संसद की गरिमा बहाल करने के लिए ‘एस्मा’ लागू करने की आवश्यकता

Wednesday, Dec 08, 2021 - 06:46 AM (IST)

पहले भी हम देख चुके हैं कि किस तरह भारतीय लोकतंत्र के पावन मंदिर संसद का उपहास किया जाता है, उसका तमाशा बनाया जाता है और उसे सर्कस कहा जाता है, जहां पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के सदस्यों के बीच वाक् युद्ध की तू-तू, मैं-मैं में करदाताओं के करोड़ों रुपए बर्बाद होते हैं। इसके चलते सदन में हाथापाई, बहिर्गमन और अव्यवस्था देखने को मिलती है और ऐसा करने पर सदस्यों को थोड़ा-सा भी पश्चाताप नहीं होता। 

संसद के शीतकालीन सत्र में पहले की तरह निर्मम राजनीति हावी हो रही है, जहां पर लोकसभा को 3 विवादास्पद कृषि कानूनों को रद्द करने में केवल 4 मिनट लगे, जिनके चलते दिल्ली की सीमाओं पर किसान एक वर्ष से अधिक समय से बैठे हुए हैं। सत्ता पक्ष ने इन विधेयकों पर चर्चा के लिए विपक्ष की मांग पर ध्यान नहीं दिया। राज्य सभा में सभापति वेंकैया नायडू द्वारा कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, शिव सेना, भाकपा और माकपा के 12 सांसदों को निलंबित करने के बाद लगातार अव्यवस्था बनी हुई है। 

सभापति ने इन सदस्यों को पिछले सत्र में अपने दुव्र्यवहार अवमाननापूर्ण व्यवहार, अध्यक्ष पीठ की ओर कागज फैंकने, हिंसक व्यवहार तथा सुरक्षाकर्मियों पर इरादतन हमला करने के कारण निलंबित किया है। हालांकि विपक्ष इसे लोकतंत्र की हत्या कह रहा है। न केवल मानसून सत्र को अपनी निर्धारित अवधि से 2 दिन पूर्व स्थगित करना पड़ा, जिसमें पेगासस जासूसी मुद्दे और विवादास्पद कृषि कानूनों को लेकर विपक्ष लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहा था, अपितु इस सत्र में हमारे सांसदों ने व्यवधान, अव्यवस्था, विधेयकों को फाड़कर, महासचिव की कुर्सी पर खड़े होकर और एक-दूसरे से धक्का-मुक्की कर संसद और लोकतंत्र को भी शर्मसार किया। 

मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में यह संसद का दूसरा सबसे कम और पिछले 2 दशकों में तीसरा सबसे कम उत्पादक सत्र था। इस दौरान 10 मिनट से कम अवधि में 15 विधेयक और 30 मिनट से कम अवधि में 26 विधेयक पारित किए गए। राज्य सभा में प्रतिदिन औसतन 1.1 विधेयक पारित कर 19 विधेयक पारित किए गए। व्यवधान और स्थगन के कारण राज्य सभा में 36 घंटे 26 मिनट बर्बाद हुए। 

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। सांसदों को सबसे पहले 1963 में निलंबित किया गया था, जब लोकसभा के कुछ सांसदों ने राष्ट्रपति राधाकृष्णन के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को संबोधन में व्यवधान डाला था और फिर बहिर्गमन कर दिया था। वर्ष 1989 में ठक्कर कमीशन की रिपोर्ट पर चर्चा को लेकर लोकसभा में व्यवधान डालने के मुद्दे पर 63 सांसदों को निलंबित किया गया था। वर्ष 2007 में मंत्री से महिला आरक्षण विधेयक छीनने के चलते राज्यसभा के 7 सदस्यों को निलंबित किया गया था। 

यह वास्तव में बहुत ही दु:खद स्थिति है कि कानून निर्माताओं द्वारा कानूनों पर समुचित चर्चा के बिना कानूनों को पारित किया जा रहा है, जिसके चलते उनमें अनेक खामियां रह रही हैं और लोगों को यह भी पता नहीं चल रहा है कि कानूनों को पारित करने का क्या उद्देश्य है। 

3 विवादास्पद कृषि कानूनों के अलावा साधारण बीमा व्यवसाय राष्ट्रीयकरण संशोधन विधेयक 2021, जिसमें साधारण बीमा कंपनियों के निजीकरण का प्रावधान है, को 8 मिनट में पारित किया गया। कराधान नीति संशोधन विधेयक, 2021 को विपक्ष द्वारा इसे जांच के लिए प्रवर समिति को भेजने की मांग के बावजूद केवल 5 मिनट में पारित किया गया। संसद ने अपना 10 प्रतिशत से कम समय विधायी कार्यों में लगाया और अधिकतर समय बर्बाद किया है। 

हालांकि हमारे सांसद संसदीय लोकतंत्र के सर्वोत्तम सिद्धान्तों का पालन करने की दुहाई देते रहते हैं, अनेक सदस्यों ने सभा के बीचों-बीच आकर व्यवधान डालने की एक आदत बना ली है। सत्ता पक्ष अपने संख्या बल का प्रदर्शन करता है जबकि विपक्ष अपनी वाक् शक्ति और बाहुबल का प्रदर्शन करता है, जिसके चलते चर्चा की विषय वस्तु पर ध्यान केन्द्रित करने की बजाय अव्यवस्था पैदा हो जाती है और इस क्रम में संसद की सर्वोच्चता का स्थान गलियों का झगड़ा ले लेता है। 

समय आ गया है कि हमारी प्रणाली में आई इस खामी पर गंभीरता से विचार किया जाए और इसमें तत्काल सुधार लाया जाए। संसद को पुन: पटरी पर लाने और संसद की सर्वोच्चता स्थापित करने के लिए नियमों में आमूल-चूल परिवर्तन किया जाए, हालांकि स्थिति में सुधार के लिए कोई जादुई छड़ी नहीं है। यह प्रक्रिया लंबी और धीमी होगी। हमें यह स्पष्ट करना होगा कि क्या हम शासन के एक सभ्य स्वरूप के रूप में लोकतंत्र के साथ हैं या हमने लोकतंत्र को दुष्टों और बिचौलियों का तंत्र बना दिया है। 

21वीं सदी की संसद में 19वीं सदी की धारणाओं वाले लोगों के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए और इसके लिए सभी पक्ष जिम्मेदार हैं। आज कांग्रेस, राकांपा, तृणमूल कांग्रेस ऐसा कर रही हैं तो कल भाजपा ऐसा कर रही थी, जिसने यू.पी.ए.-1 और यू.पी.ए.-2 सरकारों को कार्य करने नहीं दिया था और कहा था कि संसद में व्यवधान डालना अलोकतांत्रिक नहीं है और इसे कार्य न करने देना भी एक तरह का लोकतंत्र है। 

सरकार और विपक्ष अपनी दलीय राजनीतिक निष्ठा से ऊपर उठें, तार्किक बातों पर ध्यान दें और इस बात से निर्देशित हों कि हमारे देश को क्या चाहिए। हमारे नेताओं को समझना होगा कि संसदीय लोकतंत्र चर्चा, वाद-विवाद और आम सहमति पर आधारित शासन का एक सभ्य स्वरूप है। हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने मीडिया के माध्यम से कहा था कि स्वस्थ और गुणवत्तापूर्ण चर्चा के लिए 2 घंटे, आधा दिन या एक दिन निर्धारित करना चाहिए। 

संसद की गरिमा बहाल करने के लिए उसके कार्यकरण को पटरी पर लाने हेतु हमारे नेताओं को तार्किक बातों पर ध्यान देना होगा तथा उत्तरदायित्व निर्धारित करना होगा। शायद इसका उपाय यह है कि संसद को आवश्यक सेवा अनुरक्षण अधिनियम (एस्मा) के अंतर्गत लाया जाए, जिससे संसद के कार्य में व्यवधान डालना एक अपराध बन जाएगा। संसद हमारे लोकतंत्र की मेहराब है तथा इसकी छवि बनाई रखनी चाहिए ताकि लोगों का इसमें विश्वास और सम्मान बना रहे। इस विश्वास और संवाद को बहाल किया जाना चाहिए। क्या हमारे नेतागण ऐसा होने देंगे?-पूनम आई. कौशिश

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