अधर में लटकी नजर आ रही अब कांग्रेस पार्टी

punjabkesari.in Thursday, Jun 10, 2021 - 04:46 AM (IST)

जैसे ही राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे आए और क्षेत्रीय पाॢटयों ने चुनावों को अपने हक में कर लिया तो कांग्रेस पार्टी अधर में लटकी नजर आई। वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं के पास कोई भी संकेत नहीं है कि वे क्या करें? क्योंकि एक वर्ष में अन्य राज्यों के चुनाव भी होने हैं। 

प्रत्येक राज्य में अलग-अलग गुट एक-दूसरे के खिलाफ एकजुट हुए हैं। प्रत्येक ग्रुप से राज्य के नेता लोग हमेशा ही दिल्ली में हाईकमान की तरफ देखते हैं जो उनका एक ऐसा नेता चुनने में मार्गदर्शन करें जो रणनीति बनाने के लिए प्रत्येक व्यक्ति से विचार-विमर्श करे और निर्णयों पर नियंत्रण करे। वह यह भी चाहते हैं कि हाईकमान राज्य में सत्ताधारी पार्टी द्वारा किए गए वायदों को पूरा करने के लिए समितियां स्थापित करें जिन्हें पार्टी अभी तक पूरा नहीं कर पाई। जैसा कि केंद्र और यहां तक कि राज्यों में भी कई वरिष्ठ नेता हताश होकर रह गए हैं क्योंकि उनको कोई भविष्य नजर नहीं आ रहा जबकि केंद्र  में नेतृत्व उचित समय पर कोई उचित निर्णय लेने के लिए तैयार नहीं हो रहा। कई सशक्त नेताओं के खिलाफ राजनीति से प्रेरित मामले चल रहे हैं। 

यदि हम पंजाब की बात करें तो यहां भी चुनाव एक वर्ष में होने वाले हैं। विरोधी गुट राज्य के मु यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह को चुनौती देने के लिए सिर उठा रहे हैं। पूरे कृषि व्यवसाय ने उन्हें और सशक्त बनाया है तथा वह मुख्यमंत्री के तौर पर वापसी कर सकते हैं। हाईकमान ने उनके मामले को देखने के लिए एक तीन सदस्यीय कमेटी को स्थापित किया है। अमरेन्द्र सिंह ने हमेशा ही पार्टी के लिए कार्य किया है तथा उसके लिए खड़े हुए हैं, जब-जब जरूरत आन पड़ी है। मगर कांग्रेस पार्टी की राजनीति को समझना भ्रमित करने वाली बात है। कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी से मुलाकात करने के लिए कैप्टन अमरेन्द्र सिंह को समय दिया जाना चाहिए था। 

यदि पार्टी में मतभेद हैं तो यकीनी तौर पर आप कुछ खो देंगे। मतभेद करने वाले लोग केंद्रीय हाईकमान द्वारा पार्टी में अंदरुनी कलह के लिए प्रोत्साहित किए गए हैं। हिमाचल प्रदेश की तरह ऐसे कई अन्य राज्य हैं जहां पर चुनाव होने हैं। यहां पर सत्ताधारी भाजपा ने अपना कार्य शुरू कर रखा है, वहीं कांग्रेस में प्रचारक से लेकर शीर्ष तक कोई कार्य नहीं हो रहा। यह देखना दिलचस्प है कि कैसे दुश्मन दोस्त बन जाते हंै और दोस्त दुश्मन बन जाते हैं। ऐसे नए समीकरणों को लेकर लोग भौंचक्के रह जाते हैं। 

कट्टर दुश्मन होने के लिए आपने बहुत-सा समय गंवा दिया है और अब हम एक-दूसरे का समर्थन कर रहे हैं।  हम सभी जानते हैं कि राजनीति में  बिस्तर बांटने वाले लोग बैडशीट की तरह बदल जाते हैं। राज्य स्तर पर एक ऐसे नेता को चुना जाए जो आपकी जीत को यकीनी बना सके। कांग्रेस ने जमीनी आधार पर अपना अस्तित्व खो दिया है। पार्टी से युवा नेताओं का वर्ग मोह भंग होने के कारण टूट रहा है। कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को पहले से ही अपने हाथों से जाने दिया और अब जितिन प्रसाद ने भी पार्टी को अलविदा कह दिया है। 

भाजपा की भी यह कोशिश है कि वह कांग्रेस से टूट कर जा रहे लोगों को अपने में समायोजित करे। सचिन पायलट भी उस कमेटी का इंतजार कर रहे हैं जिसका गठन ल बे समय से किया गया था। इस कमेटी का मुख्यमंत्री के साथ उपजे मतभेदों को सुलझाने के लिए गठन किया गया था। राजनीति सत्ता की चाबी है और उस सत्ता को हथियाने के लिए कुछ लोग किसी भी स्तर पर जा सकते हैं। हमने पश्चिम बंगाल के चुनावों को देखा है जो राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए ‘करो या मरो’ वाली बात थी। लोग ममता के साथ थे और उन्होंने सत्ता को एक बार फिर ममता के हाथों में सौंप दिया मगर दुर्भाग्यवश ममता ने अपनी खुद की सीट खो दी। हालांकि ममता इन चुनावों में जद्दोजहद करती नजर आईं मगर आखिरकार वह एक बड़ी चीज हासिल करने में कामयाब रहीं।

निश्चित तौर पर भाजपा के लिए यह एक  बड़ा आघात था। मगर कांग्रेस वहां पर एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं हो सकी। यदि आपके पास अपने समर्थक नहीं हैं, अपने प्रबंधक नहीं हैं और अनुभवी सहयोगी नहीं हैं तो आपके पास जीतने की कोई उम्मीद नहीं रह जाती। 

चुनाव एक सतत मेहनत वाला कार्य है जिसके लिए नीतियां बनाई जाती हैं और जमीनी आधार पर एक संगठन की कार्यकुशलता की जरूरत पड़ती है। स्थानीय लोग अपने राज्य की जमीनी स्तर की वास्तविकताओं से परिचित होते हैं। इसलिए उन्हें दर-किनार करना उचित नहीं होता। लोकसभा चुनावों से पूर्व कांग्रेस के पास अभी भी वक्त है। नेतृत्व को यह निर्णय लेना है कि राज्य पर कौन शासन करेगा? हाईकमान को एक कमेटी का गठन करना चाहिए जिसके पास आगामी चुनावों के लिए रणनीति बनाने की शक्ति हो। पार्टी में गुटबंदी खत्म होनी चाहिए। 

आज चुनावों में जात और मजहब का मानदंड नहीं रहा। वंशवाद की राजनीति लंबे समय तक नहीं चल सकती। यह हम भली-भांति जानते हैं। राजनीति आज एक शौक या फिर साइड बिजनैस नहीं रह गया। यह लोगों के प्रति संपूर्ण प्रतिबद्धता है। लोगों को अब मूर्ख नहीं बनाया जा सकता। अब कांग्रेस लोगों के लिए एक विकल्प नहीं रह गया। सफल क्षेत्रीय नेता भी प्रभावशाली दिखाई पड़ते हैं।-देवी. एम चेरियन


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