‘अमानत में ख्यानत’ रोकने के लिए नया वक्फ कानून जरूरी

punjabkesari.in Tuesday, Aug 13, 2024 - 05:15 AM (IST)

बंगलादेश में शेख हसीना के तख्ता पलट के बाद कट्टरपंथियों का बढ़ता वर्चस्व या गठबंधन सरकार में टी.डी.पी. जैसे सहयोगियों के दबाव की वजह से वक्फ  कानून में बदलाव वाले बिल को जे.पी.सी. को भेजना पड़ा। लोकसभा में स्थायी समिति के अध्यक्ष सामान्यत: विपक्ष के सीनियर नेता होते हैं जबकि जे.पी.सी. में सत्तारूढ़ दल का बहुमत होता है। स्थायी समिति का अभी गठन भी नहीं हुआ है इसलिए इसे जे.पी.सी. में भेजने का निर्णय लिया गया। अरबी भाषा के वक्फ शब्द से बने वक्फ के दायरे में चल और अचल सम्पत्ति आती है। इसकी आमदनी को मदरसों, कब्रिस्तानों, मस्जिदों, अनाथालयों और अन्य इस्लामिक धर्मार्थ कार्यों में खर्च किया जाता है। पिछले साल मार्च में सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट को बताया था कि वक्फ अधिनियम 1995 के प्रावधानों को चुनौती देने वाली लगभग 120 याचिकाएं विभिन्न अदालतों में लम्बित हैं। 

अमानत में ख्यानत :  बंटवारे के बाद भारत छोड़कर पाकिस्तान गए मुस्लिमों की जमीन और सम्पत्तियों पर वक्फ बोर्ड को मालिकाना हक देने के लिए संसद ने 1954 में वक्फ  कानून बनाया था। इसमें 1959, 1964 और 1969 में अनेक बदलाव किए गए। बाबरी ढांचे के विध्वंस के बाद कांग्रेस की नरसिम्हाराव सरकार ने 1995 में और फिर मनमोहन सिंह की यू.पी.ए. सरकार ने 2013 में इस कानून में अनेक बदलाव किए। इन बदलावों के बाद वक्फ  सम्पत्तियों पर अवैध कब्जों और दावों के खिलाफ अदालतों से राहत मिलना कठिन और असम्भव हो गया। वक्फ  बोर्ड रेलवे और सेना के बाद देश में जमीनों का तीसरा सबसे बड़ा मालिक है। वक्फ सम्पत्तियों का डाटा इकट्ठा करने के लिए साल 2008 में वक्फ एसैट मैनेजमैंट सिस्टम ऑफ  इंडिया ऑनलाइन डाटा पोर्टल की स्थापना की गई। वक्फ  के पास 8.65 लाख सम्पत्तियों के तहत लगभग 9.4 लाख एकड़ जमीन है, जिनमें से एक चौथाई सम्पत्तियां सिर्फ  उत्तर प्रदेश में हैं। देशभर की सभी सम्पत्तियों में से सिर्फ 38.9 गैर-विवादित हैं, 9 प्रतिशत सम्पत्तियों में अवैध निर्माण से जुड़े 32 हजार मामले चल रहे हैं, 50 प्रतिशत वक्फ  सम्पत्तियों के बारे में सही जानकारी उपलब्ध नहीं है। 

1995 में राज्यसभा में बहस के दौरान विपक्ष के नेता और भाजपा सांसद सिकंदर बख्त ने कहा था कि वक्फ  सम्पत्तियां गरीब मुसलमानों की बेवाओं, तलाकशुदा महिलाओं और यतीम बच्चों की अमानत हैं, जिनमें ख्यानत हो रही है। बख्त के अनुसार 1977 में पंजाब वक्फ  बोर्ड के पास कई सौ करोड़ रुपए की धन सम्पत्ति होनी चाहिए थी लेकिन उनके पास सिर्फ  40 लाख रुपए थे। जायदाद को महफूज रखने और इसे लूटमार से बचाने के लिए पारदर्शिता, ऑडिट और कुशल प्रशासन जरूरी है। वक्फ शासन को पारदर्शी और प्रभावी बनाने के लिए 1969 में संसद में जोरदार मांग की गई थी। 2006 में सच्चर समिति की रिपोर्ट में वक्फ  सम्पत्तियों के प्रबंधन में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने, अभिलेखों की देख-रेख और ऑडिट की सिफारिश की गई थी। साल 2008 में राज्यसभा में पेश संसदीय समिति की रिपोर्ट में वक्फ  बोर्डों में सी.ई.ओ. के तौर पर वरिष्ठ अधिकारी की नियुक्ति और भ्रष्टाचार को रोकने के लिए मुत्तवलियों के खिलाफ  सख्त कार्रवाई के प्रावधान की सिफारिश की गई थी। संविधान में सैकुलरिज्म का प्रावधान है इसलिए वक्फ  सम्पत्तियों के कुशल प्रशासन के लिए सरकार के साथ गैर-मुस्लिमों की प्रभावी भूमिका के लिए नए बिल में किए  गए प्रावधान स्वागत योग्य हैं।

बिल में 5 बड़े बदलाव : बिल में 5 बड़े संशोधन प्रस्तावित हैं। पहला कानून के नए नाम के साथ वक्फ  की नई परिभाषा है, जिसके अनुसार कम से कम 5 साल से इस्लाम का पालन करने वाले वैध सम्पत्ति के मालिक ही वक्फ  बना सकते हैं। 
मौखिक तौर पर वक्फ  के दावे पर लगाम लगेगी। दूसरा सम्पत्तियों के सर्वेक्षण की जिम्मेदारी जिला कलैक्टरों को सौंपी जाएगी और केन्द्रीय पोर्टल के माध्यम से सम्पत्तियों का पंजीकरण अनिवार्य होगा। तीसरा, केन्द्रीय वक्फ  बोर्ड, राज्य वक्फ बोर्ड और वक्फ न्यायाधिकरणों में गैर-मुस्लिमों के साथ शिया, बोहरा, अहमदियों, आगाखानी जैसे मुस्लिम सम्प्रदायों का प्रतिनिधित्व होगा। वक्फ  परिषद और बोर्ड में दो महिला सदस्यों की नियुक्ति जरूरी होगी। चौथा, मुत्तवलियों वक्फ मैनेजर को देय वाॢषक अंशदान 7 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी कर दिया है। वक्फ  खातों के नियमित और स्वतंत्र ऑडिट के साथ विशेष मामलों में सी.ए.जी. ऑडिट का प्रावधान है। पांचवां, विवाद निपटारे में वक्फ  ट्रिब्यूनल के अंतिम निर्णय के अधिकार को खत्म करने से पीड़ित पक्ष हाईकोर्ट में मामला दायर कर सकेगा। 

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के मौलाना खालिद रशीद ने बदलावों का विरोध करते हुए कहा कि इसकी बजाय वक्फ  कानून को ही समाप्त करके मुस्लिमों को भी ट्रस्ट अधिनियम 1882 के तहत सम्पत्तियों की देख-रेख और मैनेजमैंट की इजाजत मिलनी चाहिए। कुछ लोग इन बदलावों को संविधान के अनुच्छेद-25 और धार्मिक स्वतन्त्रता के खिलाफ बता रहे हैं। सनद रहे कि वक्फ  सम्पत्तियों में गैर-मुस्लिमों का भी योगदान हो सकता है। आलोचकों को संसदीय समितियों की पुरानी रिपोर्टों के साथ संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्षता हेतु किए गए प्रावधानों को नए सिरे से पढऩे की जरूरत है। संसद में सरकार के जवाब के अनुसार इन बदलावों के बाद भी वक्फ सम्पत्तियों से हुई आमदनी को मुस्लिम महिलाओं, बच्चों और मुस्लिम समुदाय के कल्याण के लिए ही खर्च किया जाएगा। हिन्दू धर्म में दलित और पिछड़े वर्ग के कल्याण के लिए आरक्षण का प्रावधान है। वक्फ कानूनों में बदलाव से मुस्लिम समाज के पसमांदा और ओ.बी.सी. जैसे कुरैशी, मंसूरी, अंसारी, सलमानी और सिद्धिकी जैसी जातियों को वक्फ सम्पत्तियों के प्रबंधन में बेहतर भूमिका के साथ आमदनी में सही हिस्सेदारी मिलेगी। 

कृषि कानूनों की तरह वक्फ  कानून में भी बदलाव से पहले बातचीत और रायशुमारी नहीं की गई थी। यह बहुत ही वाजिब आलोचना है। जे.पी.सी. में सत्ता पक्ष के साथ विपक्षी सांसद और मुस्लिम समुदाय के अनेक सांसद शामिल हैं जहां पर इन कानूनी बदलावों में स्वस्थ चर्चा होनी चाहिए। महिलाओं के सशक्तिकरण और बराबरी, कानून का शासन, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की ताकतवर भूमिका के लिए वक्फ कानूनों में बदलाव समय और समाज की मांग है।-विराग गुप्ता(एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट)
 


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