बच्चों को ‘पालने-पोसने’ वाले मां-बाप की आंखों में अब ‘आंसू’

Sunday, Mar 11, 2018 - 01:36 AM (IST)

जिन संतानों को कभी राजदुलारा कह कर मां ने लोरियां गाईं और पिता ने उनके सहारे जगत में अपना नाम रोशन होने के सपने संजोए थे, आज उन्हीं माता-पिता को कलियुगी संतानें खून के आंसू रुला रही हैं। हद यह है कि अनेक संतानें अपने वृद्ध और लाचार हो चुके माता-पिता को घर में रखने के लिए तैयार नहीं हैं। यहां प्रस्तुत हैं संतानों द्वारा परित्यक्त और उत्पीड़ित चंद माता-पिता की दुखद गाथाएं :

उत्तर प्रदेश में लखनऊ के निकट सदरपुर थाना क्षेत्र के नीबा डेहरा निवासी 68 वर्षीय कलावती को उनके 2 बेटों ने एक छप्पर में अकेली बेसहारा छोड़ दिया जिससे वह गांव वालों के रहम पर जीवन बिताने को मजबूर हो गई परंतु अंतत: संतान द्वारा उपेक्षा और भूख एवं बीमारी के कारण 27 जून, 2017 को कलावती की मृत्यु हो गई। वृद्धा के बेटों ने मां के हिस्से की जमीन पहले ही अपने नाम लिखवा ली थी। वैसे तो मरने के बाद ही व्यक्ति को अंतिम संस्कार के लिए श्मशान भूमि में ले जाया जाता है परंतु महाराष्ट्र के अहमद नगर में अपनी विधवा मां लक्ष्मीबाई आहूजा के साथ पत्नी के रोज-रोज के झगड़े से तंग आकर उनका बेटा अपनी मां को घर से निकाल कर धाम श्मशान में रहने के लिए छोड़ आया जहां वह बेसहारा और अकेली पड़ी रहती हैं। उनकी देखभाल और पूछताछ करने वाला कोई नहीं है। लोगों द्वारा दिए जाने वाले भोजन और दान के सहारे ही वह अब अपना पेट भर रही हैं। 

उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के महाराज गंज थाना क्षेत्र के कोल्हुआ गांव की रहने वाली 60 वर्षीय सीतादेवी ने दो समय की रोटी के लिए अपने 3 लखपति बेटों पर मुकद्दमा किया है। सीता देवी के अनुसार उनके बेटे प्रापर्टी का काम करते हैं। उनके पति की मृत्यु 1990 में हो गई थी जिसके बाद प्रापर्टी पर बेटों का नाम चढ़ गया। तीनों अलग-अलग रहते हैं। उन्होंने बारी-बारी से चार-चार महीने मां का भरण-पोषण करने का वादा किया था लेकिन बाद में मुकर गए और अब वह ग्रामीणों की मदद के सहारे अपना पेट पाल रही है। बिहार के मधेपुरा के रहने वाले अर्जुन दास के अनुसार उन्होंने अपने बेटे को पढ़ा-लिखा कर जिंदगी जीने के योग्य बनाया और उसकी शादी भी कर दी परंतु शादी के बाद बेटा उन पर व उनकी बेटी पर अत्याचार करने लगा और अंतत: दोनों को मारपीट करके घर से निकाल दिया जिसके परिणामस्वरूप दोनों सड़क पर रहने के लिए मजबूर हो गए। 

अर्जुन दास ने रोते हुए कहा कि यदि उन्हें यह पता होता कि जिंदगी के आखिरी दिनों में जीने का सहारा बनने की बजाय उनका बेटा उन्हें घर से ही बेघर कर देगा तो वह जन्म लेते ही उसका गला दबा देते। कल्याण की रहने वाली 65 वर्षीय रमा बाई 2 बेटों और एक बेटी की मां होने के बावजूद दुनिया में अकेली हैं। उनके बेटों ने उनकी सारी सम्पत्ति अपने नाम लिखवा ली और उन्हें बीमार हालत में कल्याण की लाल चौकी के निकट छोड़ गए जहां से पुलिस ने उन्हें उठा कर अस्पताल में भर्ती कराया। रमा बाई से पता पूछ कर पुलिस उनके बेटों तक पहुंची और उन्हें रमाबाई की हालत बताई परंतु दोनों बेटों ने उन्हें अपने पास रखने से मना कर दिया। इसके बाद पुलिस रमाबाई की बेटी के पास गई तो उसने भी मां को स्वीकार करने से इंकार कर दिया और बेचारी रमाबाई आज बेसहारा अस्पताल में पड़ी हैं। 

भारत में बुजुर्गों को सम्मानजनक स्थान प्राप्त था, परंतु आज देश में अनेक बुजुर्गों की इस तरह की दयनीय स्थिति परेशान करने वाली एवं भारतीय संस्कृति-संस्कारों के सर्वथा विपरीत है। इसीलिए हम अपने लेखों में यह बार-बार लिखते रहते हैं कि माता-पिता अपनी सम्पत्ति की वसीयत तो (बच्चों के नाम) अवश्य कर दें परंतु उन्हें जायदाद ट्रांसफर न करें। वे बच्चों के साथ रहें परंतु छोटी-छोटी बातों पर उनकी टोका-टाकी न करें। ऐसा करके वे अपने जीवन की संध्या में आने वाली अनेक परेशानियों से बच सकते हैं।—विजय कुमार

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