श्रमिक वर्ग की समस्याओं के समाधान की जरूरत

punjabkesari.in Sunday, May 01, 2022 - 06:05 AM (IST)

प्रत्येक वर्ष विश्व के कई हिस्सों में 1 मई को नए समाज के निर्माण में श्रमिकों के योगदान के रूप में अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस के तौर पर मनाया जाता है, श्रमिकों की आर्थिक और सामाजिक उपलब्धियों को स्वीकार करने, श्रम संघों को बढ़ावा देने और प्रोत्साहित करने के लिए आयोजित किया जाता है। दरअसल, किसी भी समाज, देश, संस्था और उद्योग में मजदूरों, कामगारों और मेहनतकशों की अहम भूमिका होती है। किसी भी देश की आर्थिक गतिविधियों के सुचारू रूप से परिचालन में श्रमिक वर्ग का विशेष योगदान रहता है, या यूं कहें कि देश की आर्थिक उन्नति श्रमिक वर्ग के कंधों पर टिकी होती है। आज अंधे-आधुनिकीकरण के दौर में भी इस वर्ग का महत्व कम नहीं हुआ। 

उद्योग-धंधों, व्यापार-जगत, कृषि-उत्पादन और निर्माणात्मक क्रियाकलाप में मजदूर श्रम की भूमिका नि:संदेह सर्वाधिक रहती है। लेकिन, पिछले कुछ सालों में श्रमिक वर्ग कई प्रकार की दुश्वारियां झेलने को विवश है। पिछले 2 वर्षों में मजदूरों ने बीमारी के साथ-साथ भुखमरी की दोहरी मार झेली है। यह वाकई चिंताजनक है कि नैशनल क्राइम रिकाडर््स ब्यूरो (एन.सी.आर.बी.) की साल 2020 की ‘एक्सीडैंटल डैथ्स एंड सुसाइड’ रिपोर्ट से पता चलता है कि साल 2020 में सबसे ज्यादा आत्महत्याएं दिहाड़ीदार मजदूरों ने कीं। 

एन.सी.आर.बी. के आंकड़ों की मानें तो पिछले साल भारत में तकरीबन 1.53 लाख लोगों ने आत्महत्या की, जिनमें से सबसे ज्यादा तकरीबन 37,000 दिहाड़ी लगाने वाले मजदूर थे। जान देने वालों में सबसे ज्यादा तमिलनाडु के मजदूर थे। फिर मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना और गुजरात के मजदूरों की सं या है। हालांकि इस रिपोर्ट में मजदूरों की आत्महत्या के पीछे कोरोना महामारी को वजह नहीं बताया गया, लेकिन महामारी के मौजूदा दौर में खुदकुशी के आंकड़ों में इजाफा होना तय है। 

एन.सी.आर.बी. की रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि वर्ष 2016 में देशभर में रिकॉर्ड 25164 दिहाड़ीदार मजदूरों ने खुदकुशी की। यह आंकड़ा 2014 की तुलना में 60 फीसदी ज्यादा है, जब दिहाड़ी मजदूरों की आत्महत्या के कुल 15735 मामले दर्ज किए गए थे। एन.सी.आर.बी. के मुताबिक, 2016 में किसानों के मुकाबले दिहाड़ीदार मजदूरों द्वारा आत्महत्या के दोगुने मामले सामने आए। 11379 किसानों की तुलना में दिहाड़ी लगाने वाले 25164 मजदूरों ने खुदकुशी जैसा कठोर कदम उठाया। 

बता दें कि भारत में होने वाली खुदकुशियों में सबसे ज्यादा दिहाड़ीदार मजदूरों की, 19.2 फीसदी होती हैं। इसके बाद गृहिणियों द्वारा 16.5 फीसदी और किसानों द्वारा 8.7 फीसदी खुदकुशियां की जाती हैं। भारत में सर्वाधिक 4888 दिहाड़ीदार मजदूरों ने तमिलनाडु में खुदकुशी की। असल में ये आंकड़े बेहद डरावने हैं। इस ओर गंभीरता के साथ विचार-मंथन निहायत जरूरी है। उल्लेखनीय है कि हमारे देश में श्रमिक वर्ग की 2 श्रेणियां प्रचलन में हैं। एक श्रेणी संगठनात्मक है, तो दूसरी असंगठनात्मक। 

जहां संगठित क्षेत्र के श्रमिक को न केवल पर्याप्त मजदूरी प्राप्त होती है बल्कि उसकी सामाजिक सुरक्षा भी सुनिश्चित की जाती है, उनको मासिक वेतन, महंगाई भत्ता, पैंशन और अन्य जरूरी सुविधाएं भी उपलब्ध करवाई जाती हैं, वहीं, असंगठित क्षेत्र की बात करें तो इसे कम मजदूरी पर काम करना पड़ता है, किसी भी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा भी नहीं दी जाती और इसका जीवन-यापन पूरी तरह से दैनिक मजदूरी पर आधारित होता है। ऐसे में असंगठित श्रमिक वर्ग अशक्त और दूसरों पर अधिक निर्भर होता है। विडंबना यह है कि देश में असंगठित श्रमिकों की तादाद बहुत ज्यादा है। इसे आंकड़ों में बताया जाए तो यह लगभग 90 फीसदी के इर्द-गिर्द होगी। 

दरअसल, आज देश की बड़ी आबादी दैनिक मजदूरी से जीवन का गुजारा करती है। मौजूदा वक्त में उद्योग-धंधों के शिथिल होने से इनका जीवन निर्वाह दूभर हो गया है। ऐसे में इन पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। श्रमिक वर्ग में समाज का बहुत बड़ा तबका शामिल है। हस्तशिल्पी, सफाई कर्मचारी, बढ़ई, लोहार, पशुपालक और जो दैनिक मजदूरी से जीवन निर्वाह करता है, वह मजदूर ही है। इनके अलावा, सूती वस्त्र उद्योग, चीनी उद्योग, सीमैंट उद्योग, लोहा और इस्पात उद्योग और कोयला खदानों में होने वाले क्रियाकलाप में श्रमिक वर्ग शामिल रहता है। 

प्रत्येक श्रमिक अपने पसीने से देश के निर्माण में बहुमूल्य भूमिका का निर्वहन करता है। बिना श्रमिक के किसी भी देश के आॢथक ढांचे को मजबूत बनाने की कल्पना तक नहीं की जा सकती। लिहाजा, आज श्रमिक वर्ग की समस्याओं के समाधान की आवश्यकता है। मौजूदा कोविड संकट में श्रमिक वर्ग बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ है। ऐसे में इसे संबल प्रदान करने की आवश्यकता है।-अली खान


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