राष्ट्रपिता की ‘विचारधारा’ से नई पीढ़ी अनभिज्ञ

punjabkesari.in Wednesday, Jul 17, 2019 - 02:22 AM (IST)

इस बार के बजट 2019 के प्रस्तुति अवसर पर महात्मा गांधी के विचारों के बारे में युवाओं को जागरूक करने के लिए, वित्तमंत्री सीतारमण ने कहा कि एक ‘गांधी-पीडिया’ विकसित किया जा रहा है। 

गौरतलब हो कि 2 अक्तूबर 2019 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाई जाएगी। मोदी सरकार ने 150वीं जयंती से एक साल पहले से ही इसे बड़े पैमाने पर मनाने का फैसला किया है। गांधी जी की जीवनी, उनके विचारों और उनके कामों के बारे में पूरी जानकारी अब एक ही सरकारी वैबसाइट पर लाने की तैयारी हो रही है। इसकी जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि देश की नई पीढ़ी राष्ट्रपिता की विचारधारा की जड़ से अनभिज्ञ समझी जा रही है। आजाद भारत के 6 दशकों में सामाजिक बदलाव की जो कहानी लिखी गई है बेशक उसका अधिकांश हिस्सा युवा पीढ़ी के नाम है। 

देश में नव उदारवादी नीतियों के लागू होने के बाद भारत जिस तेजी से भूमंडलीकरण की राह पर दौड़ रहा है, उससे युवा वर्ग गांधी के सपनों के भारत से न केवल दूर होता जा रहा है, बल्कि वह पश्चिम की भौतिकवादी चकाचौंध को आत्मसात करने में लगा है। हालांकि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की आमद से पश्चिमी देशों से जो आवागमन बढ़ा उसने कुछ सालों में ही युवा पीढ़ी को गांधी के विषय में सोचने पर मजबूर कर दिया। अधिक पैसा कमाने की ललक से तमाम तरह की डिग्रियां लेकर दूसरे देशों में गए युवाओं को गांधीवाद के वैश्विक स्वरूप ने उनकी सोच को बदला है। कम ही सही लेकिन कई युवाओं की ऐसी कहानियां हमारे लिए उदाहरण हो सकती हैं जो विदेश की आरामतलब और अधिक आय वाली नौकरियों का परित्याग करके स्वदेश लौट आए और न सिर्फ वापस आए, बल्कि देश के कई क्षेत्रों में अविस्मरणीय काम किए हैं। 

प्रेरणा स्रोत रहे हैं गांधी
इतिहास साक्षी है कि गांधी के केवल विचार ही नहीं उनके कर्म भी युवाओं के लिए हमेशा प्रेरणास्रोत रहे हैं। भारत आने से पहले जब गांधी जी दक्षिण अफ्रीका में थे तो वहां की सरकार ने भारतीय रीति-रिवाज से हुए विवाहों की वैधता पर सवाल खड़ा किया और उन विवाहों को मानने से इंकार कर दिया। इससे प्रभावित होने वालों में अधिकांश रूप से युवा ही थे। ऐसे युवाओं को वहां की सरकार ने नौकरियों से निकालना शुरू कर दिया। उस समय गांधी जी एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जो उनके साथ खड़े हुए। उन्होंने युवाओं को संगठित और प्रोत्साहित किया और एक बड़ा आंदोलन छेड़ा। बेरोजगार हो चुके युवाओं के लिए ‘फीमिक्स आश्रम’ बनाया और वहां पर लघु उद्योग चलाने लगे। यह एक अद्भुत प्रयोग था जिसके लिए भारत के लोगों ने भी अपनी सहायता भेजी। तब के उद्योगपति टाटा, कांग्रेस और हैदराबाद के निजाम की दी हुई सहायता राशि लेकर गोपालकृष्ण गोखले दक्षिण अफ्रीका गए। 

गांधी जी जब 1901 में भारत आए उस समय कांग्रेस का अधिवेशन कोलकाता में था। आमतौर पर कांग्रेस के अधिवेशनों में वकीलों की भागीदारी रहती थी परन्तु कोलकाता में काफी संख्या में युवाओं ने भागीदारी की। माना जाता है कि गांधी जी के आने से युवाओं में इसका प्रभाव पड़ा। उस अधिवेशन में गांधी जी ने यह कहा कि कोई काम छोटा-बड़ा नहीं होता और अपना काम करने में किसी भी प्रकार की शर्म नहीं होनी चाहिए। उन्होंने वहां बने शौचालयों को खुद साफ करके इसका संदेश भी दिया। स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ते हुए गांधी जी ने जब असहयोग आंदोलन का नारा दिया तो उन्होंने युवाओं को सरकारी कालेज, स्कूल छोडऩे का आह्वान किया और स्वदेशी विद्यालयों में पढऩे को कहा। फलस्वरूप काशी विद्यापीठ सहित कई शैक्षिक संस्थानों की स्थापना हुई। देश में इससे एक स्वदेशी शिक्षा प्रणाली का आकर्षण पैदा हुआ। उन युवाओं को चरखे दिए गए जो असहयोग आंदोलन से बेरोजगार हो गए थे। जेल से आने के बाद गांधी जी ने लघु उद्योगों को यहां भी बढ़ाने पर जोर दिया और देश में स्वरोजगार का विस्तार हुआ। 

गांधी जी ने जिस मौलिक शिक्षा की जमीन तैयार की वह युवाओं के लिए महत्वपूर्ण है। उस योजना के तीन मूलभूत पक्ष थे। हस्त निर्मित उत्पादन कार्य, मातृ भाषा में 7 वर्ष तक अनिवार्य शिक्षा और सुलेखन। हमने इन योजनाओं का त्याग किया लेकिन पड़ोसी चीन पहले दो तत्वों को अपनाकर दुनिया भर में अपना डंका बजा रहा है। जबकि हम बचपन से ही अंग्रेजी के पीछे भाग रहे हैं। कुछ साल पहले हुए सर्वे में यह पता चला कि देश के 76 प्रतिशत युवा अपना आदर्श गांधी को मानते हैं। हो सकता है इस आंकड़े में ऐसे युवा भी होंगे जो आमतौर पर गांधी को अच्छा मानते हुए अपना आदर्श बता गए हों। लेकिन अभी आई.बी.एन.सी.एन.एन. के एक देशव्यापी ताजा सर्वे में फिर यह सामने आया कि देश के अधिकांश युवा गांधी को अपना रोल मॉडल मान रहे हैं। यह सुखद आश्चर्य की बात है कि जहां एक तरफ बीयर और पब संस्कृति वाली वर्तमान पीढ़ी पश्चिमी जीवन शैली को आत्मसात कर रही है, वहीं दूसरी तरफ वह गांधी को आदर्श बताने में नहीं हिचकती। 

गांधी के रास्ते पर नहीं चलते युवा
गंभीर सवाल यही है कि गांधी को अपना रोल मॉडल बताने वाली युवा पीढ़ी गांधी के रास्ते पर चलने को तैयार क्यों नहीं। क्यों वह हिंसा, नशाखोरी और पैसे के पीछे भाग रही है। यह सवाल देश की उन सरकारों से ही पूछना होगा जो अब तक गांधी को नकारती आई हैं। गांधी ने जिस ‘हिन्द स्वराज’ का खाका दिया था, उस पर हमारे नेतृत्वकत्र्ता हमेशा चलने से कतराते रहे। गांधी जी लघु उद्योग और स्वरोजगार से देश के हर व्यक्ति को काम देना चाहते थे जबकि हमारी वर्तमान आॢथक नीतियां युवाओं को बेरोजगारी के दलदल में धकेलती रही हैं। आजादी के बाद जो लघु उद्योग फैला वह अंतिम सांसें गिन रहा है। बड़े पूंजीपति घरानों के चंगुल में तो देश बहुत पहले जकड़ चुका था। अब विदेशी पूंजी के हवाले हमारे खुदरा और घरेलू रोजगारों को भी सौंपा जा रहा है। कुल मिलाकर हम ऐसी अर्थव्यवस्था के हवाले कर दिए गए हैं जिसे गांधी जी गरीब पैदा करने वाला बताते थे। 

गांधीवादी विचारों की प्रासंगिकता 
बावजूद इस अनर्थ अर्थतंत्र में गांधी जी ही एकमात्र विचार हैं जिन्हें अपनाकर देश और समाज को बचाया जा सकता है। उनके जीवन में कुछ भी व्यक्तिगत नहीं था, उनका पूरा जीवन एक संयुक्त परिवार के लिए था, जिसमें उनके लिए भी जगह थी जो उनसे घोर असहमत थे। भारत में विदेशी कपड़ों की होली जलाने के लिए प्रेरित करने वाला महात्मा जब गोलमेज सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए ब्रिटेन गया, तो मौका मिलते ही वह लंकाशायर के कपड़ा कारखानों के मजदूरों के बीच जा पहुंचा जो स्वदेशी आंदोलन के कारण बेकार हो रहे थे और उन्हें समझाने की कोशिश की कि हमें तो आपसे प्रेम ही है, पर हम नहीं चाहते कि इंगलैंड की मिलों में बनने वाले कपड़े भारत के लाखों जुलाहों को बेरोजगार कर दें और हमारी आर्थिक आत्मनिर्भरता को नष्ट करने का औजार बनें। 

अगर महात्मा गांधी युवाओं के लिए नहीं हैं तो उनका जीवन दर्शन किसी काम का नहीं है। उनका पूरा जीवन इन चिंताओं से लड़ते हुए ही गुजरा। सत्य, अहिंसा, प्रेम, सादगी जैसे गांधीवादी विचारों की पूंजी पूरी दुनिया के लिए प्रासंगिक है।
 


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