बेरोजगारी दूर करने को कौशल-शिक्षा के नए तरीके तलाशने होंगे

punjabkesari.in Monday, May 29, 2023 - 06:14 AM (IST)

142 करोड़ की आबादी के साथ दुनिया का सबसे बड़ा देश भारत बेरोजगारी की समस्या से पार पाने के लिए रोजगार के नए अवसरों के सृजन व अपनी युवा श्रम शक्ति को सही रोजगार के लिए जद्दोजहद कर रहा है।  दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाले भारत के लिए जरूरी है कि अपनी श्रम-शक्ति को रोजगार पाने लायक कौशलों और जानकारी से संपन्न किया जाए, ताकि वे देश के विकास में प्रभावी योगदान दे सकें। 

कई अध्ययनों से खुलासा हुआ है कि वर्ष 2023 के आखिर  तक करीब 10 करोड़ नए कामगार श्रम बाजार में आ जाएंगे। उच्च शिक्षा और उचित कौशल का अभाव भारत के लिए कड़ी चुनौती है। वर्तमान में बेरोजगार युवाओं (15 से 24 आयु वर्ग) की दर 10 प्रतिशत है। सबसे बड़ी चुनौती यह है कि भारत के 43 प्रतिशत युवाओं की रोजगार, शिक्षा या कौशल तक पहुंच नहीं है। इस युवा श्रम-शक्ति को रोजगार बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। इसके लिए तीन पहलुओं पर गौर करने की जरूरत है। 

पहला, उचित और आवश्यक कौशलों की शिक्षा प्रदान करना सुनिश्चित करने के लिए कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों में उद्योग जगत की सार्थक भागीदारी। दूसरा, स्पष्ट मापदंड और तीसरा, प्रमाणन प्रणाली तथा सही ढंग से डिजाइन व लागू की गई दीर्घकालिक कौशल विकास संबंधी कार्यनीति। 

कौशल विकास के लिए अनेक कदम पहले से उठाए जा चुके हैं, जिनमें औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (आई.टी.आई), महिला व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थान, प्रशिक्षण महानिदेशालय (डी.जी.टी) द्वारा संचालित उन्नत प्रशिक्षण संस्थान और निजी कम्पनियों या सरकार द्वारा संचालित बेसिक ट्रेङ्क्षनग सैंटर और संबंधित इंस्ट्रक्शन सैंटर शामिल हैं। केंद्र सरकार द्वारा प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पी.एम.के.वी.वाई), अनेक मंत्रालयों और विभागों जैसे कृषि, आवास एवं गरीबी उपशमन, महिला और बाल विकास, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा प्रशिक्षणों का संचालन तथा मानव संसाधन विकास विभाग द्वारा बैचलर ऑफ वोकेशन (बी.वोक) और डिप्लोमा ऑफ वोकेशन का संचालन किया जा रहा है। 

तमाम बहुआयामी प्रयासों के बावजूद भारत की लगभग 48.7 करोड़ श्रम-शक्ति आबादी (15-59 वर्ष की आयु वाले लोगों) में से महज 4.69 प्रतिशत औपचारिक तौर पर कौशल प्रशिक्षित है। एक सर्वे में पाया गया है कि व्यावसायिक शिक्षा डिग्रीधारकों में से महज 18 फीसदी छात्रों को ही नौकरियां मिलीं, जिनमें से महज 7 फीसदी छात्रों को ही ये नौकरियां औपचारिक क्षेत्र में मिलीं। 

तीन बड़ी खामियां: पहली, जहां एक ओर व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण व्यवस्था (वी.ई.टी) तैयार किया जाना जरूरी है, वहीं इस संदर्भ में उद्योग जगत की भूमिका की भी अनदेखी नहीं की जा सकती। वी.ई.टी कोर्सेज के डिजाइन और पाठ्यक्रम तैयार करने में उद्योग जगत से पर्याप्त इनपुट नहीं लिए जाने के कारण अक्सर वहां सिखाए जाने वाले कौशल नियोक्ताओं की जरूरत के मुताबिक नहीं होते। उद्योग जगत की कम भागीदारी से हालात ऐसे हो गए हैं कि कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों के बहुत से छात्र शिक्षा और प्रशिक्षण समाप्त होने के बाद भी रोजगार पाने लायक नहीं हो पाते। 

आई.आई.टी. बेंगलुरु द्वारा कराए गए एक अध्ययन में पाया गया कि संस्थान प्रबंधन समितियों (आई.एम.सी.) में नौकरी देने वालों की भागीदारी सीमित है। सर्वेक्षण में शामिल किए गए 78 प्रतिशत से ज्यादा छात्रों और 66 प्रतिशत नियोक्ताओं ने स्किल कोर्सेज को औसत बताया। एक नए रास्ते की रूपरेखा तैयार किए जाने की जरूरत है, जो वी.ई.टी. के डिजाइन और डिलीवरी में उद्योग जगत को ज्यादा प्रभावी रूप से शामिल करे। इसकी जिम्मेदारी सरकार और साथ ही साथ निजी क्षेत्र, दोनों को उठानी होगी। 

दूसरी, देश में कौशल प्रशिक्षण के प्रमाणन मापदंड तय करने की तत्काल जरूरत है। वर्तमान में एन.एस.डी.सी के साथ करीब 20 मंत्रालय व्यावसायिक प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों का संचालन करते हैं। उपलब्ध कार्यक्रमों के बारे में स्पष्टीकरण के अभाव और विविध कार्यक्रमों के प्रावधान के कारण नियोक्ताओं को इस प्रशिक्षण की समग्रता और गुणवत्ता पर विश्वास नहीं। पाठ्यक्रम और प्रमाणन के मापदंड तय करने के लिए सरकार को चाहिए कि वह नैशनल स्किल्स क्वालीफिकेशन फ्रेमवर्क के तहत गुणवत्ता या क्वालिटी पैक्स के आकलन की जिम्मेदारी औद्योगिक इकाइयों को सौंपे, ताकि उन्हें उद्योगों की जरूरतों के अनुरूप बनाया जा सके। 

वर्तमान में, प्रशिक्षण में सहभागी बनने वाली इकाइयों को छात्रों को नौकरी पर लगाने के लक्ष्य दिए गए हैं- उन्हें दाखिला लेने वाले शत-प्रतिशत छात्रों को नौकरी दिलानी होगी। इस मॉडल के दो प्रमुख जोखिम हैं- पहला, प्रशिक्षुओं को ऐसे पद पर और ऐसे नियोक्ताओं के यहां नौकरी पर रखवा दिया जाता है, जो शायद उनकी दिलचस्पी या कौशलों के अनुरूप न हो। दूसरा, नौकरी दिलाने के लक्ष्यों में कौशलों की गुणवत्ता तथा कार्यक्रमों के प्रभावी होने के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं दी गई है। 

तीसरी, राष्ट्रीय कौशल विकास कार्यनीति को मौजूदा कार्यक्रमों के मूल्यांकनों तथा उनके प्रभाव के प्रमाण के अभाव सहित अनेक मामलों पर गौर करने की जरूरत है। सबसे बढ़कर, श्रम बाजार के ढांचे में बदलावों और तकनीके अपनाने के क्रम में आई तेजी के कारण, सॉफ्ट स्किल्स, इंटरपर्सनल स्किल्स, रचनात्मकता और महत्वपूर्ण ङ्क्षचतन के क्षेत्र में कुशल और अकुशल श्रमिक के वेतन में अंतर देखा जा सकता है। भविष्य में यही सब कौशल विकास कार्यनीतियों का केंद्र ङ्क्षबदू होना चाहिए। रोजगार संबंधी चुनौतियों को देखते हुए, भारत को हर हाल में अपनी आबादी को कौशल प्रदान करने के नए तरीके तलाशने होंगे।-दिनेश सूद  
 


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