जनसंख्या नियंत्रण समय की जरूरत

Wednesday, Aug 21, 2019 - 02:49 AM (IST)

स्वतंत्रता दिवस पर जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण में बढ़ती जनसंख्या पर चिंता जताई तो कई लोगों की भौंहें तन गईं। यह हैरानी इसलिए थी कि इंदिरा गांधी सरकार द्वारा आपातकाल के समय जनसंख्या नियंत्रण के लिए उठाए गए दमनकारी कदमों के बाद अधिकतर राजनेताओं के लिए जनसंख्या कभी मुद्दा नहीं रहा। इंदिरा के परिवार नियोजन कार्यक्रम की काफी निंदा हुई और यह अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सका। बाद में मंत्रालय का नाम बदल कर परिवार कल्याण कर दिया गया था। 

भारत की जनसंख्या 134 करोड़ है, जो आजादी के बाद 4 गुणा बढ़ गई है। जनसंख्या को लेकर मोदी की चिंता जायज है क्योंकि संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक जनसंख्या सम्भावना 2019 के अनुसार, 2019 से 2050 के बीच भारत की जनसंख्या में लगभग 27.3 करोड़ लोग और जुड़ जाएंगे। इन आंकड़ों और रिपोर्ट के अनुसार 2027 तक भारत चीन को पछाड़ कर दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन जाएगा। भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती इतनी बड़ी जनसंख्या को समायोजित करने की है। इन आंकड़ों को देखते हुए प्रधानमंत्री का कहना है ‘‘अब समय आ गया है कि हम इन चुनौतियों का सामना करें।’’

अपने पहले कार्यकाल में मोदी जहां जनसांख्यिकी लाभांश की बात करते थे, वहीं अब दूसरे कार्यकाल में वह यह समझ चुके हैं कि अधिक जनसंख्या शायद अपने आप में बुरी बात नहीं है लेकिन इसका विकास में योगदान होना चाहिए। इसे पूंजी, तकनीक और आधारभूत ढांचे तथा कौशल की सपोर्ट मिलनी चाहिए। यही कारण है कि प्रधानमंत्री अब शिक्षा को बढ़ती जनसंख्या को आधुनिक तथा उत्पादक बनाने के माध्यम के रूप में देख रहे हैं। हमारा देश पहले ही पीने के पानी की भारी कमी, सीवरेज ट्रीटमैंट, अपर्याप्त वर्षा, जलवायु परिवर्तन तथा बढ़ते प्रदूषण, अधिक शिशु मृत्यु दर तथा गरीबों में निम्र जीवन स्तर जैसी समस्याओं का सामना कर रहा है। 

जीवन स्तर में सुधार 
प्रधानमंत्री का भाषण मुख्य तौर पर इन्हीं गरीब वर्गों की ओर केन्द्रित था तथा छोटे परिवार के लिए उनकी अपील उनके जीवन स्तर में सुधार के प्रति लक्षित थी। उन्होंने पाया कि गरीब लोगों का जीवन स्तर इसलिए नहीं बढ़ रहा क्योंकि उनके परिवार बड़े हैं। इसे राष्ट्रीय मुद्दा बनाते हुए उन्होंने कहा, ‘‘जो लोग छोटे परिवार की नीति पर चलते हैं वे भी राष्ट्र के विकास में योगदान देते हैं; यह भी एक प्रकार की देशभक्ति है।’’ इस समय मोदी जनसंख्या विस्फोट की बात क्यों कर रहे हैं? ऐसा इसलिए है क्योंकि गत चुनावों में मिले विशाल जनादेश से उनके हाथ काफी मजबूत हो गए हैं। राजनीतिक तौर पर मोदी इस समय काफी शक्तिशाली हैं, जबकि विपक्ष कमजोर है। इसके अलावा गत सत्र के दौरान सरकार राज्यसभा में अल्पमत के बावजूद तीन तलाक और धारा 370 से संबंधित विवादास्पद विधेयकों को पास करवाने में सफल रही है। इससे भी सरकार का उत्साह चरम पर है। 

दक्षिणपंथियों की चिंता
दूसरे, भाजपा सहित भारत के दक्षिणपंथी अल्पसंख्यकों की जनसंख्या तेजी से बढऩे के प्रति हमेशा चिंता जताते रहे हैं। उनका मानना है कि मुस्लिम अपनी जनसंख्या बढ़ाकर देश में हिन्दुओं से आगे निकलना चाहते हैं। कुछ समय पहले आर.एस.एस. प्रमुख मोहन भागवत ने दशहरे के अवसर पर अपने वार्षिक संबोधनमें कहा था, ‘‘जनसंख्या नीति के बारे में हमें वोट बैंक की राजनीति से ऊपर उठ कर एक समग्र दृष्टिकोण अपनाना होगा जो सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू हो।’’ संसद में भी भाजपा सदस्यों ने यह मुद्दा उठाया था। पिछले दिनों भाजपा सांसद राकेश सिन्हा ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए प्राइवेट मैम्बर बिल पेश किया था। इससे पहले एक अन्य भाजपा सांसद संजीव बाल्यान, जो अब मंत्री हैं, ने 124 सदस्यों के समर्थन के साथ एक अन्य बिल पेश किया था। 

दो बच्चों की स्वैच्छिक नीति 
अटल बिहारी वाजपेयी ने भी सन् 2000 में राष्ट्रीय जनसंख्या नीति पेश की थी। लेकिन इसमें लोगों के लिए दो बच्चों की नीति को स्वैच्छिक प्रतिबद्धता बनाया गया था। मोदी सरकार ने भी इसी नीति पर चलते हुए परिवार नियोजन कार्यक्रम को लक्ष्य मुक्त व स्वैच्छिक रखा है। मोदी के भाषण से यह अनुमान लगाया जा रहा है कि हस्तक्षेपकारी जनसंख्या नीति ज्यादा दूर नहीं है। राज्य और धार्मिक स्तर पर यह बहुत संवेदनशील मामला है। उत्तर-दक्षिण विभाजन तथा हिन्दू-मुस्लिम विभाजन जनसंख्या नियंत्रण के दो प्रमुख मुद्दे हैं। दक्षिणी राज्य यह अनुभव करते हैं कि जनसंख्या का स्तर कम करने में उनको मिली सफलता से केन्द्र से उन्हें मिलने वाले संसाधनों में कमी आई है। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी का कहना है कि यह सामाजिक सुधार है। 

प्रधानमंत्री की कही हुई प्रत्येक बात का मतलब होता है और उन्होंने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में इस मुद्दे को उठाकर जनसंख्या नियंत्रण के लिए देश की जनता को तैयार करने की कोशिश की है। इस समय दो बच्चों की नीति, बच्चों के जन्म में अंतर, परिवार नियोजन माध्यमों को सख्ती से लागू करने तथा लोगों को स्वैच्छिक बंध्याकरण के लिए प्रोत्साहित करने की जरूरत है। सरकारी नौकरियों, सहायता तथा सबसिडी और अन्य लाभ प्राप्त करने के लिए दो बच्चों की नीति को मापदंड बनाया जाना चाहिए। प्रोत्साहन और डिसइन्सैंटिव परिवार को छोटा रखने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा ऐसे कई कार्यक्रम पहले से ही लागू किए जा रहे हैं लेकिन जागरूकता लाने के लिए काफी कुछ करने की जरूरत है। ऐसे समय में जबकि भारत प्रमुख आॢथक शक्ति बनना चाहता है, यह परिभाषित करने की जरूरत है कि बढ़ती जनसंख्या एक अवसर है अथवा खतरा।-कल्याणी शंकर  
                          

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