अभी दूर होता नजर नहीं आ रहा बैंकों का ‘एन.पी.ए.’ संकट

Saturday, Jun 30, 2018 - 02:44 AM (IST)

भारतीय बैंकों की बुरी दशा समाप्त होती नहीं दिख रही। भारतीय रिजर्व बैंक (आर.बी.आई.) द्वारा गत दिवस जारी वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि देश में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की सकल गैर निष्पादित आस्तियां (जी.एन.पी.ए.) मार्च 2018 में 11.6 प्रतिशत के मुकाबले मार्च 2019 में 12.2 प्रतिशत तक पहुंच सकती हैं, जो लगभग 2 दशकों में खराब कर्ज का सर्वाधिक ऊंचा स्तर हो सकता है। इससे एन.पी.ए. संकट को निम्नतम स्तर लाने की आशाएं समाप्त हो गई हैं जिससे बैंकिंग प्रणाली प्रभावित हो रही है और अर्थव्यवस्था में अटके हुए ऋणों में वृद्धि होती जा रही है। 

विशेषकर शीघ्र सुधारात्मक कदम उठाने के ढांचे के अंतर्गत बैंकों का जी.एन.पी.ए. मार्च 2019 में 22.3 प्रतिशत तक बढऩे की आशंका है जो इस मार्च में 21 प्रतिशत था। आर.बी.आई. का मानना है कि इससे घाटे में वृद्धि होगी और बैंकों की पूंजी की स्थिति प्रभावित होगी। दरअसल बैंकिंग प्रणाली की जोखिम आधारित आस्तियों की पूंजी मार्च 2018 में 13.5 प्रतिशत के मुकाबले मार्च 2019 में 12.8 प्रतिशत तक गिरने की सम्भावना है। 

बैंकों की बिगड़ी सेहत अर्थव्यवस्था की स्थिति के विपरीत है, जो सुधार के पथ पर अग्रसर है, जिसने गत तिमाही के दौरान 7.7 प्रतिशत की स्वस्थ विकास दर हासिल की। यद्यपि आर.बी.आई. ने बढ़ते बाहरी जोखिमों को लेकर चेतावनी दी है जो अर्थव्यवस्था तथा बैंकों के लिए एक बड़ा खतरा पैदा कर रहे हैं। यूनाइटिड स्टेट्स फैडरल रिजर्व द्वारा मौद्रिक नीति को कसने तथा अमरीकी सरकार द्वारा उधार लेने में वृद्धि करने से पहले ही भारत जैसे उभर रहे बाजारों से ऋण का बहाव बढ़ गया है। वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि एक अन्य जोखिम है जो रुपए तथा देश के राजकोषीय तथा चालू खाता घाटे के लिए बड़ा खतरा पैदा कर सकता है। ये सभी कारक मिलकर आर्थिक मंदी का कारण बन सकते हैं और पूरी बैंकिंग प्रणाली पर दबाव डाल सकते हैं। 

वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट की एक प्रमुख विशेषता केन्द्रीय बैंक की यह खोज है कि निजी क्षेत्र के बैंकों के मुकाबले सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में धोखाधड़ी की आशंका अधिक है। यह इस वर्ष के शुरू में पंजाब नैशनल बैंक की एक शाखा में एक बड़े घोटाले के सामने आने की रोशनी में महत्वपूर्ण है। आर.बी.आई. का आकलन है कि धोखाधड़ी के 85 प्रतिशत से अधिक  मामले सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से संबंधित हो सकते हैं, यद्यपि कुल ऋण में उनकी हिस्सेदारी मात्र लगभग 65 प्रतिशत है। इसे देखते हुए कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को गम्भीर कार्पोरेट गवर्नैंस मुद्दों का सामना करना पड़ रहा है, जिसका योगदान ऋण देने की ढीली प्रक्रिया में होता है जो एन.पी.ए. संकट के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। 

रिपोर्ट की प्रस्तावना में आर.बी.आई. के डिप्टी गवर्नर विराल आचार्य ने कहा है कि यदि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सरकारी सुधार लागू किए जाते हैं तो इससे उनकी वित्तीय कारगुजारी में सुधार करने में मदद मिलेगी और संचालन जोखिमों में कमी आएगी। फिलहाल आर.बी.आई. को सरकार की बैंकों को पूंजी उपलब्ध करवाने तथा बैंकों की वित्तीय स्थिति सुधारने के लिए बैंकरप्सी कोड लागू करने की योजना की प्रतीक्षा है। ये सुधार निश्चित रूप से मदद करेंगे। मगर जब तक सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिए संचालन स्वायत्तता तथा मालिकाना हक देने की हिम्मत नहीं जुटाती तब तक संकट का समाधान करना अत्यंत कठिन होगा।

Pardeep

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