20 प्रतिशत जिला अदालतों में ‘महिला शौचालय ही नहीं’

punjabkesari.in Sunday, Jan 28, 2024 - 05:50 AM (IST)

महिलाओं को सामाजिक जीवन में अपनी निजी बुनियादी जरूरतों के संबंध में अनेक असुविधाओं का सामना करना पड़ रहा है। इनमें स्कूलों, पुलिस थानों व अदालतों में उनके लिए अलग शौचालयों की समस्या भी शामिल है। इसी कारण तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमन्ना ने वर्ष 2021 में अदालतों के बुनियादी ढांचे में अनेक कमियों बारे चिंता जताते हुए कहा था कि ‘‘देश में 26 प्रतिशत अदालतों में महिलाओं के लिए अलग शौचालय नहीं हैं।’’ 

अक्तूबर, 2022 में हापुड़ जिला अदालत की महिला जजों ने अपनी व्यथा व्यक्त करते हुए कहा था कि ‘‘अदालत को वर्कप्लेस नहीं माना जाता, इसलिए यहां महिलाओं के लिए बुनियादी सुविधाएं जैसे कि शौचालय तक नहीं होते।’’ दिसम्बर, 2022 में तत्कालीन केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने भी राज्यसभा में बताया था कि देश की 26 प्रतिशत अदालतों में महिलाओं के लिए अलग शौचालय की व्यवस्था नहीं है। इसी प्रकार 25 मई, 2023 को झारखंड हाईकोर्ट के भव्य भवन के उद्घाटन के अवसर पर मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा,‘‘अदालतों में महिला शौचालय जरूरी हैं क्योंकि ये निचली अदालतों में नहीं हैं।’’ 

और अब 24 जनवरी को सुप्रीमकोर्ट के अंतर्गत काम करने वाले ‘सैंटर फार रिसर्च एंड प्लानिंग’ ने अपनी ताजा रिपोर्ट में अदालतों में महिला शौचालयों की कमी को लेकर कहा है कि देश की लगभग 20 प्रतिशत जिला अदालतों में महिलाओं के लिए अलग शौचालय नहीं हैं। यही नहीं, देश की 68 प्रतिशत अदालतों में महिलाओं के लिए अलग लॉकअप की व्यवस्था भी नहीं है और सिर्फ 13 प्रतिशत जिला अदालतों में ही शिशु देखभाल कक्ष (चाइल्ड केयर रूम) हैं। अदालतों में महिला शौचालयों तथा अलग लॉकअप का न होना चिंताजनक है, जिससे महिलाओं को भारी असुविधा का सामना करना पड़ रहा है। अत: सरकार को इस ओर तुरंत ध्यान देना चाहिए।—विजय कुमार


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