नीति आयोग को एक अधिक मजबूत संगठन के रूप में विकसित होने की जरूरत

Tuesday, May 30, 2023 - 04:58 AM (IST)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 9 साल पहले कार्यभार संभालने के तुरंत बाद जो पहला काम किया, वह था 65 साल की विरासत वाले योजना आयोग को खत्म करना और जनवरी 2015 में नीति आयोग की स्थापना। यहां तक कि पहले गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर, मोदी के पास मजबूत केंद्र-राज्य संबंधों और सुधारों के लिए कुछ विचार थे। उन्हें उम्मीद थी कि नीति आयोग इस रिश्ते को और मजबूत करेगा। हालांकि, मोदी को अभी भी गैर-भाजपा शासित राज्यों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। वे अपने राजनीतिक मतभेदों के कारण उनके खिलाफ एकजुट हो रहे हैं। नए मुख्यमंत्रियों का क्लब दिन-ब-दिन बढ़ रहा है क्योंकि वे मिलकर काम करते हैं। 

अप्रत्याशित रूप से, एक दबाव समूह के रूप में कार्य करते हुए, कुछ गैर-भाजपा मुख्यमंत्रियों ने मोदी द्वारा संबोधित शनिवार की नीति आयोग की बैठक का बहिष्कार किया। सम्मेलन का विषय ‘विकसित भारत ञ्च 2047: टीम इंडिया की भूमिका’ था। ये मुख्यमंत्री इसमें भाग लेकर सत्र के लिए पहचाने गए 100 मुद्दों पर चर्चा कर सकते थे। इसकी बजाय, वे दूर रहे। 19 विपक्षी दलों ने भी 28 मई को नए संसद भवन के उद्घाटन का बहिष्कार किया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को यह सम्मान मिलना चाहिए, न कि मोदी को। बहिष्कार करने वालों में ममता बनर्जी (पश्चिम बंगाल), अरविंद केजरीवाल (दिल्ली), अशोक गहलोत (राजस्थान), के. चंद्रशेखर राव (तेलंगाना), भगवंत मान (पंजाब), नीतीश कुमार (बिहार), एम.के. स्टालिन (तमिलनाडु), पिनाराई विजयन (केरल) और नवीन पटनायक (ओडिशा) शामिल हैं। 

अंतिम नाम एक आश्चर्यजनक जोड़ था क्योंकि पटनायक कांग्रेस और भाजपा दोनों से समान दूरी बनाए हुए थे। कहा जाता है कि वह इस बात से नाराज थे कि ओडिशा की रहने वाली राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को नई संसद के उद्घाटन के लिए आमंत्रित नहीं किया गया था। के.सी. राव पिछले साल भी नीति आयोग की बैठक में शामिल नहीं हुए थे। केंद्र के साथ चल रही लड़ाई के बाद, उन्होंने दावा किया, ‘‘मुख्यमंत्रियों को बोलने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिलता और कुछ मिनटों के बाद, घंटी बजती है कि आपको अब रुक जाना चाहिए।’’ममता बनर्जी नीति आयोग की बजाय योजना आयोग का पुनरुद्धार चाहती थीं, जिसे उन्होंने ‘पेपर टाइगर’ कहा था। अन्य मुख्यमंत्रियों ने अपनी अनुपस्थिति के लिए कुछ बहाने दिए, जैसे पूर्व निर्धारित व्यस्तताएं। यह स्पष्ट था कि उन्होंने मिलकर काम किया। 

ऐसा बहिष्कार पहली बार नहीं हुआ। यहां तक कि इंदिरा गांधी युग के दौरान, आंध्र प्रदेश के दिवंगत मुख्यमंत्री एन.टी. रामाराव केंद्र के विरोध में राष्ट्रीय विकास परिषद से बाहर चले गए थे। दिग्गज दिवंगत ज्योति बसु, रामकृष्ण हेगड़े और अन्य भी एन.डी.सी. की बैठकों से बाहर चले गए थे। तमिलनाडु की दिवंगत मुख्यमंत्री जे. जयललिता ने योजना आयोग की बैठक इसलिए छोड़ दी थी कि उन्हें पर्याप्त समय दिए जाने की आवश्यकता है।

जहां तक शनिवार की आयोग की बैठक की बात है, तो क्या मुख्यमंत्रियों को इसका बहिष्कार कर अपना गुस्सा दिखाना चाहिए था या उन्हें इसमें शामिल होकर अपनी गलतफहमी स्पष्ट करनी चाहिए थी? वे बैठक में शामिल हो सकते थे और अपनी शिकायतें बता या काली पट्टियां पहन सकते थे। आखिरकार, यह अन्य मुख्यमंत्रियों और केंद्र के साथ बातचीत का एक मंच था। भाजपा आयोग की बैठक के बहिष्कार और नए संसद भवन के उद्घाटन को विपक्ष की ‘मोदी से नफरत’ के हिस्से के रूप में देखती है। 

नीति आयोग और उसके पूर्ववर्ती योजना आयोग की प्रासंगिकता को लेकर कई सवाल उठे हैं। जहां आयोग को सफेद हाथी के रूप में देखा जाता था, वहीं नीति आयोग को दांत विहीन संस्था के रूप में देखा जाता है। योजना आयोग के दो प्राथमिक कत्र्तव्य थे-पंचवर्षीय योजना का कार्यान्वयन और राज्यों को वित्त प्रदान करना। नीति आयोग को कोई संवैधानिक या वैधानिक मंजूरी नहीं है। इसका घोषित उद्देश्य एक गतिशील और मजबूत राष्ट्र का निर्माण करना है। योजना आयोग के विपरीत, इसकी कोई वित्तीय भूमिका नहीं है। यह मुख्य रूप से देश का प्रमुख थिंक टैंक है। आयोग के दो हब हैं- ‘टीम इंडिया हब’ तथा ‘नॉलेज एंड इनोवेशन हब’। भारत सरकार के लिए दीर्घकालिक, रणनीतिक योजनाएं विकसित करने के अलावा, आयोग एक संघीय सहकारी संरचना का समर्थन करता है। आलोचकों का कहना है कि इसे केवल नीतियों की सिफारिशों पर ध्यान केंद्रित करने की बजाय, कार्यान्वयन पर ध्यान देना चाहिए। 

भारत एक प्रमुख वैश्विक अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा है। आयोग एक असमान समाज को आधुनिक अर्थव्यवस्था में बदलने में असमर्थ होगा। यह सार्वजनिक या निजी निवेश या नीति निर्धारण को प्रभावित नहीं कर सकता। इसे विशिष्ट प्रश्नों का उत्तर देने की आवश्यकता है, जैसे 90 प्रतिशत कर्मचारी असंगठित क्षेत्र में क्यों हैं। आयोग को और अधिक मजबूत संगठन के रूप में विकसित होना चाहिए। इसमें राज्यों के विश्वास की कमी है, खासकर गैर-भाजपा मुख्यमंत्रियों से। सहकारी संघवाद की सफलता सुनिश्चित करने के लिए एक सक्रिय सहयोग की आवश्यकता होगी। 

राज्यों के बीच अजीब स्वस्थ प्रतिस्पर्धा ने कोविड काल में अच्छा काम किया। प्रधानमंत्री ने ज़ूम सम्मेलन आयोजित किए और मुख्यमंत्रियों को महामारी राहत में शामिल किया। हालांकि, बाद में गैर-भाजपा मुख्यमंत्रियों ने केंद्र की ओर से सौतेले व्यवहार की शिकायत के साथ कोविड राहत पर राजनीति की शुरूआत कर दी। कुल मिलाकर, नीति आयोग को एक अधिक मजबूत संगठन के रूप में विकसित होने की आवश्यकता है। यदि वह अधिक प्रभावी होना चाहता है, तो उसे गैर-भाजपा मुख्यमंत्रियों के भरोसे और उनकी सक्रिय भागीदारी की आवश्यकता है। तभी एक मजबूत केंद्र और मजबूत राज्यों का उदय होगा।-कल्याणी शंकर
 

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