कोई भी धर्म अथवा धार्मिक समूह अन्य को समाप्त नहीं कर सकता

punjabkesari.in Sunday, Sep 26, 2021 - 04:57 AM (IST)

मैंने  इतिहास से एक पृष्ठ पढ़ा। धर्मयुद्धों की शुरूआत 11वीं शताब्दी के अंत के करीब हुई थी। ऐसा माना जाता है कि ये युद्ध 1095 तथा 1291 के बीच लड़े गए। इतिहास में दर्ज है कि इनका आयोजन यूरोपियन ईसाइयों द्वारा लातीनी चर्च के सहयोग से इस्लाम के विस्तार को रोकने, मुसलमानों की वृद्धि पर अंकुश लगाने (फिलिस्तीन, सीरिया, मिस्र में) तथा पूर्वी भू-मध्य सागर में पवित्र जमीन को वापस लेने के लिए किया गया था। युद्धों के बावजूद ईसाई तथा इस्लाम धर्म आज तक अस्तित्व में है जिनके करोड़ों अनुयायी हैं। अधिकतर सहिष्णु तथा शांतिपूर्ण हैं, कुछ योद्धा हैं। यूरोप मुख्यत: ईसाई  है, फिलिस्तीन, सीरिया तथा कुछ अन्य इलाके जिन पर युद्ध लड़े गए, मुख्य रूप से मुस्लिम राष्ट्र हैं। कहानी की शिक्षा यह है कि कोई भी धर्म अथवा धार्मिक समूह अन्य को समाप्त नहीं कर सकता। 

जेहाद क्या है 
जेहाद शब्द इन दिनों प्रचलन में है। इस्लाम में जेहाद, ब्रिटैनिका के अनुसार मुख्य रूप से उस चीज को प्रोत्साहित करने के लिए मानवीय संघर्ष है जो सही है तथा जो गलत है उसे रोकने के लिए। आधुनिक काल में यद्यपि यह ङ्क्षहसक अभियानों का पर्याय बन गया है। 
लव जेहाद एक ऐसा दानव था जिसकी खोज हिंदू कट्टरवादियों ने युवा पुरुषों तथा महिलाओं को आतंकित करने के लिए की। नारकोटिक जेहाद एक नया दानव है तथा यह मुझे तथा लाखों भारतीयों को दुख देता है। जहां ‘लव’ तथा ‘नारकोटिक्स’ वास्तविक हैं। शब्द जेहाद को प्रेम (एक प्राकृतिक मानवीय भावना) तथा नारकोटिक्स (दर्दनाशक तथा नशे की दवा) के साथ जोडऩा संकुचित मानसिकता को दर्शाता है। 

इरादा स्पष्ट है। यह एक ओर एक धर्म (हिंदू या ईसाई) तथा दूसरी ओर इस्लाम के मानने वालों के बीच साम्प्रदायिक झगड़े तथा अविश्वास भड़काने के लिए है। उन्मादी लोगों के लिए इस्लाम ‘अन्य’ तथा मुसलमान ‘अन्य’ लोग हैं। एक धर्मनिरपेक्ष देश को आवश्यक तौर पर ऐसी धर्मांधता  को रोकना चाहिए। चाहे यह शब्दों में अभिव्यक्त की गई हो या कार्यों से अथवा भेदभाव के अन्य तरीकों से। 

कोई सबूत नहीं
इस बात का कोई सबूत नहीं है कि इस्लाम भारत में ‘विस्तारवादी’ है। जून 2021 में प्रकाशित पी.ई.डब्ल्यू. सर्वेक्षण ने कई मिथकों तथा झूठों का पर्दाफाश किया है। भारत की धार्मिक बनावट 1951 तथा 2011 के बीच काफी हद तक स्थिर रही। मुसलमानों के अनुपात में हल्की-सी वृद्धि हुई जिसका कारण प्रवास था और इसलिए भी कि मुसलमानों में उर्वरता दर अधिक थी। हालांकि यह 4.4 (1992) के मुकाबले बड़ी तेजी से गिर कर 2.6 (215) रह गई जो हिंदू जनसंख्या के बीच उर्वरता दर से जरा-सी अधिक है।

फिर भी 2050 तक हिंदू जनसंख्या का 77 प्रतिशत (1.30 अरब) बनाएंगे। पी.ई.डल्ब्यू. सर्वेक्षण पर प्रतिक्रिया देने वालों में से 81.6 प्रतिशत ने कहा कि उनका पालन-पोषण हिंदू के तौर पर हुआ है तथा 81.7 प्रतिशत वर्तमान में अपनी पहचान हिंदू बताते हैं; 2.3 प्रतिशत ने कहा कि उनका पालन-पोषण ईसाई के तौर पर हुआ तथा 2.6 प्रतिशत वर्तमान में अपनी पहचान ईसाई बताते हैं। बड़े पैमाने पर इस्लाम में धर्मांतरण एक झूठ है।कोई हैरानी की बात नहीं कि हिंदू कट्टरवादियों को बिशप ऑफ पाला का समर्थन है। दोनों ‘अन्य’ को निशाना बनाते हैं अर्थात मुसलमान। हमें अवश्य याद रखना चाहिए कि ऐसे भी अवसर आए जब ङ्क्षहदू कट्टरवादी ईसाइयों के साथ ‘अन्य’ की तरह व्यवहार करते थे। लोगों के किसी भी वर्ग के लिए ‘अन्य’ का विचार स्वीकार्य है। 

मेरा स्कूल का अनुभव
मैं ईसाई मिशनरियों द्वारा संचालित एक स्कूल में पढ़ा हूं। उसमें अधिकतर छात्र समाज के प्रत्येक वर्ग से ङ्क्षहदू थे। इसमें एक छोटी संख्या ईसाइयों की थी तथा न के बराबर मुसलमान थे। प्रत्येक कक्षा को कई सैक्शनों में बांटा गया था लेकिन एक क्लास लीडर होता था जिसका चुनाव हैडमास्टर द्वारा किया जाता था, प्रसिद्ध कुरुविला जैकब। जिन पांच वर्षों में मैं कक्षा 6 से 10 तक पढ़ा, क्लास लीडर ए.के. मूसा था, एक उल्लासपूर्ण, मित्रवत लेकिन औसत विद्यार्थी। 

कक्षा 11, अंतिम वर्ष में क्लास लीडर अपने आप स्कूली छात्रों का नेता बन गया। हैडमास्टर एक ऐसे छात्र को चाहते थे जो लम्बा तथा प्रभावशाली हो और जो स्कूल समारोहों तथा वाॢषक दिवस पर धाराप्रवाह अंग्रेजी बोल सके। उन्होंने किसे चुना? उन्होंने हारून मोहम्मद को नामांकित किया। किसी भी विद्यार्थी ने, और निश्चित तौर पर हिंदू तथा ईसाई विद्यार्थियों ने नहीं सोचा कि कुछ असामान्य हुआ। शब्द ‘खुशामद’ के बारे में हमें बिल्कुल पता नहीं था।  मुझे खुशी है कि मुख्यमंत्री पिनाराईविजयन ने बिशप को दंगा कानून पढ़ाया है मुझे और भी अधिक खुशी है कि विपक्ष के नेता वी.डी. सथीसन ने मुख्यमंत्री के इस वक्तव्य का समर्थन किया है कि सरकार ‘ऐसे लोगों को नहीं बख्शेगी जो ऐसी गलत धारणाओं का प्रचार करते हैं।

जो शरारतपूर्ण तरीके से नारकोटिक जेहाद की बात करते हैं उन्हें 3000 किलो हैरोइन (अर्थात 3 टन) की अप्रत्याशित खेप पर धावा बोलना चाहिए जिसे अधिकारियों ने उस वक्त पकड़ा जब गुजरात में एक बंदरगाह से उसका ‘निर्यात’ करने का प्रयास हो रहा था। मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि कोई भी व्यक्ति इतनी बड़ी मात्रा में ‘आयात’ करने की हिम्मत नहीं कर सकता जब तक कि उसे (एक जोड़े, मुसलमान नहीं, को गिरफ्तार किया गया है) किसी उच्च स्तरीय अधिकारी का संरक्षण प्राप्त न हो। प्रधानमंत्री तथा गृहमंत्री को जेहाद, लव अथवा नारकोटिक्स की बात को निरुत्साहित करना चाहिए। उन्हें 3000 किलो हैरोइन पकड़े जाने पर भी टिप्पणी करनी चाहिए। ये वे मुद्दे हैं जिनका देश की आंतरिक सुरक्षा तथा सामाजिक सद्भाव पर गंभीर असर पड़ता है।-पी. चिदम्बरम


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