भारतीय रेल की ‘कार्य प्रणाली’ में सुधार लाने की जरूरत

Thursday, Dec 05, 2019 - 02:46 AM (IST)

विशालकाय भारतीय रेल देश की सबसे बड़ी नियोक्ता है जो 14 लाख से ऊपर कर्मचारियों को रोजगार प्रदान करती है। इसके पास 1.20 लाख किलोमीटर का लम्बा ट्रैक है।  भारतीय रेल रोजाना 2.3 करोड़ यात्रियों को ले जाती है। इतना बड़ा नैटवर्क तथा स्रोतों से भरपूर होने के कारण राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में यह अपना योगदान दे रही है। 

संसद में कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारतीय रेल कर्ज में डूबने की ओर अग्रसर है तथा इसकी कार्य प्रणाली दिन-प्रतिदिन बदतर होती जा रही है। आंकड़े दर्शाते हैं कि रेलवे की आप्रेटिंग रेशो 98.44 प्रतिशत हो गई है जोकि एक दशक में सबसे निचले स्तर की है। राजस्व जुटाने के लिए खर्च किए जाने वाले पैसे को आप्रेटिंग रेशो कहा जाता है। रेलवे के पास अपनी प्राप्तियों में बहुत कम पैसा बचा है जोकि विकास कार्यों पर खर्च किया जाना है। अन्य शब्दों में सभी प्राप्तियों को रेलवे को दिन-प्रतिदिन बढ़ रही लागतों के ऊपर खर्च करना है जिसमें श्रम बल की मजदूरी तथा रेल ट्रैक व आधारभूत ढांचों की मुरम्मत शामिल है। 

रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि यदि अन्य कम्पनियों जोकि खनन तथा थर्मल पावर यूनिट से संबंध रखती हैं, से अग्रिम राशि प्राप्त न की जाए तो रेशो 100 प्रतिशत को पार कर चुकी होगी। इसका मतलब है कि यदि इन अग्रिम राशियों को खाते में न लिया जाए तो रेलवे एक बड़ा घाटा दर्शाएगी। रेलवे के वित्तीय हालातों पर कैग की रिपोर्ट का कहना है कि रेलवे के पास नैगेटिव बैलेंस  5,676.29 करोड़ हो जाएगा जोकि 1,665.61 करोड़ सरप्लस होना चाहिए था। 

सबसिडी के कारण यात्री संचालन को भारी नुक्सान पहुंच रहा
यहां महत्वपूर्ण बात यह भी है कि यात्री भाड़े को दी जा रही भारी सबसिडी के कारण यात्री संचालन को भारी नुक्सान पहुंच रहा है। वास्तव में रेलवे की कुल प्राप्तियों का दो तिहाई यात्री टिकटों पर सबसिडियां उपलब्ध करवाने पर खर्च किया जाता है जबकि रेल यात्रियों से यह कुल राजस्व का एक तिहाई ही प्राप्त करती है। भारतीय रेलवे  माल ढुलाई के लिए भाड़े को बढ़ा कर यात्री किराए को क्रास सबसिडी करती है। इसके नतीजे में कम्पनियों तथा व्यापारियों को वस्तुओं की ढुलाई हेतु ऊंची दर देने के लिए बाध्य होना पड़ता है। नतीजतन ये सड़क परिवहन पर निर्भर हो जाते हैं। इस तरह माल ढुलाई की सस्ती लागत होने के बावजूद रेलवे वस्तुओं को ले जाने के लिए ऊंची दरें लेती है। 

सरकार को वोटों के खो जाने का डर
दूसरी ओर यात्री टिकट दर भी राजनीति का संवेदनशील मुद्दा बना होता है तथा सरकार वोटों के खो जाने के डर कारण यात्री टिकटों के दाम नहीं बढ़ाती। यदि सरकार को सेवाओं को अपग्रेड करना है तो उसे कड़वा घूंट पीना होगा। रेलवे द्वारा दी जाने वाली सेवाएं विश्व स्तरीय नहीं हैं। यह फंड की कमी के कारण है जिसके कारण ही रेलवे मूल सहूलियतों में अपना प्रदर्शन नहीं सुधार रही और न ही अपने नैटवर्क के माध्यम से जुडऩे के लिए नए ट्रैक जुटा पा रही है। रेल मंत्रालय पीयूष गोयल की निगरानी में चल रहा है। रेलवे स्टेशनों तथा ट्रेनों के भीतर स्वच्छता में भी सुधार की जरूरत है। ट्रेनों में परोसे जाने वाले खाने की गुणवत्ता को भी सुधारने की आवश्यकता है। इसके अलावा गाडिय़ों के समय पर चलने को भी रेल मंत्रालय को यकीनी बनाना होगा। 

प्रीमियम गाडिय़ों की तरफ रेलवे का कम ध्यान
यह स्पष्ट है कि शताब्दी तथा राजधानी जैसी प्रीमियम गाडिय़ों की तरफ भी बहुत कम ध्यान दिया जाता है। हालांकि इन गाडिय़ों के लिए रेलवे किराए की ऊंची दर लेती है। दी जाने वाली सहूलियतों को सुधारने का बहुत कम प्रयास किया जाता है। रेल यात्री ज्यादा पैसा देने को तैयार हैं। इसके बावजूद  भी रखरखाव सही ढंग से नहीं हो पाता। 

आम जनता के लिए यात्रा का सबसे सस्ता विकल्प उपलब्ध करवाना भारतीय रेलवे की जिम्मेदारी है। रेलवे को कुछ गाडिय़ों के निजीकरण के बारे में देखना होगा। कम से कम प्रीमियम गाडिय़ों के संचालन हेतु विदेशी विशेषज्ञों से मदद  लेनी चाहिए। इसके नतीजे में रेलवे ऊंची प्राप्तियां ले सकेगा जिसका इस्तेमाल आम सहूलियतों की दिशा सुधारने के लिए किया जा सकेगा। इसके अलावा भारतीय रेलवे को ट्रैक के आसपास पड़ी खाली जमीन का इस्तेमाल भी करना होगा जिससे इसके राजस्व में बढ़ौतरी हो पाएगी।-विपिन पब्बी            
 

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