मीठी जुबान से ही ‘चूना’ लगा गया नीरव मोदी

Tuesday, Mar 13, 2018 - 02:48 AM (IST)

नीरव मोदी के घोटाले मामले ने प्रकाश में आते ही सभी बैंकों और आम जन को डरा दिया है। बड़े कारोबारी लोगों का बैंकों से ऋण लेकर घोटाला दर घोटाला करने के पश्चात रफू चक्कर हो जाना आजकल आम सी बात हो गई है। बहुत से बड़े उद्योगपतियों ने बैंकों से ऋण लिए तथा स्वयं को स्थापित करने के पश्चात बड़े ही साफ, पारदर्शी एवं ईमानदार ढंग से ऋणों को लौटा भी दिया। 

वास्तव में नीरव मोदी ने अपनी मोहक मुस्कान व मीठी जुबान से सारा लाभ उठा लिया। पूरे भारत में उसकी विलासितापूर्ण जीवन शैली एवं चकाचौंध भरे विज्ञापन लोकप्रिय थे। दो वर्ष पूर्व हम उसके द्वारा मुम्बई में दिए एक रात्रिभोज में आमंत्रित थे। मैंने अपने पति से पूछा कि यह कौन है और यह कहां से आया है क्योंकि हम उसके बारे में कुछ नहीं जानते और हम उसका विनम्र आमंत्रण ठुकरा नहीं सके। दो वर्ष बाद उसने लंदन की सर्वाधिक चॢचत सेंट बोंड स्ट्रीट में अपना बड़ा सा स्टोर खोला था। उसने न्यूयार्क अथवा हांगकांग में भी ऐसा ही किया। 

नीरव मोदी अपने विज्ञापनों के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्रियों एवं मॉडलों का चयन करता था। वह अपने आभूषण सुविख्यात अमीर लोगों को बेचा करता था। एक बार पुन: वह एक मार्कीटिंग गुरु बन गया था। राजसी जीवनशैली सहित इसकी समानता अब अन्यों ललित मोदी, विजय माल्या सरीखे नीरव मोदी के रूप में हो गई जिसके इर्द-गिर्द सर्वाधिक सुंदर महिलाएं, आलीशान मकान एवं महंगे शौक रहते हैं। इसे ‘अमीर पराक्रमी’ का सतही शब्द कहा जाता है। अब हमें पता चल रहा है कि उसके द्वारा बेचे गए हीरे भी नकली थे। उसने नकली आभूषण बेचे। 

और चूंकि उसे कोई पूछ नहीं सकता था क्योंकि उसकी जीवन शैली ही इस प्रकार की थी कि वह कैसे नकली आभूषण बेच सकता है। मैंने जब सुना कि वह पी.एन.बी. बैंक की राशि लेकर भाग गया है और राशि जो उसने हमारे अमीर व समृद्ध लोगों को असली हीरों की कीमत पर अमरीकी हीरे बेचते हुए प्राप्त की थी तो मैं मुस्करा भी नहीं सकी थी। मैंने अपने आप में सोचा कि क्या दिमाग है! वह कितना चालाक और कपटी है। यदि वह अधिक पढ़ा-लिखा होता तो वह इससे ज्यादा बेहतर कर सकता था? अब उसके चहेतों का कहना है कि उसके पास पैसा नहीं है, अमरीका में भी उसे दीवालिया घोषित किया गया है। वाह! तो अब भारतीय सरकार उसे कैसे पकड़ सकती है। यह कहानी हमारे देश के कुछ प्रसिद्ध अमीर लोगों की है। 

जब 2014 में भाजपा सरकार ने शपथ ली तो हमारे समृद्ध उद्योगपति भारी कमाई का भुगतान करने से बचने के लिए अनिवासी भारतीय बन गए। यह सुविख्यात एवं सुप्रतिष्ठित परिवारों के लिए एक झटका था कि उनके परिवार के कुछ सदस्य एन.आर.आई. बन गए। उनमें से बहुत सी बड़ी मछलियां देश से बाहर चली गई हैं। छोटी बची मछलियों को इसकी कीमत अदा करनी है। यह दुखद है परन्तु सत्य है। आपको हर्षद मेहता याद होगा-वह कैसा जीवन जी रहा था और बाद में उसका ज्यादा जीवन जेल में ही कटा था। इस देश में इस नटवरलाल जैसे बहुत से हैं जिनकी सहायता विभिन्न पदों पर बैठे अधिकारी करते हैं। अधिकारियों द्वारा फाइल एवं दस्तावेज पूरे किए जाते हैं तथा मंत्री व राजनीतिज्ञ को भेज दिए जाते हैं। अधिकारी व्यक्ति की मांग, पृष्ठभूमि जांचता है तथा यदि यह ठीक हो तो उसे राजनीतिज्ञ को भेज देता है। इन मामलों में बैंक अधिकारी/ ब्यूरोक्रेट्स शामिल तो हैं ही, जवाबदेह भी हैं। यह नीचे से ऊपर तक शामिल प्रोटोकाल है। 

मुझे आश्चर्य है कि कैसे ये घोटालेबाज अपनी गिरफ्तारी से दो दिन पूर्व देश छोड़ भाग जाते हैं। इनमें ललित मोदी, विजय माल्या भी थे जो सामान्य जैट उड़ानों में 80 सूटकेसों के साथ भाग गए। यह भी रिपोर्ट है कि नीरव मोदी ने नोटबंदी से मात्र दो दिन पूर्व करोड़ों रुपए नई करंसी में बदल लिए। वित्त मंत्री के शीर्ष अधिकारियों समेत नोटबंदी संबंधी कोई नहीं जानता था। वास्तव में उन्होंने हमारी सरकार और हम साधारण भारतीयों को चूना लगाया है। वे उन्हें पकडऩे के लिए भारतीय सरकार को चुनौती देने की कोशिश कर रहे हैं। यह दुखद है कि मध्यम वर्ग एवं निम्र मध्यम वर्ग किसी बैंक से ऋण लेने के लिए भागदौड़ करता है, असंख्य प्रश्र पूछे जाते हैं, छोटे से कर्ज के लिए भी सम्पत्ति से संबंधित असंख्य कार्ड एवं प्रमाण लिए जाते हैं। यह बहुत आश्चर्यजनक है कि 12 हजार करोड़ रुपए दे दिए जाते हैं और इसके लिए लिया भी कुछ नहीं गया और हम उनका कुछ भी नहीं कर सकते हैं। यह आघातपूर्ण एवं अविश्वसनीय है। 

नोटबंदी के पश्चात अपना पैसा अपने बैंकों से लेना हमारे लिए कठिन था जबकि इन घोटालेबाजों का पैसा उनको घर बैठे पहुंचा दिया गया। यह एक ऐसा संसार है यहां ईमानदार आदमी का स्वागत नहीं किया जाता, जहां मध्यम वर्ग पीड़ित रहता है और जहां भ्रष्ट व्यक्ति अधिकारियों से मिलकर कुछ भी कहीं से भी प्राप्त कर सकता है। हमारी विभिन्न जांच एजैंसियां राजनीतिक रूप से परिवर्तित मामलों के पीछे लगी रहती हैं। ऐसा किसी भी सरकार के शासन में हो सकता है। इन मामलों के लिए किसी भी सरकार का कत्र्तव्य बनता है कि वह घोटालेबाजों को जेल की सलाखों के पीछे भेजे तथा कम्पनियों के कर्मचारियों को उनका बनता पैसा वापस दिलाना सुनिश्चित करे। 

नीरव मोदी ने भी विजय माल्या जैसा ही किया जहां उसकी कम्पनी के कर्मचारियों को अपने बच्चों को स्कूलों से निकालना पड़ा। वे बच्चों की फीस, चिकित्सीय खर्च एवं दिन-प्रतिदिन के आम खर्च अदा नहीं कर सकते हैं। यह दुखद मामला है परन्तु मैं आशा करती हूं कि जब सरकार कार्रवाई करेगी तथा वह एक उदाहरण होगा कि भविष्य में कोई ऐसा करने का सोचे भी नहीं।-देवी चेरियन

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