आतंकवाद से निपटने के लिए ‘बहुआयामी नीति’ की जरूरत

punjabkesari.in Saturday, Apr 06, 2019 - 03:44 AM (IST)

जम्मू -कश्मीर और अन्य स्थानों पर यदि कोई देश पाक समर्थित आतंकवाद से सबसे ज्यादा पीड़ित रहा है तो वह भारत है। लगभग तीन दशक तक नई दिल्ली ने बंधे हुए हाथों से सीमा पार आतंकवाद के खिलाफ युद्ध जैसी स्थिति का सामना किया है। पुलवामा में 40 सी.आर.पी.एफ. जवानों की शहादत के बाद पाक अधिकृत क्षेत्रों में जवाबी हवाई हमले के अलावा भारत ने कभी भी आतंकवाद के मुख्य ठिकानों पर कार्रवाई नहीं  की। इसके बावजूद अमरीका में 9/11 आतंकी हमले के बाद विश्व आतंकवाद से मुकाबले के लिए काफी हद तक संगठित हो चुका है। 

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में हाल ही में जैश-ए-मोहम्मद के मुखिया मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के मामले में अमरीका और चीन के बीच खूब शक्ति प्रदर्शन हुआ। अब से पहले कभी भी भारत के लिए ङ्क्षचता का विषय बने किसी आतंकवादी पर यू.एन. कौंसिल में इतनी गम्भीरता से चर्चा नहीं हुई थी।

चीन का दोहरा रवैया
चीन को छोड़कर परिषद के अन्य सदस्य फ्रांस और यू.के. भी इस आतंकवादी पर प्रस्तावित प्रतिबंध लगाने के पक्ष में हैं लेकिन इस बात में जरूर कोई षड्यंत्र है कि चीन एक तरफ तो शिजियांग प्रांत में उईगर मुसलमानों को मूलभूत अधिकारों से भी वंचित रखता है, वहीं दूसरी तरफ यू.एन. परिषद में पाकिस्तान के खतरनाक आतंकवादी मसूद अजहर के मामले में पाकिस्तान का मजबूती से समर्थन करता है। हालांकि इस्लामाबाद मसूद के अपने यहां होने से इंकार करता रहा है लेकिन सभी जानते हैं कि इस आतंकवादी को पाकिस्तान की आई.एस.आई. और सेना की शह हासिल है। 

चीन इस्लामाबाद की ओर से आतंकवादियों का समर्थन क्यों कर रहा है, क्या इसका पी.ओ.के. क्षेत्र में चीन की उपस्थिति से कुछ लेना-देना है जो इसके सी.पी.ई.सी.-बी.आर.आई. प्रोजैक्ट के लिए महत्वपूर्ण है। शायद हां। इसके अलावा पाकिस्तान के आतंकवादियों का भारत विरोधी रवैया चीन के रणनीतिक, आॢथक और राजनीतिक हितों को साधता है। दरअसल एशिया और यूरोप में बदलते हुए भू-राजनीतिक वास्तविकताओं के दौर में चीन-पाक समझौता एक मुख्य फैक्टर है। यहां यह बात माननी होगी कि भारत इस समय पेचीदा भू- राजनीतिक स्थिति में है। एक तरफ जहां चीन अपनी ताकत लगातार बढ़ा रहा है, वहीं इमरान खान की सरकार अंधराष्ट्रीयता की ओर बढ़ रही है। 

यह भी तथ्य है कि चीन इस बात को मानता है कि एशिया में भारत एक बड़ी शक्ति है। मेरे चीन दौरे के दौरान वहां के बहुत से बुद्धिजीवियों और नेताओं ने यह बात स्वीकार की। चीनी नेतृत्व कभी नहीं चाहता कि भारत सैन्य तौर पर ताकतवर बने। इसका अर्थ यह है कि बीजिंग चाहता है कि नई दिल्ली दूसरे नम्बर की शक्ति बनी रहे ताकि वह बड़ी वैश्विक शक्तियों के बीच अपनी धौंस जमा सके। 

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति आइसनहावर ने प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट की पेशकश की थी लेकिन नेहरू ने विनम्रता से यह कहते हुए इंकार कर दिया कि चीन इसका ज्यादा अधिकारी है लेकिन चीन कभी भी भारत के प्रति कृतज्ञ नहीं रहा। उसने कभी भी भारत की संवेदनाओं का सम्मान नहीं किया। जैसा कि हम जानते हैं, आतंकवाद से लडऩे के लिए कोई शार्टकट नहीं होता। यह एक लम्बी अवधि की लड़ाई है जिसे पूरे संकल्प और संसाधनों के साथ लडऩा होगा। इसके अलावा एक नई गतिशील लोकतांत्रिक विचारधारा पैदा करनी होगी जो नीति के तौर पर व जमीनी स्तर पर कट्टरवाद का मुकाबला कर सके। साऊथ ब्लाक को एक नई रणनीति के तहत पाक समॢथत आतंकवाद का मुकाबला करना होगा ताकि हमारे उदार, स्वतंत्र, धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को कट्टरवादी ताकतें और आतंकवादी नुक्सान न पहुंचा सकें। 

इस संबंध में यह स्पष्ट है कि इस्लामाबाद और बीजिंग से निपटने के लिए भारत को अस्थायी नीति छोड़कर स्थायी नीति अपनानी होगी। दूसरे भारत को देश के समग्र हित को मद्देनजर रखते हुए छोटी और लम्बी अवधि की नीतियां बनानी होंगी। तीसरे, यह भी बहुत जरूरी है कि हमारे मंत्री और नेता सीमा पार आतंकवाद पर असंतुलित बयान देने से परहेज करें। हमें अपनी उदारवादी सोच और धर्मनिरपेक्षता पर गर्व होना चाहिए, जिन मूल्यों के लिए हमारा देश जाना जाता है। मैं उम्मीद करता हूं कि प्रधानमंत्री संघ परिवार कार्यकत्र्ताओं की पथभ्रष्टता पर ध्यान देंगे। सबसे दुखद बात यह है कि सरकार और विपक्षी दलों दोनों ने विभिन्न मुद्दों और समस्याओं का राजनीतिकरण कर दिया है जिससे देश के हितों को नुक्सान होता है। क्योंकि नेताओं के एकतरफा बयान सीमा पार आतंकवाद से निपटने के सुरक्षा बलों के इरादों को कमजोर करते हैं।

वास्तव में भारत को चीन-पाक सहयोग तथा आतंकवादियों से उनके गठजोड़ का तोड़ ढूंढना होगा। हमें राजनीतिक और अन्य लिहाज से आतंकवाद और उसके प्रायोजकों के खिलाफ एकजुट होना होगा। सौभाग्य से, चीन-पाक के आतंकी चेहरे मसूद अजहर को औकात में रखने के लिए वैश्विक शक्तियां हमारे साथ हैं।-हरि जयसिंह
 


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