चीन के लिए आसान नहीं ‘बैल्ट एंड रोड’ परियोजना को अमलीजामा पहनाना

Friday, May 19, 2017 - 11:13 PM (IST)

चीन ने अभी-अभी ‘बैल्ट एंड रोड’  पहलकदमी पर जो सम्मेलन अंजाम दिया है वह निश्चय ही इसके लिए एक बहुत बड़ी जीत का आभास देता है। रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने इसमें बहुत उल्लेखनीय भूमिका अदा की है और साथ ही चीनी नेताओं ने संभावी सौदों तथा भारी-भरकम वित्तीय वायदों की पूरी शृंखला की घोषणा की है।

चीन द्वारा खुद के इर्द-गिर्द एक नई वैश्विक व्यवस्था का सृजन करने की बहुत उन्मादपूर्ण चर्चा हो रही है लेकिन इसके धरातल के नीचे एक बहुत असुखद सवाल ज्वालामुखी की तरह सुलग रहा है: ‘‘क्या चीन के लिए इतने भारी-भरकम दावों को साकार कर पाना संभव है?’’ जितनी बड़ी-बड़ी राशियों का उल्लेख हो रहा है, उसके चलते इस प्रकार के संदेह अवांछित महसूस होते हैं। चीन का दावा है कि लगभग 900 अरब डालर कीमत के सौदों के लिए पहले ही बातचीत चल रही है और भविष्य में होने वाला खर्च भी 4 से 8 ट्रिलियन डालर के बीच रह सकता है (1 ट्रिलियन= 1000 अरब) लेकिन यह इस बात पर निर्भर करता है कि चीन सरकार के साथ किस एजैंसी को बातचीत करने का मौका मिलता है? 

खुद इस सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इस परियोजना के लिए 78 अरब डालर अतिरिक्त राशि देने का वायदा किया है जो चीन को एशिया के रास्ते यूरोप से जोडऩे के लिए आधारभूत ढांचा तैयार करने के काम आएगी। दुनिया के अन्य किसी भी देश द्वारा इतने भारी-भरकम वायदे किए जाने की दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं लेकिन चीन के लिए भी अपने अन्य लक्ष्यों को आहत किए बिना इन बड़े-बड़े वायदों को पूरा करना मुश्किल होगा। 

सबसे पहला सवाल तो यह है कि चीन द्वारा अन्य देशों को इस परियोजना के लिए दिए जाने वाले भारी ऋण की करंसी कौन सी होगी? यदि यह ऋण चीन की अपनी करंसी रिन-मिन बी (युआन) में दिया जाता है तो चीन अपनी मुद्रा के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लक्ष्य को अधिक तेजी से हासिल कर सकेगा लेकिन ऐसा करने पर इसकी सरकार को रिन-मिन बी करंसी में होने वाले उच्च स्तरीय सागरपारीय लेन-देन तथा अंतर्राष्ट्रीय मूल्य निर्धारण को भी बर्दाश्त करना होगा। अब तक तो चीन ने इन दोनों ही रुझानों के लिए कोई खास इच्छा नहीं दिखाई। 

इसके अलावा ‘बैल्ट एंड रोड’ के प्रस्तावित मार्ग में आने वाले देशों को चीन के भारी-भरकम ऋण लौटाने के लिए मुद्रा जुटाने हेतु चीन के साथ व्यापार संतुलन अपने पक्ष में करना होगा। ‘ब्लूमबर्ग इंटैलीजैंस’ के अर्थशास्त्री टॉम ऑर्लिक  ने संज्ञान लिया है कि 2016 में ‘बैल्ट एंड रोड’ पट्टी के देशों से चीन नेजितना आयात किया उसकी तुलना में 250 अरब डालर  अधिक निर्यात  किया। यानी कि इन देशों का व्यापारिक घाटा250 अरब डालर है। केवल श्रीलंका और पाकिस्तान का ही चीन के साथ व्यापारिक घाटा क्रमश: 2 और 9अरब डालर है और यदि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चीनी करंसी का बोलबाला हो जाता है तो इन दोनों देशों के लिए चीन का कर्ज अदा करना सैद्धांतिक रूप में असंभव होगा। 

वैसे डालर में भुगतान करना भी इस मर्ज का कोई इलाज नहीं। जब तक चीन इन निवेशों का वित्त पोषण करने के लिए अमरीकी डालर में बांड जारी नहीं करता तब तक इसे अपना ही विदेशी मुद्रा भंडार प्रयुक्त करना पड़ेगा जोकि इस समय लगभग 3 ट्रिलियन डालर है। देखने में यह राशि बहुत बड़ी लगती है लेकिन बाहरी विशेषज्ञों के आकलनों के अनुसार इसमें से लगभग 1 ट्रिलियन राशि तो ऐसी है जो लेन-देन के लिए प्रयुक्त नहीं की जा सकती।  चीन को लगभग 900 मिलियन डालर तो अल्पकालिक बाहरी ऋणों के भुगतान के लिए चाहिएं जबकि 400 से 800 बिलियन डालर की अतिरिक्त राशि चीन से 6 माह तक आयात का बिल भुगताने के लिए वांछित होगी। 

ऐसी स्थिति में केन्द्रीय एशिया में इस परियोजना का आधारभूत ढांचा केवल चीन के पैसे को लम्बे समय तक फंसाने के तुल्य होगा और इस कारण चीन को युआन को संरक्षण देने की जरूरत पड़ेगी। चीन के कर्जदार देशों को भी डालर करंसी में ऋण भुगतान करने के लिए काफी अतिरिक्त राशि जुटानी होगी। स्पष्ट है कि हर देश ऐसा नहीं कर पाएगा और न ही वह अतिरिक्त विदेशी मुद्रा भंडार जमा करने के लिए अपनी करंसी का अवमूल्यन कर सकेगा। 

यह स्पष्ट नहीं कि क्या चीन ऐसे ऋणदाताओं को भारी-भरकम वित्त पोषण करने की वित्तीय क्षमता रखता है जिनकी ऋण विश्वसनीयता ही संदिग्ध है। यदि चीन ऐसा करता है तो इसकी स्वयं की ऋण विश्वसनीयता चौपट हो जाएगी और इसका विदेशी ऋण जो वर्तमान में इसकी जी.डी.पी. के लगभग 12 प्रतिशत के बराबर है, बढ़कर इसके 50 प्रतिशत से भी अधिक हो जाएगा। वैसे इस विकट स्थिति से पार पाने के भी कुछ तरीके हैं। सर्वप्रथम तो चीन इस परियोजना का लाभ उठाकर अपनी करंसी का पूरी तरह उदारीकरण कर सकता है।

यानी कि जिन देशों में यह निवेश करेगा वहां चीन से युआन के मुक्त प्रवाह की अनुमति देनी होगी लेकिन जिस प्रकार चीन के नेता अपनी करंसी की कीमत में गिरावट के विरुद्ध हमेशा सतर्क और संवेदनशील रहते हैं उसके चलते यह संभावना बहुत दूरस्थ दिखाई देतीहै। दूसरे नम्बर पर चीन अन्य देशों एवं बहुआयामी वित्तीय संस्थानों को इस परियोजना के वित्त पोषण में हिस्सेदारी करने के लिए आमंत्रित कर सकता है। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने चीन के परम्परावादी विरोधी जापान की इस परियोजना में संलिप्तता का स्वागत किया है। फिर भी चीनी नेता अतीत में एशियन विकास बैंक (ए.डी.बी.) जैसे अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के साथ निवेश भागीदारी करने से इंकार करते रहे हैं और यहां तक कि अपने कथित दोस्त रूस  के साथ भी निवेश भागीदारी करने से परहेज करते रहे हैं। 

इसी बीच यूरोपीय देशों ने गत सप्ताह हुए सम्मेलन में अंतिम बयान पर हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया था क्योंकि इसमें न तो भ्रष्टाचार के विरुद्ध कोई प्रावधान किया गया था और न ही बेहतर गवर्नैंस के लिए। यहां तक कि अमरीका भी इस पर कोई निर्णायक स्टैंड नहीं ले रहा। जिन परियोजनाओं का भली-भांति वित्तीय विश्लेषण ही नहीं किया गया उनके लिए पश्चिमी देशों और बैंकों को आकर्षित करना बहुत कठिन काम होगा लेकिन फिलहाल यह लगभग यकीनी है कि बैल्ट एंड रोड परियोजनाओं के लिए उपलब्ध धन उस राशि से उल्लेखनीय रूप में कम होगा जिसका विज्ञापनों में उल्लेख किया जा रहा है। यह तो तय है कि इस विषय पर सम्मेलन करना बेशक आसान है लेकिन बैल्ट एंड रोड परियोजना को अमलीजामा पहनाना चीन के लिए नाकों चने चबाने के तुल्य होगा।                   

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