नव-उदारवादी वैश्वीकरण सदा विवादों में रहा
punjabkesari.in Thursday, Mar 29, 2018 - 02:38 AM (IST)

नियमन तंत्र के अभाव में अराजकता ही विश्व व्यवस्था को प्रभाषित करने का मानदंड रही है। राष्ट्रीय हितों की रक्षा का हवाला देते हुए राष्ट्रों द्वारा लिए हुए निर्णय पूरे दृश्य को शून्य जोड़ (Zero-sum) खेल में परिवॢतत कर रहे हैं। वैश्वीकरण की शुरूआत के साथ कई अन्य कारक मसलन व्यापार, सूचना प्रौद्योगिकी, संचार, गैर-पारंपरिक सुरक्षा आयामों के उदय आदि ने पारस्परिक सहयोग के कई अवसरों को जन्म दिया। अधिकाधिक लाभ को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रों के आपसी मेलजोल ने विश्व राजनीति में विश्व व्यापार संगठन जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठन के होने को अर्थवत्ता दी जिसने व्यापार, टैरिफ, सहमति सम्मत नियम आदि पर चर्चा करने का एक प्लेटफार्म दिया।
सैद्धांतिक व्याख्याओं के इतर जाने पर यह दिखाई पड़ता है कि अपनी शुरूआत से ही ट्रम्प युग में, संयुक्त राष्ट्र प्रशासन की नीतियां, विश्व के पारस्परिक जुड़ाव के प्रति शंकाकुल रही हैं। राष्ट्र की महिमा को पुनस्र्थापित करने की दलील स्पष्टत: संरक्षणवादी है और हर 'बाहर' को बदआमदी (Unwelcoming) के नजरिए से देखती है, पैरिस समझौते से यह स्पष्ट है। राष्ट्रपति ट्रम्प का इस्पात के आयात पर 25 प्रतिशत तथा एल्युमीनियम पर 10 प्रतिशत टैरिफ लगाना भी इसी के अनुरूप है। ये संस्थान भयानक दबाव में हैं।
इसमें कोई संदेह नहीं कि नव-उदारवादी वैश्वीकरण सदैव ही विवादों में रहा। यह तर्क दिया गया कि यह व्यवस्था पक्षपातपूर्ण है क्योंकि यह सदैव अमरीकी निगमों के लिए फायदेमंद रही है। हालांकि इसकी स्वीकारोरिक्त असमानता या तथ्य को नहीं ढक सकती है कि इस कवायद में चीन, भारत तथा अन्य विकासशील देश में भी लाभार्थी थे। निवेश तथा व्यापार के खुलेपन ने निश्चित ही गरीबी और बेरोजगारी से निपटने की कुछ तजवीज तो की ही है। इसी तर्क के साथ, वैश्विक अर्थव्यवस्था में लंगर (anchor) समझे जाने वाले विश्व व्यापार संगठन को दोमुंहा प्रकृति वाला देखा गया। जहां इसने वैश्विक शासन की उम्मीदें दीं, वहीं दूसरी तरफ इस पर लोकतांत्रिक अनियमितता तथा वैधता संबंधी टिप्पणियां भी की गईं।
चीन में इसे खुले तौर पर उपेक्षित किया कि उसके राजकीय पूंजीवाद ने अनुचित लाभ लिए तथा व्यापार वार्ताएं 'ट्रैंड ऑफ' की बोझिल प्रकृति के कारण निर्णय तक नहीं पहुंच सकीं। ट्रम्प के इस फैसले के साथ विश्व व्यवस्था को सुव्यवस्थित करने की जरूरत ठंडे बस्ते में चली गई है, आम लहजे में कहा जाए तो इसने जख्मी को किसी इलाज की पेश करने के बजाय अधिक खतरे में डाल दिया है। 'अमरीका सबसे पहले' ट्रम्प के राष्ट्रपति चुनाव अभियान का केंद्रीय मुद्दा था। पूर्व अमरीकी राष्ट्रपतियों ने भी डंपिंग एवं सबसिडी के खिलाफ सुरक्षा हेतु टैरिफ एवं कोटा का सहारा लिया है। वर्तमान में सत्तारूढ़ रिपब्लिकन पार्टी ने राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में अन्य देशों के लिए भी यह बहस खोल दी है कि भविष्य उदारवाद का है या संरक्षणवाद का। सहमत राष्ट्र, मसलन संयुक्त राष्ट्र भी विश्व व्यापार संगठन के विवाद समाधान तंत्र के प्रति खिन्न हैं किंतु ज्यादा बड़ी ङ्क्षचता यह है कि आर्थिक राष्ट्रवाद क्या इससे शीघ्र मुक्ति दे सकेगा?
इस्पात एवं एल्युमीनियम के आयात पर टैरिफ के मामले में ट्रम्प प्रशासन की राष्ट्रीय सुरक्षा वाली टिप्पणियां कतई तर्कसंगत नहीं हैं जब उन्हें इस नजरिए से भी देखा जाए कि टिप्पणियों का प्रतिकार अधिक नुक्सान कर सकता है। यह नुक्सान उन्हें होगा जो पहले ही बेरोजगारी से जूझ रहे हैं, खाद्य कीमतों में वृद्धि के साथ यह वस्तु निर्यात पर भी टैरिफ के रूप में दुष्प्रभाव छोड़ेगा। इसी तरह, ऐसे अविवेकी निर्णयों के समय में अनुच्छेदों में दूरदॢशता की कमी जाहिर होती है जो मनमुटाव के वक्त काम आने थे तथा विश्व व्यापार संगठन की नियमावती के प्रति अनादर भी दिखाई देता है, अपनी स्थापना से ही व्यापार वार्ताओं के नेतृत्व के बावजूद।
भू-राजनीतिक स्तर पर यदि संयुक्त राज्य अमरीका नेतृत्व से हट रहा है तो चीन विदेशी मामलों की उथल-पुथल में स्थायित्व लाने के लिए प्रयास करने का एक विमर्श प्रस्तुत करेगा। चीन की दृढ़ता उसकी 'वन बैल्ट, वन रोड' नीति से जाहिर है जहां अंतर्राष्ट्रीय फलक पर इस गतिविधि का सावधानीपूर्वक निरीक्षण किया जा रहा है कि यह संभवत: नव-विश्व व्यापार संगठन के लिए रास्ता तैयार करे। हालांकि इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि किस तरह चीन की घरेलू पेचीदगियां तिकड़म से गुत्थमगुत्था हैं। इसके अलावा अमरीका तथा चीन ने अपने अंधराष्ट्रवाद को छोडऩे का अल्पतम प्रयास भी नहीं किया है जिससे विश्व व्यवस्था भी दुष्प्रभावित हुई है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद उपजी वैश्विक राजनीति के विकल्प पर एक संकट मंडरा रहा है। युद्ध लागत और नुक्सान के साथ आता है। व्यापार युद्ध में भी स्थिति कुछ अलग नहीं होती। जर्मनी ने व्यापारिक विवादों को सुलझाने के लिए कूटनीतिक वार्ता का इस्तेमाल किए जाने जैसे अविवेकी हथकंडों के विरोध में चेतावनी दी है।
विश्व मंच में सांझा मूल्य हमेशा मौजूद रहे हैं। गतिरोध हुए भी तो पारस्परिक समझौतों द्वारा सुलझाए जाते रहे। अगर अमरीका इस महत्वपूर्ण प्रतिस्पर्धा में भाग लेता है तो वह पहले से ही विवादित संगठन को समाप्त करने का प्रयास कर रहा है। इन कदमों ने इस जरूरत को साफ सामने रख दिया है कि यह विमर्श किया जाए कि क्या आक्रामकता भी वह कुंजी है जो सौदेबाजी और विरोध के साथ-साथ इस्तेमाल की जाए? या फिर नियति को सुधारने की अनिच्छा को बहुपक्षवाद (Multilateralism) के पतन के साथ नए आधिपत्य की खोज के दौरान दुनिया का भविष्य बहुध्रुवीय अराजकता की ओर सरकता दिख रहा है।-डा. आमना मिर्जा