अब ‘एंग्री यंगमैन’ की छवि को बदलना चाहते हैं राहुल

Tuesday, Jun 30, 2020 - 04:51 AM (IST)

कांग्रेसी  नेता राहुल गांधी पिछले हफ्ते 50 वर्ष के हो चुके हैं तथा कोरोना वायरस महामारी के कारण अपने जन्मदिन को उन्होंने गुपचुप तरीके से मनाया। उनके पिता राजीव गांधी 40 वर्ष की आयु में प्रधानमंत्री बने थे। राहुल भी 2009 में प्रधानमंत्री बन सकते थे, जब कांग्रेस सत्ता में लौटी। यू.पी.ए. के शासन (2004 से लेकर 2014) के 10 वर्षों के दौरान वह कम से कम एक मंत्री तो बन ही सकते थे। मगर नेतृत्व के प्रति उनकी अपनी विचारधारा है। 

2009 में शपथ ग्रहण समारोह के दौरान मैंने उनसे सवाल किया कि वह एक मंत्री क्यों नहीं बने, तब उनका जवाब था ‘‘मैं एक समय में 10 चीजें नहीं करना चाहता, एक समय में केवल एक ही काम करना चाहता हूं।’’ राहुल के वफादार उन्हें पार्टी अध्यक्ष के तौर पर वापस लाने के लिए बेताब हो रहे हैं। कोई नहीं जानता कि उन्होंने पिछले लोकसभा चुनावों में पार्टी की हार के बाद इस्तीफा क्यों दिया या फिर वह कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर वापस क्यों आ रहे हैं। यह कहना उचित है कि अपने पास कोई भी कार्यालय न रखने के बावजूद यह राहुल ही हैं जो कांग्रेस की ओर से फ्रंट पर लड़ रहे हैं। हालांकि सोनिया गांधी को पत्र लिखने के अलावा राजनीतिक नेताओं तथा प्रधानमंत्री के साथ बैठकें कर रहे हैं। 

राहुल गांधी के लौटने के संकेत पिछले हफ्ते की कांग्रेस कार्यकारी समिति (सी.डब्ल्यू.सी.) की बैठक के दौरान स्पष्ट हो गए थे। वहां पर राहुल तथा कांग्रेस के पुराने दिग्गजों के बीच खींचातानी थी। सत्ता का संघर्ष उस समय स्पष्ट दिखा था, जब राहुल ने वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं की इसलिए आलोचना की क्योंकि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ मुहिम में उनका समर्थन नहीं किया। 

राहुल का कहना था कि न तो उन्होंने 2019 की चुनावी मुहिम के दौरान या उससे पहले उनका समर्थन किया है। वरिष्ठ कांग्रेसी मोदी पर निजी हमले का परिणाम जानते हैं क्योंकि उनका मानना है कि नकारात्मक मुहिम काम नहीं करेगी। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जोकि सोनिया गांधी के एक वफादार माने जाते हैं, एकमात्र नेता थे जिन्होंने सी.डब्ल्यू.सी. की बैठक में राहुल का मुद्दा उठाया और उसके बाद ‘राहुल लाओ’ का नारा शुरू हो गया। इनमें से एक नेता ने यह भी सुझाव दिया कि राहुल को वापस लाने के लिए आभासी बैठक आयोजित की जाए। 

एंग्री यंगमैन की पूर्व की छवि के बाद उन्हें अब एक परिपक्व तथा मजबूत नेता के तौर पर पेश किया जाएगा, जो अकेले ही प्रधानमंत्री मोदी का मुकाबला कर सकेंगे। राहुल को एक बुद्धिजीवी के तौर पर पेश किया जा रहा है, जो वैश्विक विशेषज्ञों तथा अर्थशास्त्रियों से अपनी बातचीत बढ़ा रहा है। पूर्व आर.बी.आई. गवर्नर रघुराम राजन, नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी तथा पूर्व अमरीकी कूटनीतिक निकोलस बन्र्ज जैसे विशेषज्ञों के साथ हुई उनकी बातचीत इसी मंतव्य के लिए की गई थी। हाल ही के सप्ताहों में वह मीडिया के साथ बातचीत करने में भी व्यस्त रहे। 

तीसरा यह, राहुल ने अपना टैलीग्राम चैनल पिछले सप्ताह लांच किया। इस चैनल का मुख्य मंतव्य वोटरों के संग सीधे तौर पर जुडऩा था। यह मैसेजिंग एप पर उपलब्ध है और इसके 3500 के करीब सब्सक्राइबर हैं। यह एक नया प्रयोग है, जिससे पब्लिक के साथ सीधे जुडऩे का मौका मिलेगा। हालांकि भाजपा की तुलना में राहुल सोशल मीडिया पर देरी से आए हैं। मगर पिछले 10 वर्षों में वह तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। उनके ट्विटर पर 14.9 मिलियन तथा इंस्टाग्राम पर 1 मिलियन से ज्यादा प्रशंसक हैं। उनके यू-ट्यूब चैनल के 3.1 लाख सब्सक्राइबर हैं। 

उनके नीतिकार यह सोचते हैं कि अब राहुल को एक नए ब्रांड के तौर पर पेश करने का समय है। अब वह युवा नहीं रहे और 50 वर्ष के हो चुके हैं। अब समय है कि उन्हें एक परिपक्व नेता के तौर पर पेश किया जाए जिसके पास विश्व को देखने की नजर हो। हालांकि भाजपा भी उन्हें अब ‘पप्पू’ कहकर नहीं बुलाती है। मगर कभी-कभार राजनीतिक तौर पर राहुल का उपहास जरूर करती है। यह राहुल ही हैं जो चीनी घुसपैठ से मोदी द्वारा निपटने जैसे मामलों को उठा रहे हैं। इसके अलावा वह अर्थव्यवस्था तथा कोविड महामारी जैसे मुद्दे भी कांग्रेस पार्टी की ओर से उठा रहे हैं। राहुल करीब रोजाना ही ट्वीट करते हैं। 

राहुल के नीतिकार चाहेंगे कि वह राजवंश तथा एक विशेषाधिकार प्राप्त अमीर लड़के की छवि को उतार फैंकें जिसको भारत के बारे में कोई जानकारी नहीं। इसके विपरीत वे चाहते हैं कि राहुल मोदी के विकल्प बनें। दूसरा यह कि उन्हें सफल विपक्षी नेता के तौर पर उभरना होगा तथा विपक्ष को एकजुट करना होगा। इस समय सोनिया यह कार्य कर रही हैं। तीसरा जो कांग्रेस के लिए बेहद जरूरी है वह यह कि पार्टी को एक नए कहानीकार की जरूरत है। सोनिया गांधी सफल थीं क्योंकि उन्होंने 2004 में ‘आम आदमी’ का नारा दिया और नारा काम कर गया। 

केवल मोदी को कोसने से वोट हासिल नहीं की जा सकती। राहुल को लोगों को यह यकीन दिलाना होगा कि वह मोदी के विकल्प हो सकते हैं। राहुल को राजनीति में सब कुछ चांदी की प्लेट में परोसा हुआ मिला। उनके पास गांधी परिवार का नाम है। वह युवा हैं तथा एक अच्छे प्रस्तुतकत्र्ता हैं। उनके पास राजनीति में अच्छे मौके हैं और वह पार्टी के शीर्ष स्थान पर पहुंच सकते हैं। अब उन्हें दूसरा मौका नहीं खोना है।-कल्याणी शंकर

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