नवाचार और प्रतिस्पर्धा में बढ़त का नया परिदृश्य

Saturday, Sep 14, 2019 - 01:01 AM (IST)

यकीनन इस समय देश में आर्थिक सुस्ती का दौर है लेकिन देश नवाचार और प्रतिस्पर्धा में पूरी दुनिया में आगे बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है। इसके आधार पर देश के उद्योग-कारोबार की प्रगति के नए अध्याय लिखे जा सकते हैं। हाल ही में प्रकाशित बौद्धिक सम्पदा, नवाचार, प्रतिस्पर्धा और कारोबार सुगमता से संबंधित वैश्विक रिपोर्टों में भारत की बढ़ती हुई रैंकिंग प्रस्तुत की जा रही है। साथ ही भारत में वैश्विक शोध और वित्तीय संस्थाओं के कदम तेजी से बढ़ रहे हैं। 

भारत में ख्याति प्राप्त वैश्विक फायनांस और कॉमर्स कंपनियां अपने कदम तेजी से बढ़ा रही हैं। इतना ही नहीं, भारत से कई विकसित और विकासशील देशों के लिए कई काम बड़े पैमाने पर आऊटसोॄसग पर हो रहे हैं। भारत में स्थित वैश्विक फाइनांशियल फर्मों के दफ्तर ग्लोबल सुविधाओं से सुसज्जित हैं। इन वैश्विक फर्मों में बड़े पैमाने पर प्रतिभाशाली भारतीय युवाओं की नियुक्तियां हो रही हैं। 

यू.बी.एस. बैंक के भारत में स्थित मुंबई और पुणे सैंटर में करीब 4000 कर्मचारी हैं। यू.बी.एस. का रिसर्च डिपार्टमैंट दुनिया के लिए नए कौशल विकास और नई तकनीकों से सुसज्जित आर्टिफिशियल इंटैलीजैंस (ए-आई),क्लाउड कम्प्यूटिंग, स्टैटिस्टिक्स, मशीन लॄनग और ऑटोमेशन में विशेषज्ञता रखने वाले युवाओं की बड़े पैमाने पर भर्ती कर रहा है। बेंगलुरू में गोल्डमैन सॉक्स का नया कैम्पस लगभग 1800 करोड़ रुपए में बना है और यह कैम्पस न्यूयॉर्क स्थित मुख्यालय जैसा है जहां पर कर्मचारियों की संख्या 5000 से अधिक है। दुनिया की दिग्गज ई-कॉमर्स कंपनी एमेजॉन द्वारा 30 लाख वर्ग फुट के क्षेत्र में बनाई यह हैदराबाद की सबसे बड़ी इमारत है। इसमें 15,000 कर्मचारी हैं। 

बौद्धिक व कारोबारी ताकत
बौद्धिक सम्पदा एवं नवाचार में भारत के आगे बढऩे का आभास इसी वर्ष 2019 में नवाचार, प्रतिस्पर्धा तथा बौद्धिक सम्पदा से संबंधित जो वैश्विक सूचकांक और अध्ययन रिपोर्टें प्रकाशित हुई हैं, उनमें भारत की ऊंची होती हुई रैंकिंग से लगाया जा सकता है। हाल ही में प्रकाशित वैश्विक नवोन्मुखी सूचकांक यानी ग्लोबल इन्नोवेशन इंडैक्स (जी.आई.आई.) 2019 रिपोर्ट का प्रकाशन विश्वविख्यात कोरनेट यूनिवर्सिटी, आई.एन.एस.ई.ए.डी. और संयुक्त राष्ट्र की एजैंसी विश्व बौद्धिक संपदा संगठन, (डब्ल्यू.आई.पी.ओ.) द्वारा किया गया है। जी.आई.आई. 2019 में भारत पांच पायदान ऊपर चढ़कर 52वें स्थान पर पहुंच गया है। 2015 के बाद से भारत का रैंक 29 स्थान बढ़ा है। 2015 में  भारत 81वें स्थान पर था। जी.आई.आई. के कारण विभिन्न देशों को सार्वजनिक नीति बनाने से लेकर दीर्घावधि आऊटपुट, वृद्धि को प्रोत्साहन देने, उत्पादकता में सुधार और नवोन्मेष के माध्यम से नौकरियों में वृद्धि में सहायता मिली है। 

आई.एम.डी. विश्व प्रतिस्पर्धिता रैंकिंग 2019 के अनुसार, वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में तेज वृद्धि, कंपनी कानून में सुधार और शिक्षा पर खर्च बढऩे के कारण भारत एशिया-प्रशांत क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ा है। इस रैंकिंग में भारत 43वें स्थान पर आ गया है। पिछले साल यह 44वें स्थान पर था। विश्व आर्थिक मंच के वैश्विक प्रतिस्पद्र्धा सूचकांक में 140 देशों की अर्थव्यवस्थाओं में भारत पांच स्थान ऊपर चढ़कर 58वें स्थान पर पहुंच गया। यह वृद्धि जी-20 देशों के बीच सर्वाधिक है। 

देश के नवाचार, कारोबार एवं प्रतिस्पर्धा में आगे बढऩे के पीछे एक प्रमुख कारण यह है कि वर्ष 2018-19 में भारत में डिजिटल अर्थव्यवस्था, घरेलू कारोबार, स्टार्टअप, विदेशी निवेश, रिसर्च एंड डिवैल्पमैंट को प्रोत्साहन मिला है। इंटरनैट ऑफ थिंग्स, कृत्रिम बुद्धिमता और डाटा एनालिटिक्स जैसे क्षेत्रों में शोध और विकास को बढ़ावा देने के लिए लागत और प्रतिभा के अलावा नई प्रोद्यौगिकी पर इन्नोवेशन और जबरदस्त स्टार्टअप माहौल के चलते दुनिया की कंपनियां भारत का रुख कर रही हैं। 31 दिसम्बर, 2018 तक भारत में करीब 1257 जी.आई.सी. हैं। इनमें से 970 का जोर पूरी तरह शोध एवं विकास पर है। 

आर.एंड डी. पर कम खर्च 
नि:संदेह अभी हमें नवाचार एवं प्रतिस्पर्धा के वर्तमान स्तर एवं विभिन्न वैश्विक रैंकिंग में आगे बढ़ते कदमों से संतुष्ट नहीं होना चाहिए। अभी इन विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक सुधार की जरूरत है। निश्चित रूप से देश में रिसर्च एंड डिवैल्पमैंट (आर.एंड डी.) पर खर्च बढ़ाना होगा। भारत में आर.एंड डी. पर जितनी राशि खर्च होती है उसमें इंडस्ट्री का योगदान काफी कम है जबकि अमरीका तथा इसराईल जैसे विकसित देशों और पड़ोसी देश चीन में यह काफी अधिक है। 

वर्ष 2015 में इसराईल ने आर.एंड डी. पर उसके जी.डी.पी. का 4.28 प्रतिशत खर्च किया था, इसी तरह जापान अपने जी.डी.पी. का 3.28,  जर्मनी 2.92 और चीन 2.06 प्रतिशत आर.एंड डी. पर खर्च करता है, जबकि आर.एंड डी. पर भारत का खर्च केवल 0.7 प्रतिशत है। भारत में सरकार और कारोबार जगत दोनों का रिसर्च एंड डिवैल्पमैंट पर फोकस सीमित है। 

पिछले दो दशकों में निश्चित रूप से भारत के आर.एंड डी. खर्च में वृद्धि निराशाजनक रही है। भारत में 2015 में आर.एंड डी. पर खर्च 48.1 अरब डॉलर था जिसमें 29 अरब डॉलर सरकार ने खर्च किए। कंपनियों की हिस्सेदारी महज 17 अरब डॉलर थी। अमरीका में आर.एंड डी. पर 479 अरब डॉलर खर्च किए गए जिसमें सरकार की हिस्सेदारी 54 अरब डॉलर तथा कंपनियों की हिस्सेदारी 341 अरब डॉलर थी। चीन में आर.एंड डी. पर कुल 371 अरब डॉलर खर्च किए गए, जिसमें सरकार की हिस्सेदारी 59 अरब डॉलर तथा कंपनियों की हिस्सेदारी 286 अरब डॉलर थी। 

यह उल्लेखनीय है कि 7 अगस्त को भारत ने सिंगापुर में अंतर्राष्ट्रीय निपटान समझौता संधि पर हस्ताक्षर किए हैं। इस संधि के उपयुक्त रूप से क्रियान्वयन से भारत नवाचार, प्रतिस्पर्धा, बौद्धिक सम्पदा जैसे मापदंडों पर तेजी से आगे बढ़ सकेगा। इससे भारत में वैश्विक वित्तीय और शोध संस्थाओं के कदम तेजी से बढ़ेंगे। कारोबार सुगमता बढ़ेगी और भारतीय अर्थव्यवस्था की चमकीली संभावनाओं को साकार किया जा सकेगा।-डा. जयंतीलाल भंडारी

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