चुनाव परिणामों के संकेत और संदेश समझने की आवश्यकता
punjabkesari.in Friday, Dec 08, 2023 - 05:23 AM (IST)

प्रत्येक चुनाव परिणाम अपने साथ अनेक संकेत और संदेश लाता है। विश्लेषक अपने-अपने दृष्टिकोण से उन संकेतों और संदेशों को प्रस्तुत करते हैं और यह हम पर निर्भर है कि हम उन्हें किस दृष्टिकोण से देखें। मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा की विजय, 2 राज्यों से कांग्रेस सरकारों का जाना तथा तेलंगाना में कांग्रेस की वापसी इन चुनाव परिणामों का साकार सच है। किंतु इस साकार सच के पीछे अनेक ऐसे सच हैं जो भारत के वर्तमान एवं भविष्य की राजनीति, सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक दशा-दिशा के संकेत देते हैं। यह साफ है कि कांग्रेस अपनेे 2 राज्य सरकारों के कायम रखने के साथ मध्यप्रदेश में विजय को सुनिश्चित मानकर चल रही थी। ऐसा नहीं होता तो कांग्रेस मुख्यालय में सुबह-सुबह लड्डुओं के भंडार के साथ ढोल-नगाड़ों की गूंज तथा कार्यकत्र्ताओं के उल्लास और उमंग में कूदते नृत्य करते दृश्य सामने नहीं आते।
चुनाव परिणाम आने के पहले ही कांग्रेस नेताओं के बयान ऐसे आने लगे थे मानो नरेंद्र मोदी और उनके नेतृत्व में भाजपा का दौर समाप्त हो चुका है और 2024 में इनका जाना निश्चित है। चुनाव परिणाम बताते हैं कि कांग्रेस जमीनी वास्तविकता से बिल्कुल दूर थी अन्यथा वह प्रतिक्रियाओं और प्रदर्शनों के लिए परिणामों की प्रतीक्षा करती। राजस्थान में जादूगर कहलाने वाले अशोक गहलोत के 25 में से 17 मंत्रियों को हार का सामना करना पड़ा। इसी तरह छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और 3 मंत्रियों को छोड़कर उपमुख्यमंत्री एस. सिंहदेव समेत 9 मंत्री चुनाव हार गए। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज को बस्तर की चित्रकूट सीट से हार का सामना करना पड़ा।
तेलंगाना में मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव कामरैड्डी सीट से भाजपा उम्मीदवार वेंकटरमना रैड्डी से चुनाव हार गए। यहां कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रेवंत रैड्डी भी उम्मीदवार थे। यह अलग बात है कि के. चंद्रशेखर राव और रेवंत दूसरी सीट से चुनाव जीते। मध्यप्रदेश में दो-तिहाई बहुमत प्राप्त करने वाली भाजपा की शिवराज सिंह सरकार के 12 मंत्री, एक केंद्रीय मंत्री और एक सांसद भी पराजित हो गए। राजस्थान में भी भाजपा के नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ और उपनेता सतीश पूनिया चुनाव हार गए। छत्तीसगढ़ में भाजपा ने केंद्रीय मंत्री रेणुका सिंह सहित चार सांसद लड़ाए। इनमें दुर्ग के सांसद विजय बघेल अपने संबंधों में चाचा और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से हार गए। रायगढ़ के सांसद गोमती साहू ने भी पत्थल गांव सीट से मात्र 255 मतों से जीत दर्ज की। इन सबके भी कुछ मायने हैं।
इसी तरह महिला मतदाताओं के आंकड़े भी काफी कुछ कहते हैं। उदाहरण के लिए मध्यप्रदेश में 1993 में महिला मतदाताओं में से सिर्फ 52 प्रतिशत महिलाओं ने मतदान किया था जबकि 2023 में यह आंकड़ा 76 तक पहुंच गया है। 34 विधानसभा क्षेत्र में महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा मतदान किया और इनमें से अधिकांश सीटों पर भाजपा जीती। छत्तीसगढ़ की 90 में से 50 सीटों पर महिलाओं ने ज्यादा मतदान किया। इनमें करीब 29 सीटें ऐसी हैं जिनमें महिलाओं ने निर्णायक भूमिका निभाई। राजस्थान के कुल 75.45 प्रतिशत मतदान में महिलाओं की भागीदारी 74.72 प्रतिशत और पुरुषों की 74.53 प्रतिशत रही। यानी 0.19 प्रतिशत अधिक महिलाओं ने सरकार चुनने में भूमिका निभाई। इस चुनाव का एक और प्रमुख पहलू है, मुस्लिम वोटों का कांग्रेस की ओर रुझान। मध्यप्रदेश के आंकड़े बताते हैं कि मुसलमानों की निर्णायक सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली है।
तेलंगाना में कांग्रेस की जीत का एक बड़ा कारण मुस्लिम मतदाताओं का बी.आर.एस. से निकलकर कांग्रेस की ओर आना है। के. चंद्रशेखर राव ने मुस्लिम मतदाताओं को खुश करने के लिए अनेक योजनाओं की घोषणाएं की। निष्कर्ष यह निकाला जा रहा है कि मुस्लिम बिरादरी क्षेत्रीय दलों को छोड़कर राष्ट्रीय राजनीति में प्रभाव बढ़ाने के लिए कांग्रेस की ओर मुड़ रही है। चारों राज्यों में मुसलमान का वोट भाजपा को न के बराबर मिला है। निश्चय ही इस तरह के ध्रुवीकरण की प्रतिक्रिया में दूसरी ओर भी ध्रुवीकरण होता है।
कांग्रेस द्वारा जाति जनगणना को बड़ा मुद्दा बनाने के बावजूद कांग्रेस के खाते में अति पिछड़ा वर्ग, दलित और आदिवासियों का वोट काफी काम आया। आदिवासी सीटों पर भाजपा की सफलता के मायने बिल्कुल साफ हैं। साफ है कि इन तथ्यों को नकार कर आप परिणाम के सारे संदेश नहीं पढ़ सकते। जो पार्टी और नेता इन संकेतों और संदेशों की ईमानदार समीक्षा कर उसके अनुसार विचार, व्यवहार और रणनीति में आवश्यक बदलाव लाएंगे वे आगे सफल होंगे और जो नहीं लेंगे उनके लिए सफलता कठिन होगी। अभी तक किसी पार्टी ने परिणामों की समीक्षा और ईमानदारी से इन कारकों को स्वीकार कर परिवर्तन का संकेत नहीं दिया है। फ्रीबीज घोषणाओं में भी कांग्रेस भाजपा से बहुत आगे थी। जिनके लिए ये योजनाएं लाभकारी थीं अगर वे भी उस रूप में कांग्रेस के साथ नहीं गए तो इसके संकेत और संदेश भी समझने की आवश्यकता है।-अवधेश कुमार