‘नोटबंदी’: हर रोज बदलते नियमों ने पैदा की भ्रामक स्थिति

Wednesday, Dec 21, 2016 - 01:03 AM (IST)

8 नवम्बर को नोटबंदी की ऐतिहासिक घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्पष्ट शब्दों में कहा था  कि 1000 और 500 के पुराने करंसी नोट अगले 50 दिनों तक यानी दिसम्बर के अंत तक बदले या जमा करवाए जा सकते हैं।

4 दिन पश्चात वित्त मंत्री अरुण जेतली ने एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया और वास्तव में नागरिकों को कहा कि वे हड़बड़ाएं नहीं तथा लाइनों में खड़े होने की जहमत न उठाएं क्योंकि उनके पास घर में पड़े बंद हो चुके नोट जमा करवाने के लिए काफी समय है। पत्र सूचना कार्यालय ने भी वित्त मंत्री का हवाला देते हुए एक प्रैस विज्ञप्ति जारी की थी जिसमें वह लोगों को कह रहे हैं कि उन्हें कतारों में नहीं लगना चाहिए।

अब सरकार ने एक नई घोषणा कर दी है जिसकी एक ऐसे प्रयास के रूप में व्याख्या की जा रही है कि सरकार अपने ही नागरिकों पर हल्ला बोल रही है। यानी कि पुराने करंसी नोट जमा करवाने पर कई शर्तें लागू कर रही है। इस घोषणा से सरकार पर लोगों के भरोसे को एक नया आघात लगा है।

इससे बुरी बात यह है कि इस घोषणा से बैंक अफसरों को यह अधिकार मिल गया है कि वे 500 से अधिक राशि जमा करवाने वाले लोगों से शपथपत्र लें कि उन्होंने यह पैसा जमा करवाने में विलम्ब क्यों किया। उनके इस जवाब को कम से कम बैंक के 2 अधिकारियों की उपस्थिति में रिकार्ड किया जाएगा कि उन्होंने पहले यह पैसा क्यों जमा नहीं करवाया था।

नए नियम के साथ यह शर्त जुड़ी हुई है कि कोई भी व्यक्ति 30 दिसम्बर तक 5000 रुपए तक की राशि केवल एक बार ही जमा करवा सकता है। यदि छोटी-छोटी जमा राशियां भी मिल कर 5000 से ऊपर चली जाती हैं तो बैंक अधिकारी जमाकत्र्ता से जवाब तलबी कर सकते हैं। उनके उत्तर को रिकार्ड में रखा जाएगा ताकि  लेखाकत्र्ता बाद में आसानी से इस बारे में कोई कार्रवाई कर सकें।

सरकार के इस नवीनतम कदम की मीडिया के वस्तुत:सभी मंचों से  ढेर सारी आलोचना हुई है। सोशल मीडिया पर तो यह सुझाव भी दिया गया है कि सभी जमाकत्र्ताओं को यह लिखित बयान देना चाहिए कि उन्होंने प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री द्वारा दिए गए इन वायदों पर भरोसा किया था कि उन्हें लाइनों में खड़े होने से परहेज करना चाहिए।

सरकार द्वारा इस प्रकार का प्रावधान किए जाने के कदम में से अधिनायकवाद की बू आती है और यह इस तथ्य का नया प्रमाण है कि सरकार अपनी खुशफहमियों के आधार पर कार्रवाइयां करती है। वास्तव में 8 नवम्बर  को  प्रधानमंत्री द्वारा नोटबंदी की घोषणा होने से लेकर अब तक नोटबंदी के नियमों में 59वां संशोधन है।

जहां यह बात बहुत बढिय़ा है कि सरकार  नोटबंदी लागू होने के बाद बहुत सक्रियता से इस प्रक्रिया की मानीटरिंग कर रही है और उससे  स्थिति को ठीक करने के कदम उठाने  की उम्मीद थी, वहीं यह नवीनतम कार्रवाई नागरिकों को अधिक कष्ट पहुंचाने और उन्हें अपराधियों जैसी छवि प्रदान करने वाली सिद्ध हो रही है। आखिर अब सरकार द्वारा पहले तय की गई अंतिम तिथि में केवल 10 दिन बचे हैं और अब तक सरकार बहुत आसानी से उन सभी बड़े आकार की अवैध राशियों का पता लगा सकती थी जिन्हें सफेद धन में बदलने का प्रयास हुआ है।

सरकार की नवीनतम कार्रवाई इस द्वारा अपने लक्ष्यों में अक्सर किए जा रहे बदलाव से पूरी तरह मेल खाती है। जब प्रारंभ में प्रधानमंत्री ने नोटबंदी की घोषणा की थी तो उन्होंने संकेत दिया था कि काले धन को समाप्त करना और भ्रष्टाचार से निपटना ही इस कार्रवाई के सबसे बड़े लक्ष्य हैं।  सरकार ने यह भी संकेत दिया था कि इसे काला धन व्यवस्था में आने की कोई उम्मीद नहीं और यह स्वत: ही बर्बाद हो जाएगा। इसने यह भी उम्मीद व्यक्त की थी कि जब काला धन नहीं होगा या बहुत कम मात्रा में होगा तो भ्रष्टाचार स्वाभाविक ही गायब हो जाएगा।

ये दोनों अवधारणाएं त्रुटिपूर्ण थीं जैसा कि अब स्पष्ट हो चुका है कि  बंद किए गए नोटों में से 85 प्रतिशत से भी अधिक बैंकों के पास आ गए हैं और अगले दिनों में काफी नोट आने की संभावना है। दूसरी बात यह कि विशेषज्ञों ने पहले ही यह इंगित किया था कि काला धन बहुत कम मामलों में नकदी के रूप में रखा जाता है। इसे या तो सोने अथवा ज्यूलरी में बदल दिया जाता है या फिर रियल एस्टेट में निवेश कर दिया जाता है। नहीं तो इसे हवाला नैटवर्क के माध्यम से विदेशों में जमा करवा दिया जाता है।

सरकार की दूसरी अवधारणा भी गलत सिद्ध हुई है कि नोटबंदी से भ्रष्टाचार कम होगा। नए करंसी नोट जारी होने से केवल इतना ही बदलाव आया है कि भ्रष्ट अधिकारी अब नई करंसी में रिश्वत मांग रहे हैं।  इससे भी बड़ी बात यह है कि सरकार ने शायद  भ्रष्ट अधिकारियों की एक नई जमात पैदा कर दी है जिसके सदस्य  बैंकों में काम करते हैं।

हमने बहुत कम मामलों में ऐसा सुना था कि मध्य स्तर के बैंक अधिकारी भ्रष्ट हों लेकिन अब कई संदिग्ध सौदों में इस स्तर के अधिकारियों की संलिप्तता और अनेक गिरफ्तारियों के मद्देजनर  भ्रष्ट अफसरों की एक नई जमात का उदय हुआ है। वैसे कुछ भी हो, लगभग सभी मामलों में ये भ्रष्ट अधिकारी सरकारी अफसर ही हैं जो किसी भी मामले में रिश्वत या अवैध लाभ हासिल करने वालों में शामिल होते हैं। सरकार को अपना अभियान इस प्रकार के भ्रष्ट अधिकारियों की गिरफ्तारी से ही शुरू करना चाहिए था।

उल्लेखनीय है कि काले धन की जड़ें उखाडऩे तथा भ्रष्टाचार को रोकने  के दोनों ही लक्ष्य अब बदल गए हैं। प्रधानमंत्री के भाषणों का विश£ेषण यह दिखलाता है कि नोटबंदी के पीछे  कार्यरत महत्वपूर्ण कारण है कि वे देश को ‘कैशलैस’  या ‘लैस कैश’ वाले 
समाज की ओर ले जा रहे हैं।  अब सारा जोर इस बात पर लग रहा है कि लोग  ‘प्लास्टिक मनी’ (क्रैडिट  कार्ड, डैबिट कार्ड इत्यादि) एवं ई-वालेट (ऑनलाइन बटुआ) प्रयुक्त करें और इसी को नोटबंदी के प्रमुख लक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है।

इन सब बातों ने नोटबंदी के असल उद्देश्यों के  बारे में लोगों में भ्रम की स्थिति और भी बढ़ा दी है। प्रारंभ में  आम जनता ने इसका एक क्रांतिकारी कदम के रूप में स्वागत किया था और  इसी कारण कतारों में घंटों खड़े रहने या अन्य कठिनाइयां झेलने का बहुत कम लोगों ने बुरा मनाया था। फिर भी बार-बार लक्ष्यों को बदलने या घोषणा से पहले अच्छी प्रकार से तैयारी न करने, बार-बार नियमों में परिवर्तन के मद्देनजर आम नागरिकों में अविश्वास की भावना स्पष्ट रूप में दिखने लगी है और ऐसा आभास हो रहा है कि यह जल्दी ही समाप्त होने वाली नहीं। इससे नागरिकों की तकलीफें केवल बढ़ी ही हैं इसलिए नोटबंदी की प्रक्रिया की सम्पूर्ण समीक्षा बेहद जरूरी हो गई है। 

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