जश्न नहीं, हालात पर चिंतन, मनन और मंथन की दरकार

punjabkesari.in Wednesday, Nov 01, 2023 - 05:53 AM (IST)

हरियाणा आज अपनी स्थापना की 58वीं वर्षगांठ मना रहा है। हरियाणा दिवस पर आयोजित तमाम सरकारी व गैर-सरकारी आयोजन रस्म अदायगी के तौर पर एक औपचारिकता बन कर रह गए, जबकि प्रदेश के पिछले 9 साल के हालातों के मद्देनजर जश्न की बजाय गंभीर चिंतन-मनन और मंथन करने की जरूरत है कि कैसे इनसे उबरा जाए, कैसे प्रदेश में अमन-चैन बहाल हो। ‘अंत्योदय’ का सपना तभी साकार होगा, जब हर बेरोजगार को रोजगार मिले, हर हाथ हुनर का हथियार हो, महंगाई की मार में भी हर मुंह में निवाला हो, हर जच्चा-बच्चा निरोग हो। 

जश्न इसलिए नहीं क्योंकि जिस धरा से दुनिया को शांति और भाईचारे का संदेश गया, वह आज नशा, अपराध, नफरत और ङ्क्षहसा से ग्रस्त है। पिछले 9 वर्षों में बरवाला, रोहतक, मुरथल, पंचकूला और हाल ही में नूंह में हुई हिंसक घटनाओं ने सरकार की कलई खोल दी है। बेखौफ अपराधियों के आगे कानून-व्यवस्था घुटनों पर है। हत्या, बलात्कार लूट-खसोट, छीना-झपटी, अपहरण, फिरौती की घटनाएं चरम पर हैं। असुरक्षा और अशांति के माहौल में भला कैसा जश्न? 

यह फख्र से सीना चौड़ा करने की बात नहीं है कि तीन लाख करोड़ रुपए के कर्ज के बोझ तले दबे हरियाणा में एक नवजात भी अपने सिर 6 लाख रुपए का कर्ज लेकर पैदा हुआ है। कर्ज लेकर घी पीने की नीति पर कर्ज उतारने के लिए भी कर्ज उठा रही सरकार क्या अनजान है कि हरियाणा की संस्कृति पगड़ी किसी दूसरे के पैरों में धरकर घी पीने वालों की नहीं है। कर्ज लेकर विकास का तर्क गले नहीं उतरता। इन हालात में कर्ज लेकर व्यवस्था चलाना आने वाली पीढिय़ों को और अधिक टैक्स के बोझ तले दबाने की तैयारी है। आने वाली पीढिय़ों को बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा, कुशलता, रोजगार के अवसर विरासत में देने की बजाय कर्ज ग्रस्त बीमारू राज्य भला कैसे सुखद व सुरक्षित भविष्य दे पाएगा? गौरवान्वित करने वाली व्यवस्था हमारी आने वाली पीढ़ी को विरासत में मिले, इसके लिए अभी से तैयारी भी वैसी ही करनी होगी। 

क्या आज के दिन हम इस बात का अभिमान करें कि हमारे बेरोजगार युवा अपने पुरखों के खून-पसीने से सींचे खेत-खलिहान बेचकर छोटी-मोटी नौकरी के लिए विदेशों में पलायन कर रहे हैं। बेरोजगारी में पहले नंबर पर प्रदेश के युवा अपराध और नशे की दुनिया में भटक गए हैं। सरकारी नौकरियों में 2 लाख से अधिक पद खाली हैं। लाखों बेरोजगारों की पथराई आंखें बेसब्री से इंतजार कर रही हैं कि सरकारी भर्तियां कब खुलेंगी। स्कूल, अस्पताल, दफ्तर, कचहरी खाली होने के कगार पर हैं। और तो और, घर भी खाली होने लगे हैं। ‘प्रदेश के रहबर को कैसे दिखाएं ये मंजर कि सारे मकां अब मजार बन गए हैं।’ 

प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई है। अस्पतालों में डॉक्टर- नर्स नहीं, दवाई, उपकरण नहीं। कोरोना काल में जो हमने इस लचर व्यवस्था का खामियाजा हजारों जानें गंवाकर भुगता, उसे कैसे भूलें? अमीरों के लिए महंगे निजी अस्पताल हैं, जबकि सरकारी अस्पतालों में मामूली इलाज के लिए भी गरीब भटक रहे हैं। 74 फीसदी महिलाएं और बच्चे पौष्टिक आहार के अभाव में खून की कमी यानी एनीमिया ग्रस्त हैं। ऐसे में उत्सव कैसे हो सकता है जब घपलों, घोटालों, हादसों में हमारा सूबा अव्वल हो। क्या यह फख्र की बात है? तमाम विभाग, संस्थान निगम और बोर्ड इनके आदी हो गए हैं। चावल, खाद, शराब, स्टाम्प, रजिस्ट्री, खाद्यान्न, खदान, लोकसेवा आयोग और अधीनस्थ चयन आयोग की भॢतयां, भर्ती परीक्षाएं और 
लीक होते इनके पर्चे के चर्चे थमे नहीं कि जश्न की तैयारी में हैं। आखिर खुशी क्या है, जब प्रदेश में उद्योग-धंधे बंद हो रहे हों। नया निवेश करने को कोई तैयार न हो। हमारे 5 शहर देश के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में शुमार हों। अर्थव्यवस्था देश के 5 वित्तीय संकटग्रस्त प्रदेशों में शामिल हो। पंचायती राज व्यवस्था और स्थानीय निकायों के संवैधानिक अधिकार दांव पर लगे हों। 

स्वराज के देश में सबसे छोटी लोकतांत्रिक इकाई ग्राम सरपंचों के संवैधानिक अधिकारों पर कड़ा पहरा हो, परिवहन व्यवस्था जर्जर हो, हकों की लड़ाई के लिए सड़कों पर संघर्षरत कर्मचारियों की सुनवाई की बजाय लाठियां पड़ें, ओंलपियन खिलाड़ी बहन-बेटियों को दांव लगी अस्मिता व आत्मसम्मान बचाने के लिए धरने पर बैठना पड़े, कारोबारियों के लिए भय व भ्रष्टाचार का माहौल हो? इन तमाम चुनौतियों के पार ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ की भावना के साथ हरियाणा की 36 बिरादरी को शिक्षा, स्वास्थ्य व सुरक्षा सुनिश्चित करने की जरूरत है। आज प्रदेश का हर आम नागरिक यह महसूस कर रहा है कि मौजूदा सरकार ने उनके जीवन के 9 बहुमूल्य वर्ष बर्बाद कर दिए हैं। उनके सर्वांगीण विकास के तमाम रास्ते बंद हैं। हरियाणा दिवस को जश्न की बजाय सरकार अपने कृत्यों के लिए जनता से सामूहिक तौर पर माफी के साथ मुआवजे की भी पहल करे, ताकि गरीब परिवारों को कुछ भरपाई हो सके।-आफताब अहमद (विधायक एवं उपनेता प्रतिपक्ष, हरियाणा)


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