रहने को घर नहीं, सोने को बिस्तर नहीं

Sunday, Jan 26, 2020 - 04:00 AM (IST)

इस बात को 6 माह बीते चुके हैं कि स्कलैशपुर तालुका की 16 वर्षीय रोजी तथा उसकी छोटी बहन शीला एक अधढहे सरकारी ढांचे में रह रही हैं। यहां पर न तो बिजली है, न बिस्तर और न ही घर के आगे दरवाजा। टूटे फर्श पर चारों ओर पत्थर बिखरे हुए हैं। इन दोनों बहनों ने 10 वर्ष पूर्व अपनी मां को खो दिया और उनका पिता चंद्रू जो कि एक दिहाड़ीदार मजदूर है, उन्हें देखने कभी-कभार ही आता है। वह कभी-कभी इनको थोड़ा-बहुत पैसा दे देता है। गांववासियों का कहना है कि इन बच्चियों के प्रति वे लोग चिंतित हैं। इनका पालन-पोषण स्थानीय लोगों के ऊपर निर्भर है तथा उनके सहारे ही ये जीवित हैं। 

दोनों बहनें कर्नाटका पब्लिक स्कूल में पढ़ती हैं। रोजी 10वीं क्लास में तथा शीला 6वीं में पढ़ती है। स्कूल के सहायक टीचर मल्लिकार्जुन सज्जन का कहना है कि दोनों ही पढ़ाई में अच्छी हैं। जब कभी भी इनको जरूरत पड़ती है हम आगे आते हैं। हालांकि दोनों को रहने के लिए एक उचित स्थान चाहिए। शीला को हृदय से संबंधित बीमारी है और उसकी सर्जरी होनी है। स्कूल स्टाफ ने इलाज के लिए कुछ पैसा इकट्ठा किया है। रोजी का कहना है कि परिवार के पास राशन कार्ड तो है मगर वह इसका इस्तेमाल नहीं कर सकती क्योंकि उसके पिता के पास आधार कार्ड नहीं है। 

रोजी का कहना है कि हमें घर चाहिए, वे हॉस्टल में नहीं जाना चाहतीं क्योंकि इससे वे अपने पिता से दूर हो जाएंगी। वे आगे पढऩा चाहती हैं और उसके बाद कोई नौकरी करना चाहती हैं। शीला की सर्जरी होनी है तथा गांववासियों ने तालुका प्रशासन से मदद मांगी है ताकि वे दोनों बहनें एक अच्छे से स्थान पर रह सकें और आगे पढ़ सकें। स्कलैशपुर सब डिवीजन के सहायक आयुक्त गिरीश नंदन का कहना है कि महिला तथा बाल विकास विभाग के अधिकारी बच्चियों के रहने के स्थान की यात्रा करें तथा उनके बारे में जानकारी जुटाएं। 

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