अभी स्पष्ट नहीं 2019 का ग्रेट थीम

punjabkesari.in Monday, Jul 23, 2018 - 04:05 AM (IST)

325 के मुकाबले 126 का आंकड़ा अविश्वास का मत है, निश्चित तौर पर विपक्ष के खिलाफ। इन नम्बरों को देखते हुए यह स्पष्ट नहीं था कि मुद्दा लोकसभा में किस ओर जा रहा है और किसी को भी वोट पर हैरानी नहीं थी। शिवसेना (बाद में हमें पता चलेगा कि इसके इरादे क्या हैं) के अतिरिक्त शायद ही कोई ऐसी बात थी जो सदन के भीतर प्रधानमंत्री के लिए गलत हुई हो। सम्भवत: उस समय विपक्ष का वास्तविक इरादा इस प्रयास के माध्यम से 2019 के लिए प्रचार अभियान शुरू करना था। क्या यह सफल रहा? हम इसकी समीक्षा करते हैं। 

यदि उद्देश्य इस समय का इस्तेमाल हमला करने के लिए करना था तो यह एक यादगारी तथा अलग था और ऐसा दिखाई देता था कि जैसे यह एक बड़ी संख्या में लोगों के साथ गूंज पैदा करेगा। मगर फिर उस पल का इस्तेमाल प्रभावपूर्ण तरीके से नहीं किया गया। दोनों पक्षों की तरफ से सब कुछ लगभग एक समान था। मोदी के लिए यह कोई समस्या नहीं थी क्योंकि वह उसी सफल ढांचे पर काम कर रहे थे जिस पर वह गत 6 वर्षों से कर रहे हैं। समस्या विपक्ष के लिए बड़ी थी जो यदि बदलाव चाहता तो उसे रचनात्मक होना चाहिए था और उसके पास इतना अधिक समय नहीं था। 

मेरा इससे तात्पर्य क्या है? 6 वर्ष या उससे कुछ अधिक समय पूर्व इंडिया अगेंस्ट करप्शन तथा फिर निर्भया मामले ने समकालीन राजनीति के खिलाफ एक जन आंदोलन पैदा किया। सरकार भ्रष्ट तथा अप्रभावी थी और नागरिकों की सुरक्षा करने में सक्षम नहीं थी और ऐसा लगता था कि यह पूरी तरह से कुछ लोगों के लिए थी। मोदी ने इस पल में खुद को लांच किया और उसका फायदा उठाया। तब और कम से कम कुछ हद तक अब वह इस ढांचे के बाहर रहे हैं। यदि राजनीति भ्रष्ट है तो वह इसे ठीक करने का प्रयास कर रहे हैं। यदि राजनीति वंशवादी है तो वह इसे तोडऩे का प्रयास कर रहे हैं। यदि सिस्टम कमजोर है तथा आतंक या पाकिस्तान के खिलाफ नरम है तो वह  अपने व्यक्तित्व के बल के माध्यम से इसे बदलेंगे। 

ऐसा बहुत कुछ उनके तेवर बताते हैं। एक व्यक्ति देश को नहीं बदल सकता, विशेषकर भारत जैसे बड़े तथा पेचीदगियों वाले देश को। मगर यदि इस वक्तव्य को तोड़ा गया है तो ऐसा धीरे-धीरे करके किया गया है। बजाय इसके कि दिखावे के लिए खुलकर तमाशा किया जाए। यह एक ऐसी चीज थी कि संसद में उस पल का इस्तेमाल किया जाता और मेरी समझ के अनुसार ऐसा नहीं हुआ। हमारे देश में प्रैस आमतौर पर संसद को इतनी गहराई से कवर नहीं करती। ब्रिटेन में संसदीय छवि बनाने की परम्परा है। इसमें समाचार पत्रों के रिपोर्टर संसद के भीतर हो रही गतिविधियों की समीक्षा राजनीतिज्ञों के व्यक्तित्व के माध्यम से करते हैं। यह बहुरंगी रिपोर्टिंग होती है जिसे पढऩे में बहुत आनंद मिलता है। भारतीय पाठकों को यह नियमित रूप से नहीं मिलता क्योंकि जब संसद कार्य कर रही होती है तो यह बहुत अस्त-व्यस्त होती है। उन दिनों में जब यह वास्तव में काम कर रही होती है, जैसे कि अविश्वास प्रस्ताव के मामले में था, वह पल सहेजने के लिए बहुत बढिय़ा था। क्या ऐसा नहीं था? 

झप्पी के अतिरिक्त कुछ भी ऐसा नहीं था जो मीडिया चर्चा से ले जा सका। झप्पी ने मोदी को भेद्य बना दिया क्योंकि उन्होंने इसकी आशा नहीं की थी और शारीरिक करीबी के आदी नहीं हैं जो उन्होंने खुद शुरू नहीं की। इससे उनके लापरवाह होने का भी पता चला और वह अलिखित कार्रवाइयों में अच्छे नहीं हैं। एक दूसरी चीज जो विपक्ष के लिए एक नई कहानी बनाने के अतिरिक्त संभव थी, वह थी एक ऐसा धागा तैयार करना जो निराश सहयोगियों को बांधता जो भाजपा के खिलाफ तैयार हो रहे हैं। उस पल में ऐसा दिखाई देता था कि उनके पास कुछ ऐसा बहुत कम है जो उन्हें विचारधारा अथवा आकांक्षा के मामले में बांध सके।

कल्पना की अभिव्यक्ति की जरूरत एक कल्पना, जो चाहे धुंधली तथा खुली थी, उसे एक काव्यात्मक तरीके से अभिव्यक्त किया जाता है। यह एक ऐसी चीज है जिसे सर्वश्रेष्ठ राजनीतिज्ञ करने में सक्षम हैं और निश्चित तौर पर 2014 में मोदी ऐसा करने में सक्षम थे। यदि 2019 के चुनावों के लिए प्रभुत्वशाली थीम भाजपा बनाम देश भर में गठबंधनों की एक शृंखला है तो तर्क अथवा उसके लिए जरूरत भाषणों से बाहर नहीं निकल सकती। दूसरी ओर भाजपा विशेष तौर पर गठबंधन बनाने के मामले में अच्छी नहीं है और वह इस तथ्य को स्वीकार करती है। जब से किसी हठी सहयोगी का सामना करना पड़ता है तो यह उसके सामने झुकती नहीं है। 

मैं देख रहा हूं कि किस तरह से शिवसेना तथा भाजपा 1995 से लेकर लगातार सहयोग कर रही हैं, जब उन्होंने महाराष्ट्र में चुनाव जीता था। उस वर्ष से जब भी कभी चुनावों की आहट होती है शिव सेना उसी तरह से कार्य करती है जैसा उसने इस बार किया। इसने एक स्वतंत्र मार्ग चुनने का फैसला किया और भाजपा की खूब आलोचना की जबकि भाजपा तथा इसके नेता चुप रहे। अंत में सारी आग उगलने के बाद सेना निर्णय लेती है कि इसके सर्वश्रेष्ठ हित भाजपा के साथ गठबंधन करके सुरक्षित हैं और इसी के लिए उसने गठजोड़ किया था। नि:संदेह है कि 2019 में भी यही होगा। 

यह स्पष्ट नहीं है कि जब हम 2019 में मतदान के लिए जाएंगे तो क्या उससे पहले हमारी राजनीति में फिर ऐसा झगड़ालू पल होगा अथवा नहीं। भारत में उम्मीदवारों के बीच वाद-विवाद के टैलीविजन पर प्रसारण की परम्परा नहीं है इसलिए प्रधानमंत्री तथा उनका काम हथियाने की कोशिश करने वाले व्यक्ति के पास आमना-सामना करने का कोई अन्य अवसर नहीं है। हमारे पास सबसे बढिय़ा चीज अविश्वास प्रस्ताव है और दुर्भाग्य से वह इस बारे में कोई अधिक स्पष्टता उत्पन्न करने में मददगार नहीं रहा कि 2019 का ‘ग्रेट थीम’ क्या होगा।-आकार पटेल                     


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Pardeep

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