नई संसद और देश का अभिमान

Friday, May 26, 2023 - 04:13 AM (IST)

भारत की स्वतंत्रता के अमृतकाल में भारतीय आर्किटैक्ट और इंजीनियरों द्वारा डिजाइन और निर्मित नए संसद भवन का लोकार्पण राष्ट्र के लिए एक गौरव का विषय है। वर्तमान संसद भवन, जिसे 1921-1927 के दौरान तैयार किया गया था, उसके आर्किटैक्ट अंग्रेज एडविन लुटियन और हर्बर्ट बेकर थे। इस नए संसद भवन के आर्किटैक्ट भारतीय बिमल पटेल हैं। 

इसमें शक नहीं कि इन दो अंग्रेज आर्किटैक्ट्स द्वारा डिजाइन वर्तमान संसद भवन निश्चय ही वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना है, जिसे इंपीरियल लैजिस्लेटिव काऊंसिल के लिए बनाया गया था। बाद में इसे कांन्स्टिचुएंट असैंबली (संविधान सभा) के हवाले कर दिया गया। इसी भवन में 9 दिसम्बर, 1946 के दिन कैबिनेट मिशन प्लान के अंतर्गत भारत के संविधान निर्माण की पहली बैठक हुई थी, जिसमें डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा को संविधान सभा का प्रोविजिनल प्रैसिडैंट और उसके बाद डॉ. राजेंद्र प्रसाद को इसका स्थायी अध्यक्ष चुना गया था। 

इस ऐतिहासिक भवन के प्रांगण से ही तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 14 अगस्त, 1947 की मध्य रात्रि में देशवासियों को भारत की स्वतंत्रता का सुखद संदेश सुनाया था। यहीं डॉ. बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में संविधान का ड्राफ्ट तैयार किया गया था और बाद में यहीं से 26 नवम्बर, 1949 के दिन भारत के संविधान को अंगीकार भी किया गया था। पिछले 75 वर्षों में देश में हुए कई ऐतिहासिक परिवर्तनों का यह भवन साक्षी रहा है। लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि वास्तुशिल्प की सारी विशेषताओं और अपने ऐतिहासिक महत्व के बावजूद देश की संसद अब तक एक ऐसे भवन में स्थित थी, जिससे हमारे औपनिवेशिक इतिहास का दर्द भी जुड़ा है। ऐसे में बिना किसी दुराग्रह या कटुता के यदि हम नए भारत के निर्माण के लिए स्वदेशी दक्षता और कौशल की मदद से अपने नए प्रतीकों का निर्माण करते हैं तो उसमें हर्ज ही क्या है? 

आजादी के समय भारत की कुल जनसंख्या करीब 33 करोड़ थी और संसद के दोनों सदनों की कुल संख्या 705 थी। आज दोनों सदनों के सदस्यों की कुल संख्या 790 है जबकि हमारी आबादी 140 करोड़ का आंकड़ा छू रही है। ऐसे में जनप्रतिनिधियों की आनुपातिक संख्या भी जल्द ही बढ़ाने का विषय विचाराधीन है, जिसके लिए वर्तमान संसद भवन छोटा पड़ेगा। नए संसद भवन के निर्माण की चर्चा कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में ही शुरू हुई थी। इसे साकार वर्तमान मोदी सरकार ने किया। ऐसे में विरोध का क्या औचित्य है? यह तो एक ऐसा अवसर है जिसके द्वारा देश को अपने डिजाइन, आॢकटैक्चर, इंजीनियरिंग की विश्व-स्तरीय क्षमता को भी दुनिया को दिखने का अवसर मिला है। लेकिन अफसोस कि इसके बावजूद कुछ लोग इस नए भवन की भव्यता पर गर्व करने की बजाय इसके ऊपर स्थापित शेर के ङ्क्षहसक दिखने का रोना रो रहे हैं। एक उभरते हुए राष्ट्र के लिए यह दुखद है और हास्यास्पद भी। 

वैसे भी इंदिरा गांधी से लेकर सोनिया गांधी ने उन तमाम ऐसे भवनों का शिलान्यास और उद्घाटन किया है, जिस पर आज कुछ दलों का रुदन है। 24 अक्तूबर,1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संसद के एनेक्सी भवन का उद्घाटन किया था। 15 अगस्त, 1987 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने संसदीय पुस्तकालय का शिलान्यास किया था। इन दोनों कार्यक्रमों में राष्ट्रपति को आमंत्रित नहीं किया गया था। इसी तरह कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने अपनी नई विधानसभा का उद्घाटन अथवा शिलान्यास किया है। 2020 में छत्तीसगढ़ में नई विधानसभा का शिलान्यास हुआ था। उसमें भी राज्यपाल को आमंत्रित नहीं किया गया था। सोनिया गांधी तो किसी संवैधानिक पद पर भी नहीं थीं और उन्होंने व राहुल गांधी ने शिलान्यास किया था। 

राजनीतिक विरोध जब नीतियों से भटक कर व्यक्ति-केन्द्रित हो जाता है तब विरोध की भाषा, मुद्दे और स्वर अपने निम्नतम और सबसे बेतुके स्तर पर होते हैं। इसका अनुभव हम रोज कर रहे हैं। दुर्भाग्यवश देश में विपक्ष की राजनीति इतनी बेबस और बेहाल हो चुकी है कि उसे देश की हर प्रगति और उसकी बढ़ती शक्ति और सामथ्र्य में अपने सम्पूर्ण विनाश का अक्स दिखने लगा है। यह दुखद स्थिति है, पाॢटयों के लिए भी और उनके नेताओं के लिए भी। 

राजनीतिक ईष्र्या समाज में इस स्तर तक पैठ कर गई है कि लोग वंदे भारत ट्रेन के जानवर से टकरा कर क्षतिग्रस्त होने पर खुशी से झूम उठते हैं और सोशल मीडिया में इसका मजाक उड़ाने लगते हैं। महज इसलिए, क्योंकि यह अत्याधुनिक ट्रेन नरेंद्र मोदी की सरकार ने शुरू करवाई है! यह तो अपने पैर पर खुद कुल्हाड़ी मारने जैसा है। संसद के उदघाटन का बहिष्कार कर विपक्षी दलों ने सिर्फ अपनी नकारात्मकता का ही परिचय दिया है। संसद व्यक्ति-विशेष की संपत्ति नहीं, राष्ट्र की धरोहर है। क्या अगले सत्र में वे सब इस नए भवन में बैठने से भी इंकार कर देंगे क्योंकि इसका उदघाटन नरेंद्र मोदी ने किया था? विपक्ष के इस व्यवहार से जनता हतप्रभ है और आहत भी। उन सबको इसपर पुनर्विचार करना चाहिए।-मिहिर भोले
 

Advertising