‘बाल तस्करी’ रोकने हेतु नई रणनीतियां व कार्य योजना जरूरी

punjabkesari.in Friday, Oct 23, 2020 - 03:43 AM (IST)

महामारी के इस माहौल में भारत को कई तरह की सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है जिनमें से कुछ पुरानी तथा कई नई हैं। अधिकतर नेता तथा उनकी पार्टियां इन समस्याओं से निपटने की कसमें खाती हैं लेकिन सभी व्यावहारिक उद्देश्यों से वे अंधेरे में खो जाती हैं। उनके पास अपने निहित उद्देश्यों से आगे सोचने की न तो क्षमता होती है और न ही कोई कार्य योजना। उनके इस खेल का नाम अवसरवादिता है। इस सब के लिए मुक्त प्रतिस्पर्धी राजनीति में ताकतवर लोग तथा उनके सहयोगी खुल कर आडम्बर करते हैं और शायद ही कभी कोविड-19 के बाद की समस्याओं बारे सोचते हैं। 

फिलहाल मेरी मुख्य चिंता का विषय लाखों संवेदनशील बच्चों की दुर्दशा है। जो स्थिति है सामान्य गरीबी के समय में भी ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों में बच्चे तथा उनके अभिभावक बहुत अनिश्चितता की स्थिति में होते हैं। अपना अस्तित्व बचाने के लिए उनका जीवन एक संघर्ष बन जाता है। महामारी ने तो उनके अस्तित्व को बदतर बना दिया है। अर्थव्यवस्था के पतन ने इन बच्चों तथा उनके निराश अभिभावकों को शोषण तथा तस्करी के खतरनाक मैदान में धकेल दिया है। 

संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के अनुसार लगभग 2.5 करोड़ लोग मजदूरी तथा यौन तस्करी के शिकार हैं। जिस चीज ने स्थिति को चिंताजनक बना दिया है वह यह कि इन दिनों तस्करी भूमिगत हो गई है जिस कारण कानून लागू करने वाली एजैंसियों को कम दिखाई देती है। भारत में बाल तस्करी का परिमाण काफी अधिक बताया जाता है। नैशनल क्राइम क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के अनुसार प्रत्येक 8 मिनट में भारत में एक बच्चा लापता हो जाता है। इस अपराध के सर्वाधिक शिकार गरीब तथा हाशिए पर धकेल दिए गए समुदायों के बच्चे हैं। 

2010 से 2014 के दौरान देश में 3.85 लाख बच्चे गायब हुए जिनमें से 61 प्रतिशत आंध्र प्रदेश की लड़कियां थीं। इन लड़कियों को आमतौर पर वेश्यावृत्ति अथवा भीख मांगने के लिए बाध्य किया जाता है। इससे भी अधिक, अत्यंत खराब आॢथक स्थितियों वाले परिवारों को अपने बच्चों को यौन व्यापार के लिए बेचने को बाध्य किया जाता है अथवा विषैले परिवेश वाली औद्योगिक इकाइयों में काम करने के लिए भेज दिया जाता है। इतनी ही बुरी हालत भारत के नगरों तथा शहरों में सड़कों पर रहने वाले 20 लाख बच्चों की है। 

मैं एक अंग्रेजी समाचार पत्र के दीपांकर घोष को अवश्य मुबारकबाद देना चाहूंगा जिनकी तीन हिस्सों वाली जांच रिपोर्टों ने कोविड-19 के कारण राष्ट्रीय लॉकडाऊन के बाद बाल तस्करी में तेज वृद्धि पर रोशनी डाली है। इस दृष्टांत ने निश्चित तौर पर केंद्रीय अधिकारियों को चिंताजनक चेतावनी संकेत भेजे हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 3 माह पूर्व सभी राज्य सरकारों को प्रत्येक जिले में ‘अत्यधिक जरूरी आधार पर’ प्रत्येक जिले में मानव तस्करी रोधी इकाइयां (ए.एच.टी.यूस) स्थापित करने को कहा है। बड़े अफसोस की बात है कि कोविड हॉटस्पॉट्स उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र तथा जम्मू-कश्मीर सहित 8 राज्यों ने अभी ये इकाइयां स्थापित करनी हैं। 

गृह मंत्रालय के 6 जुलाई के पत्र ने राज्यों के पुलिस महानिदेशकों तथा मुख्य सचिवों को यह स्पष्ट कर दिया है कि फंडों की कमी को ‘बहाने के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता’ लेकिन कौन परवाह करता है? बच्चों की सुरक्षा सभी स्तरों पर केंद्रीय तथा राज्य सरकारों द्वारा प्राथमिक कार्य के तौर पर की जानी चाहिए। पहले चरण में स्कूलों, समुदायों तथा पंचायत अधिकारियों द्वारा बच्चों तथा उनके अभिभावकों के संवेदनशील वर्गों के लिए सुरक्षा प्रणाली मजबूत करना होना चाहिए। दूसरे, जिला बाल सुरक्षा संगठनों तथा नाबालिग न्याय प्रणाली को प्रभावपूर्ण तरीके से तस्करी के मामलों से निपटने के लिए पूर्णत: जवाबदेह होना चाहिए। तीसरे पुलिस, समाज कल्याण निदेशालय तथा नाबालिग न्याय प्रणाली को इस तरह से तालमेल बनाना चाहिए ताकि बचाव और उसके बाद की कार्रवाई प्रभावपूर्ण तरीके से की जा सके। 

चौथे, मानव तस्करों के खिलाफ तुरन्त कार्रवाई की जानी चाहिए, विशेषकर उनके खिलाफ जो खुलकर झोंपड़-पट्टियों तथा देश के अन्य पिछड़े क्षेत्रों में संचालन करते हैं। पांचवां, अधिकारियों को एन.जी.ओज तथा अन्य प्रासंगिक एजैंसियों के साथ तालमेलपूर्ण कार्रवाई सुनिश्चित करनी चाहिए ताकि बचाए गए बच्चों का उचित पुनर्वास हो सके। 

दरअसल, समस्याओं की गंभीरता तस्करी पीड़ितों के बचाव, बहाली तथा पुनर्वास के क्षेत्रों में सूचना तथा संचार के बेहतर प्रवाह की मांग करती है। रिपोटर्स में बताए गए आंकड़े दिखाते हैं कि आगे का काम कितना चुनौतीपूर्ण है। मार्च तथा अगस्त 2020 के बीच महिला तथा बाल विकास मंत्रालय द्वारा स्थापित चाइल्डलाइन को सहायता के लिए कम से कम 27 लाख कॉल्स प्राप्त हुईं। जिनमें से केवल 1.92 लाख पर कार्रवाई शुरू की जा सकी। इसके अतिरिक्त बाल विवाह के कम से कम 10 हजार मामले दर्ज किए गए। बड़ी हैरानी की बात है कि झारखंड जैसे गरीब राज्य में लॉकडाऊन के समय के दौरान बाल तस्करी के मामलों में 600 प्रतिशत की वृद्धि हुई।-हरि जयसिंह
 


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