कैंसर से मोर्चा लेगा अब ‘आयुर्वेद’

punjabkesari.in Tuesday, Feb 11, 2020 - 03:27 AM (IST)

दुनिया भर के वैज्ञानिकों की कैंसर से जंग जारी है। अब भारत की सबसे प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद ने भी कैंसर से जंग का फैसला किया है। इस दिशा में उसे कामयाबी भी मिली है। अब भारत और अमरीका के संस्थान संयुक्त रूप से कैंसर पर शोध और उसके उपचार के उपायों पर काम करेंगे। अमरीका, भारत और यूरोप के विभिन्न शोध संस्थानों ने साबित किया है कि विभिन्न प्रकार के कैंसर में हल्दी बहुत प्रभावी है। कैंसर कोशिकाओं पर प्रयोगशाला के कई अध्ययनों से पता चला है कि हल्दी (कक्र्यूमिन) में एंटी-कैंसर प्रभाव कैंसर की कोशिकाओं को मारने और वृद्धि रोकने में सक्षम है। स्तन कैंसर, आंत्र कैंसर, पेट कैंसर और त्वचा कैंसर की कोशिकाओं पर इसका सबसे अच्छा प्रभाव पड़ता है।

पारम्परिक मैडिसिन अर्थात आयुर्वेद को पूरी दुनिया में लागू करने के लिए अब अमरीका ने भी कवायद शुरू कर दी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के विजन के तहत 4 साल पहले एक अमरीकी दल काशी हिन्दू विश्वविद्यालय आया था। इस दौरे मेें दल ने आयुर्वैदिक पद्धति की जानकारी प्राप्त की। अमरीकी सरकार में स्वास्थ्य मंत्रालय के सहायक सचिव जिम्मी कोल्कर ने बताया कि ओबामा और मोदी के विजन के अनुरूप आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति की प्रक्रियाओं पर काम किया जाएगा खासकर कैंसर के इलाज को लेकर। इसके बाद इस पद्धति को पूरी दुनिया में लागू कराने के लिए कदम बढ़ाए जाएंगे। इसके लिए दोनों देश एक साथ काम करेंगे।

मालूम हो कि आयुष मंत्रालय की ओर से नई दिल्ली में 3 और 4 मार्च को इंडो अमरीकी पारम्परिक औषधियों (आयुर्वेद) से संबंधित 2 दिवसीय कार्यशाला भी हुई थी। इसके पहले अमरीकी राष्ट्रपति के निर्देश पर 9 सदस्यीय टीम ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के आयुर्वेद संकाय का दौरा किया। कैंसर में आयुर्वेद की दवाएं किस तरह काम करती हैं, उसका प्रभाव विदेशों में भी देखा जाएगा। इसके बाद सफलता मिलने पर अन्य देशों में प्रभावी योजना बनाई जाएगी। अमरीकी दल में एन.आई.एस. के कैंसर चीफ  डा. बैरी, डा. जैफरी, डा. बाइडो एस. पौली, डा. इखलाक खान, डा. हसन मुख्तार, डायना ली, अमरीकी सलाहकार डा. लोगनीस जौहरी और आयुष मंत्रालय की डा. श्रुति खंडूरी शामिल थीं। इस दल ने कुलपति प्रो. जी.सी. त्रिपाठी से भी भेंट की। 

आयुर्वेद में अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए 
आयुष मंत्रालय, भारत सरकार ने कैंसर की रोकथाम, रणनीति और उपचार के विकास के लिए आयुर्वेद में अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं। हाल ही में कैंसर निवारण और अनुसंधान संस्थान (एन.आई.सी.पी.आर.) ऑल इंडिया इंस्टीच्यूट आफ मैडीकल साइंसिज, नई दिल्ली और ऑल इंडिया इंस्टीच्यूट आफ आयुर्वेद (ए.आई.आई.ए.), नई दिल्ली के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए हैं। इसका मुख्य उद्देश्य कैंसर की रोकथाम, अनुसंधान और कैंसर देखभाल के क्षेत्रों में सहयोग के लिए आयुष मंत्रालय तथा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के संयुक्त उद्यम के रूप में स्थापित करना है। यह समझौता ज्ञापन चल रही द्विपक्षीय वार्ता को आगे बढ़ाने और राष्ट्रीय कैंसर संस्थान, संयुक्त राज्य अमरीका के सहयोग के लिए रास्ता तैयार करेगा। इस केन्द्र की स्थापना भारत-यू.एस. कार्यशाला में हुई चर्चाओं का एक परिणाम है, जहां स्वास्थ्य और मानव सेवा विभाग (डी.एच.एच. एस.), राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान (एन.आई.एच.), राष्ट्रीय कैंसर संस्थान (एन.सी.आई.) से आमंत्रित अमरीकी प्रतिनिधियों में चर्चा हुई। भारत के प्रमुख विशेषज्ञ कैंसर अनुसंधान और अन्य आशाजनक क्षेत्रों में विशेषज्ञता हासिल कर चुके हैं और भविष्य में सहयोग के लिए एक कार्य योजना पर काम कर रहे हैं। इसका मुख्य उद्देश्य कैंसर की घटनाओं को कम करना है, जिसके लिए आयुर्वेद की शक्तियों के साथ निवारक पहलुओं का पता लगाया जाना है। 

आयुष मंत्रालय कैंसर अनुसंधान के लिए उत्कृष्टता के कुछ केन्द्रों का विकास करेगा
कीमोथैरेपी के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए सहायक चिकित्सा के रूप में आयुर्वेद चिकित्सा को विकसित करने के लिए सहयोगात्मक-अनुसंधान केन्द्रीय आयुर्वैदिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (सी.सी.आर.ए.एस.), अखिल भारतीय चिकित्सा विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली को आयुष क्यू.ओ.एल.-2सी की प्रभावकारिता का मूल्यांकन करने के लिए गैर-मैटास्टेटिक कैंसर के रोगियों में कीमोथैरेपी/ रेडियोथैरेपी अध्ययन पूरा हो चुका है जिनके परिणाम बहुत अच्छे हैं। आयुष मंत्रालय कैंसर अनुसंधान के लिए उत्कृष्टता के कुछ केन्द्रों का विकास करेगा। कीमोथैरेपी, रेडिएशनथैरेपी, बायोलॉजिकल थैरेपी और स्टैम सैल ट्रांसप्लांट से कैंसर का इलाज होता है लेकिन रोगी को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। अपने देश में गरीब मरीज यह कीमत नहीं अदा कर सकते हैं। इसके लिए सरकार रोगियों को कम कीमत पर सुविधाएं मुहैया कराकर उनकी मदद कर सकती है। इसके अलावा आयुर्वैदिक चिकित्सा को बढ़ावा देकर भी कैंसर रोगियों की जान बचाई जा सकती है। 

कोलकाता के जाधवपुर विश्वविद्यालय के नैदानिक अनुसंधान केन्द्र (सी.आर.सी.) के निदेशक डा. टी.के. चटर्जी के अनुसार- डी.एस. रिसर्च सैंटर कोलकाता की पोषक ऊर्जा से तैयार की गई औषधि सर्वपिष्टी के पशुओं पर किए गए परीक्षण के परिणाम उत्साहजनक पाए गए हैं। यदि पशुओं के शरीर पर सर्वपिष्टी का प्रयोग किए जाने के बाद सी.आर.सी. ने उत्साहजनक परिणाम प्राप्त किए हैं तो ऐसे ही परिणाम इसे मानव शरीर पर प्रयोग करने से भी प्राप्त किए जा सकते हैं, जो कैंसर उपचार के इतिहास में युगांतकारी घटना होगी। 

सी.आर.सी. विभिन्न रोगों के लिए दवाइयों का नैदानिक परीक्षण करता है। इसी सिलसिले में उन्होंने सर्वपिष्टी का भी नैदानिक परीक्षण किया था। किसी दवाई की प्रभावकारिता का स्तर सुनिश्चित करने के लिए सामान्यत: दो प्रकार का परीक्षण किया जाता है- पहला, औषधीय (फार्माकोलॉजिकल) परीक्षण और दूसरा विष विद्या संबंधी (टोक्सीकोलॉजिकल) परीक्षण। ये परीक्षण आयातित सफेद चूहों पर किए गए। पशु शरीर में कैंसर कोशिकाओं को प्रविष्ट कराया गया और जब ट्यूमर निर्मित हो गया तब हमने दवा देना शुरू किया। ‘पोषक ऊर्जा’ के परीक्षण की स्थिति में 14 दिनों बाद जो प्रतिक्रियाएं देखी गईं उनमें कोशिकाओं की संख्या स्पष्ट रूप से कम होना शुरू हो गई थी। पशु शरीर में कोई अल्सर पैदा नहीं हुआ। ट्यूमर विकास दर 46 प्रतिशत तक कम हो गई थी और दवा की विषाक्तता लगभग शून्य थी। ऐसे सकारात्मक परिणाम हाल के समय में नहीं देखे गए थे। इस औषधि में कैंसर को रोकने और उससे लडऩे की अपरिमित संभावनाएं हैं। डा. चटर्जी के परीक्षण से यह साबित हो गया है कि यह औषधि कैंसर रोगियों के लिए बहुत कारगर है। इस औषधि का विकास डी.एस. रिसर्च सैंटर के डा. उमाशंकर तिवारी और प्रोफैसर शिवाशंकर त्रिवेदी ने किया था लेकिन दोनों वैज्ञानिक इस समय जीवित नहीं हैं। 

औषधियों के परिणाम-परीक्षण की एक सुनिश्चित वैज्ञानिक पद्धति है। औषधियां प्राय: विषों और ड्रगों से बनती हैं अतएव पहला परीक्षण किया जाता है कि वे स्वास्थ्य और जीवन को खतरे में तो नहीं डाल देंगी। इसलिए डी.एस. रिसर्च सैंटर ने मानवीय भोज्य पदार्थों में सन्निहित पोषक ऊर्जा को प्राप्त करके औषधियां तैयार कीं और वे मानव स्वास्थ्य के लिए सर्वथा अनुकूल थीं। यहां तक कि औषधि के सेवन का माध्यम भी दुग्ध शर्करा को बनाया गया था जो एक मानवीय भोज्य है और स्वास्थ्य पर इसका कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है। सन् 1982 में सैंटर ने कैंसर की औषधि तैयार की। 

ऐसे रोगियों की तलाश की जाए जिन्हें अस्पताली चिकित्सा के धर्मकांटे ने अयोग्य माना
इस औषधि के परीक्षण के लिए प्रारम्भ से ही नीति बनी कि केवल ऐसे रोगियों की तलाश की जाए जिन्हें अस्पताली चिकित्सा के धर्मकांटे ने चिकित्सा के लिए अयोग्य मान कर अंतिम रूप से छोड़ दिया हो। खोजबीन करके इस तरह के रोगियों तक पोषक ऊर्जा की खुराकें पहुंचाई जाने लगीं। उन्हें यह भी कह दिया गया कि अपने कष्टों के लिए और स्वास्थ्य के विकास के लिए जो भी औषधियां वे लेते रहे हैं उन्हें लेते रहें। सैंटर के वैज्ञानिक डा. उमाशंकर तिवारी के निर्देशन में परीक्षण अभियान शुरू हुआ। अन्तत: औषधि की सफलता और उसके प्रभाव-परिणाम की सकारात्मकता, रोगियों के अपने अनुभवों तक सीमित नहीं रही, वह जांच रिपोर्टों से भी प्रमाणित हुई और पारम्परिक चिकित्सा के वर्तमान सूत्रधारों को अक्सर विस्मित भी करती रही। इसका परीक्षण अब तक 4000 से अधिक कैंसर रोगियों पर हो चुका है जिनमें से हजारों लोग आज भी स्वस्थ और खुशहाल जीवन जी रहे हैं। 

इस औषधि के बारे में दुनिया को पता तब चला जब उसने भारतीय मूल के अमरीकी कैंसर वैज्ञानिक के ही कैंसर से ग्रस्त हो जाने पर उन्हें ठीक कर दिया। न्यूयार्क हॉस्पिटल मैडीकल सैंटर आफ क्वींस के रेडिएशन आंकोलॉजी के क्लीनिकल डायरैक्टर तथा वेल मैडीकल कालेज आफ कोरनेल यूनिवर्सिटी के रेडिएशन आंकोलॉजी के एसोसिएट प्रोफैसर डा. सुहृद पारिख ने कैंसर से ठीक होने के बाद इस औषधि पर चर्चा के लिए मुम्बई के जुहू स्थित होटल सी प्रिसेंस में एक समारोह आयोजित किया था। डी.एस. रिसर्च सैंटर के इन वैज्ञानिकों ने इस सफलता की सूचना केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री के साथ ही विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) को भेजी थी। अब तक 926 रोगियों की सूचना डब्ल्यू.एच.ओ. को उनके सभी विवरण और उपचार प्रलेखों के साथ 3 चरणों में भेजी गई। सूची में उन रोगियों के नाम शामिल हैं जो कभी मस्तिष्क, अग्नाशय, यकृत, रक्त, गर्भाशय, स्तन लगभग सभी प्रकारों के कैंसर से पीड़ित रह चुके हैं- और अब सामान्य और स्वस्थ जिंदगी जी रहे हैं। 

इस सैंटर के प्रबंध निदेशक अशोक कुमार त्रिवेदी ने भारत सरकार से सैंटर की औषधि के परिणामों की जांच-पड़ताल कराकर चिकित्सा की वर्तमान धारा में सम्मिलित किए जाने की मंाग की है ताकि लाखों कैंसर रोगियों की जान बचाई जा सके। उन्होंने डब्ल्यू.एच.ओ. से उम्मीद की थी कि यदि वह अपने स्रोतों से इसकी जांच-पड़ताल करा लेता अथवा 10-15 परिणामों के हवाले भी कैंसर पर विजय के रूप में प्रसारित कर देता तो संसार के वैज्ञानिकों, आंकोलॉजिस्टों, चिकित्सकों, प्रबुद्ध लोगों, कैंसर रोगियों तथा उनके हितचिंतकों में आशा और उत्साह का संचार होता और कैंसर पर लगाम लगाने का नया मार्ग प्रशस्त होता। पर ऐसा लगता है कि डब्ल्यू.एच.ओ. नहीं चाहता है कि कैंसर की कोई ऐसी दवा बाजार में आए जो बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को नुक्सान पहुंचाए। इसलिए वह इस मामले को वर्षों से लटकाए हुए है।-निरंकार सिंह 
 


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