इसराईली विरोध से सीख लेने की जरूरत

punjabkesari.in Thursday, Mar 30, 2023 - 04:27 AM (IST)

देश में न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर हमले के चलते, जिसका नेतृत्व कोई अन्य नहीं बल्कि कानून मंत्री किरण रिजिजू कर रहे हैं, जो सुप्रीमकोर्ट तथा हाईकोर्ट के जजों के मामले में सरकार के हस्तक्षेप की बीन बजा रहे हैं, इसराईल में वर्तमान घटनाक्रम आंख खोलने वाले होने चाहिएं। 

इसराईली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू द्वारा प्रस्तावित, देश ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कम करने के विधेयक के विरोध में जनवरी से सड़कों पर जोरदार प्रदर्शन देखे जा रहे हैं। उनकी सरकार का प्रस्तावित ‘ज्यूडीशियल ओवरहाल’ का उद्देश्य एक समिति में जजों की नियुक्ति में ऊपरी हाथ रखना है जो जजों की नियुक्ति करना है-ठीक वैसे ही जैसा प्रस्ताव रिजिजू द्वारा दिया गया है जिन्हें यहां तक कि उपराष्ट्रपति का समर्थन भी प्राप्त है। 

इसराईली प्रस्ताव में एक खंड शामिल है जो न्यायपालिका को इसकी संसद कनेसेट द्वारा पारित कानून पर प्रहार करने के लिए न्यायपालिका को विभाजित करता है। इतना ही नहीं प्रस्तावित कानून न्यायपालिका की हस्तक्षेप करने की  शक्तियों को भी वापस लेने का प्रस्ताव करता है। यहां उस देश के ‘बुनियादी कानूनों’ के लिए खतरा दिखाई देता है। यह लोगों के अधिकारों और स्वतंत्रता को परिभाषित करने वाले संसद द्वारा अधिनियमित कानूनों का एक समूह है और संविधान की हमारी अपनी मूल सरंचना के समान है। 

इसराईल में प्रस्तावित कानूनों के इन सभी प्रावधानों की एक प्रतिध्वनि है कि भारत में वर्तमान सरकार क्या करना चाहेगी। कई वरिष्ठ सरकारी और भाजपा पदाधिकारी सार्वजनिक रूप से इसे लेकर बोलते रहे हैं। जबकि इस तरह के कठोर प्रस्तावों के खिलाफ देश में अभी तक कोई जन आंदोलन नहीं है, प्रस्तावों की मांग को वापस लेकर इसराईल के नागरिक जनवरी से बड़ी संख्या में सड़कों पर उतर रहे हैं। 

न केवल सामान्य नागरिक, बल्कि  सरकारी कर्मचारी, रक्षा-सेवा पेशेवर, शिक्षाविद्, वकील, स्वास्थ्य कार्यकत्र्ता, उद्योगपति और यहां तक कि राजनयिक कर्मचारी भी सड़कों पर हैं और अपना विरोध दर्ज करवा रहे हैं। इसराईल के मुख्य अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे को कर्मचारियों के ड्यूटी से दूर रहने के कारण कई घंटों के लिए काम बंद करना पड़ा। इतना ही नहीं, भारत सहित कई देशों में इसराईल के राजनयिक मिशन राजनयिक कर्मचारियों की हड़ताल के कारण कुछ समय के लिए पंगु हो गए। 

देश के रक्षामंत्री योआव गैलैंट, जिन्होंने प्रधानमंत्री को प्रस्तावित विधेयकों को छोडऩे की सलाह दी थी, को नेतन्याहू ने सरसरी तौर पर हटा दिया था। इसके बाद राष्ट्रीय नायक के रूप में उभरे हटाए गए मंत्री के समर्थन में देश भर में एक स्वत:स्फूर्त विरोध हुआ। ड़े पैमाने पर शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन कनेसेट में कानून पेश किए जाने से एक दिन पहले शक्ति के एक बड़े प्रदर्शन के तौर पर समाप्त हुआ। इसने नेतन्याहू को यह घोषणा करने के लिए मजबूर किया कि वह वर्तमान में प्रस्तावित कानून को स्थगित कर रहे हैं। उन्होंने इस मुद्दे पर लोगों के विभिन्न वर्गों के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत करने पर भी सहमति जताई। हालांकि नागरिकों ने प्रस्तावित कानूनों को वापस लेने तक अपने साप्ताहिक विरोध प्रदर्शन को जारी रखने का फैसला किया है। 

भारत में कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच घटनाक्रमों पर जो कोई भी नजर रखे हुए हैं वह तुरंत इन्हें सरकार के इरादों से जोड़ देगा। यह सच है कि विपक्षी दल या आम नागरिक अभी तक सड़कों पर नहीं उतरे लेकिन न्यायपालिका की स्वतंत्रता और शक्ति पर अंकुश लगाने के लिए सरकार के किसी भी हद तक जाने का खतरा बहुत वास्तविक है। प्रधानमंत्री और संघ प्रमुख सहित भाजपा और आर.एस.एस. के किसी भी शीर्ष नेता ने कानून मंत्री के लगभग अनवरत अभियान के खिलाफ बात नहीं की है। इससे निश्चित रूप से यह आभास होता है कि उन्हें सत्ता का आशीर्वाद प्राप्त है। 

संयोग से, जबकि इसराईल नवीनतम उदाहरण है, हाल के दिनों में श्रीलंका, फ्रांस, ईरान और यहां तक कि चीन सहित दुनिया के कई हिस्सों में सरकारों के खिलाफ बड़े पैमाने पर विद्रोह देखा गया है। इन बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों ने संबंधित सरकारों को अपने प्रस्तावों की समीक्षा करने या कड़े विरोध के कारण उपायों को वापस लेने के लिए प्रेरित किया है। 

इसराईल ने नेतन्याहू सरकार जो करने का प्रस्ताव कर रही थी और यहां की सरकार जो विचार कर रही है, उसमें आश्चर्यजनक समानता की किसी के द्वारा अनदेखी नहीं की जा सकती। अब तक यह भी सर्वविदित हो चुका है कि सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है कि  उसके द्वारा लाए गए किसी भी कानून को संसद के माध्यम से लागू किया जा सकता है जिस तरह वह किसी भी ऐसे विशेष मुद्दे पर बहस को रोकने में सफल रही है जिसे वह पसंद नहीं करती। 

पिछले कुछ दिनों में संसद के दोनों सदनों को विपक्षी सदस्यों द्वारा नहीं बल्कि खुद सत्ता पक्ष के सदस्यों द्वारा पंगु बनाना, इसकी क्षमता का एक उदाहरण है। जिस जल्दबाजी के साथ एक निचली अदालत ने कार्रवाई की थी, अत्यधिक विवादास्पद निर्णय के तहत जिस तेजी से राहुल गांधी को अयोग्य घोषित किया गया और अपना घर खाली करने को कहा गया, उसने कई सवाल खड़े किए हैं। एक सरकार, जिसे अब अपनी पसंद की हर चीज के लिए अपना रास्ता बनाने की आदत हो गई है, को इसराईल और अन्य देशों में हाल के घटनाक्रमों से सीख लेनी चाहिए।-विपिन पब्बी    
    


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News