किसी भी पार्टी को भ्रष्टाचार के समूल खात्मे से सरोकार नहीं

punjabkesari.in Saturday, Mar 18, 2023 - 06:05 AM (IST)

विपक्षी दलों के नेताओं ने भ्रष्टाचार के कलंक को मिटाने के बजाय प्रवर्तन निदेशालय (ई.डी.) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सी.बी.आई.) के दुरुपयोग को रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखे गए पत्र ने यह साबित कर दिया कि भ्रष्टाचार के समूल खात्मे से किसी का सरोकार नहीं है। देश कैसे भ्रष्टाचार से मुक्त हो, इसकी विपक्षी दलों को चिंता नहीं है। इसका सुझाव या वैकल्पिक समाधान पत्र में नहीं सुझाया गया। इसके साथ ही आगामी लोकसभा चुनाव में विपक्षी एकता की बात कल्पना रह गई है।

केंद्रीय जांच एजैंसियों के विरुद्ध चलाई विपक्षी मुहिम से कांग्रेस और वामदलों ने कन्नी काट ली। कांग्रेस की नाराजगी की वजह यह है कि जब सोनिया गांधी और उनके दामाद राबर्ट वाड्रा के खिलाफ कार्रवाई की गई तब एक भी विपक्षी पार्टी साथ नहीं आई। किसी विपक्षी दल के नेता ने इसे गलत बताकर विरोध जाहिर नहीं किया। विपक्षी नेताओं ने पत्र में राज्यपाल और राज्य सरकारों के बीच हो रहे विवादों का भी उल्लेख किया है। पत्र में कहा गया, ‘‘देश भर में राज्यपालों के कार्यालय संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन कर रहे हैं और अक्सर राज्य के शासन में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं।

वे जानबूझकर लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई राज्य सरकारों को कमजोर कर रहे हैं। चाहे वो तमिलनाडु, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, पंजाब, तेलंगाना के राज्यपाल हों या दिल्ली के उपराज्यपाल हों। राज्यपाल केंद्र और राज्यों के बीच दरार की वजह बन रहे हैं। विपक्षी दलों का यह पत्र दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के खिलाफ शराब घोटाले में सी.बी.आई. द्वारा की गई कार्रवाई के संदर्भ में लिखा गया है। इस पत्र के सूत्रधार तेलंगाना के मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव रहे हैं।

राव की बेटी के. कविता का नाम भी शराब घोटाले में है। ई.डी. कविता से पूछताछ के लिए सम्मन जारी कर चुकी है। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री राव सरकारी खजाने से साढ़े पांच करोड़ का सोना तिरुपति बालाजी के मंदिर में चढ़ाने को लेकर विवादों में रहे हैं। आश्चर्य की बात यह है कि आप सहित विपक्षी दल सी.बी.आई. की कार्रवाई को गलत ठहरा रहे हैं, किन्तु अधीनस्थ अदालत ने इस मामले में सिसोदिया को जमानत देने से इंकार कर दिया।

विपक्षी दलों का आरोप है कि दोनों जांच एजैंसियां गैर भाजपा दलों की सरकारों के खिलाफ छापे की कार्रवाई कर रही हैं। ई.डी. और सी.बी.आई. ने क्षेत्रीय दलों के नेताओं और मंत्रियों के खिलाफ वित्तीय अनियमितता और भ्रष्टाचार को लेकर कार्रवाई की है। इनमें कांग्रेस, डी.एम.के., तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आर.जे.डी. और तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव की पार्टी भारत राष्ट्र समिति सहित अन्य पार्टियां शामिल हैं। इनमें से कई सालों से जेल में बंद लालू यादव अभी तक चारा घोटाले में अपनी जमानत तक नहीं करवा पाए हैं। यादव पर रेल मंत्री रहते किसानों की जमीन के एवज में रेलवे में नौकरी दिलाने के मामले में सी.बी.आई. अलग से कार्रवाई कर रही है।

भ्रष्टाचार के ऐसे पारदर्शी मामलों में विपक्षी दलों के नेता चुप्पी साध जाते हैं। ई.डी. और सी.बी.आई. को भी इस बात की ङ्क्षचता रहती है कि बगैर पर्याप्त सबूत के छापे की कार्रवाई के बाद अदालत ने प्रतिकूल टिप्पणी कर दी या तत्काल जमानत मंजूर कर ली तो केंद्र की भाजपा सरकार पर उंगलियां उठने लगेंगी। ऐसे में विपक्षी दलों की बदनीयती से की गई कार्रवाई के आरोपों को बल मिलेगा। देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण संवैधानिक स्तंभ अदालत हैं।

विपक्षी दलों को चाहिए था कि प्रधानमंत्री के बजाय ई.डी. और सी.बी.आई. की कार्रवाई के मामलों को संयुक्त रूप से सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते। इसी तरह यदि राज्यपालों के संविधान से इतर हस्तक्षेप करने के मुद्दे को भी अदालत से तय कराया जा सकता है। यदि मामला सुप्रीम कोर्ट जाता तो कम से कम किसी तरह के पक्षपात की उम्मीद नहीं की जा सकती। विपक्षी दलों के नेताओं का यह भी आरोप है भाजपा सरकार की वजह से देश की आजादी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खतरे में है।

ऐसे में जब मुद्दा संविधान निहित अधिकारों को कानूनी तरीके से बाधित करने का है तो निश्चित तौर पर सुप्रीम कोर्ट इस मामले में गंभीरता से पेश आता। इसके बावजूद अदालत में न जाकर प्रधानमंत्री को पत्र लिखना चोर की दाढ़ी में तिनके वाली कहावत को चरितार्थ करता है। सुप्रीम कोर्ट के बजाय प्रधानमंत्री को पत्र लिखना सिर्फ सहानुभूति बटोरना ही कहा जाएगा। इसे सिर्फ चुनावी स्टंट माना जाएगा।

आश्चर्य की बात यह है कि एक तरफ विपक्ष भाजपा से देश को खतरे में बता रहा है, किन्तु इस खतरे से बचाने के लिए एकजुट नहीं हो पा रहा है। कांग्रेस और वाम दलों का प्रधानमंत्री को लिखे पत्र से दूर रहने से अंदाजा लगाया जा सकता है कि आगामी चुनाव में विपक्षी एकता के मंसूबे कामयाब नहीं होंगे। वैसे भी कांग्रेस को शामिल किए बगैर विपक्षी दलों की एकता की बात बेमानी रहेगी। कांग्रेस एकमात्र पार्टी है जिसका देश के हर राज्य में संगठन है। इसके विपरीत अन्य दल सिर्फ एक या दो राज्यों तक सिमटे हुए हैं। गठबंधन की पहली शर्त ही संयुक्त उम्मीदवार होती है।

यह शर्त कांग्रेस के बगैर पूरी होना संभव नहीं है। कोई भी क्षेत्रीय दल यह कभी नहीं चाहेगा कि जहां उसका प्रभाव है, वहां कांग्रेस से सीटों को लेकर समझौता किया जाए। कांग्रेस को लेकर विपक्षी दलों की हालत न निगलने वाली न उगलने वाली जैसी है। भाजपा विपक्षी दलों की इसी ऊहापोह की हालत का राजनीति फायदा उठा रही है। विपक्षी दलों की मौजूदा हालत से जाहिर है कि मुद्दा चाहे भ्रष्टाचार का हो या आगामी चुनाव में भाजपा से निपटने का, निहित स्वार्थों के चलते इनमें चुनावी गठबंधन संभव नहीं है। -योगेन्द्र योगी


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