयों के साथ एकजुटता दर्शा कर वह अमरीकी राजनीतिक दलों को भी आप्रवासी भारतीयों के वोट बैंक का संदेश देना चाहते हैं। चौथे, ह्यूस्टन में सी.ई.ओज के साथ प्रस्तावित बैठक के माध्यम से वह अमरीकी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से निवेश का आह्वान कर भारत के व्यापारिक हितों को बढ़ावा दे सकते हैं। मोदी ने कभी भी भारतीय हितों को बढ़ावा देने का मौका नहीं गंवाया है। इसके अलावा आप्रवासी भारतीयों से संवाद कायम करने में कांग्रेस के मुकाबले भाजपा हमेशा सक्रिय रही है। आर.एस.एस. और इसके सहयोगियों ने वर्षों से अमरीका और अन्य जगहों पर भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने तथा मंदिर बनाने का कार्य किया है। इसके विपरीत अमरीकी भारतीयों से जुडऩे में कांग्रेस फिसड्डी साबित हुई है।

आप्रवासी भारतीयों को पसंद हैं मोदी
आप्रवासी भारतीय मोदी को क्यों चाहते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे उन पर विश्वास करते हैं और यह उम्मीद करते हैं कि वह भारत को अवसरों की भूमि में परिवर्तित कर देंगे। वे मोदी द्वारा उन्हें दी गई सुविधाओं जैसे कि ओ.सी.आई. कार्ड, वीजा को आसान बनाने, प्रॉक्सी वोटिंग आदि के लिए उनके प्रशंसक हैं। अब वे दोहरी नागरिकता की मांग कर रहे हैं। मोदी के लिए आप्रवासी भारतीय जिम्मेदारी न होकर सम्पत्ति हैं। मोदी के आलोचक उन पर यह आरोप लगाते हैं कि वह विदेश में मोदी ब्रांड को चमका रहे हैं, जबकि मोदी यह अनुभव करते हैं कि उनकी ताकत का इस्तेमाल भारत की तरक्की और उनकी छवि निखारने में किया जाना चाहिए और अब तक वह इन दोनों लक्ष्यों को हासिल करने में कामयाब रहे हैं।-कल्याणी शंकर

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