चीन से निपटने के लिए ‘सक्रिय रणनीति’ की जरूरत

Friday, Sep 18, 2020 - 03:01 AM (IST)

वास्तविक नियंत्रण रेखा सेनाओं को शीघ्र हटाने तथा तनाव दूर करने के लिए भारतीय तथा चीनी विदेश मंत्रियों द्वारा अपनाया गया पांच सूत्रीय मंत्र कब तक कायम रह पाएगा। पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी (पी.एल.ए.) द्वारा सीमा पार हमलों, गतिशीलता तथा भारतीय सेना के साथ पैंगोंग त्सो, गलवान, देपसांग, सिक्किम तथा वास्तविक नियंत्रण रेखा के साथ लगते अन्य क्षेत्रों में गत 5 महीनों के दौरान अपनाए गए अडिय़ल रवैये के पेइचिंग के ट्रैक रिकार्ड को देखते हुए मेरे पास कुछ अच्छे की आशा करने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं है। 

मैंने बार-बार देश को चेताया है कि चीन पर एक विश्वसनीय मित्र के तौर पर भरोसा नहीं किया जा सकता। यहां तक कि 10 सितम्बर को मास्को में विदेश मंत्री एस. जयशंकर की अपने चीनी समकक्ष के साथ बैठक के बाद भी मैं सॢदयों से पहले लद्दाख में पेइचिंग के व्यवहार को लेकर आश्वस्त नहीं हो सकता। लद्दाख की उन ऊंचाइयों पर तापमान शून्य से 40 डिग्री सैल्सियस तक कम हो सकता है। यह निश्चित तौर पर मानव की सहनशक्ति के लिए नहीं है। 

भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 15 सितम्बर को लोकसभा में कहा था कि चीन ने एल.ए.सी. के साथ बड़ी संख्या में सैनिकों तथा आयुध को गतिशील किया है। उन्होंने इशारा किया कि गोरगा, कोंगका ला तथा पैंगोंग त्सो (झील) के उत्तरी तथा दक्षिणी किनारों पर संघर्ष के कई क्षेत्र हैं। पैंगोंग त्सो चारों ओर से बंद झील है जो हिमालय में 4225 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह 134 किलोमीटर लम्बी तथा लद्दाख से तिब्बतन स्वायत्तशासी क्षेत्र तक फैली हुई है। 

न तो संयुक्त वक्तव्य में और न ही दोनों ओर से जारी टिप्पणियों में अप्रैल में आमना-सामना होने से पहले की यथास्थिति बहाल करने की बात कही गई है। न ही विशेष  तौर पर चीन को उन स्थानों से वापस लौटने के लिए कहा गया है जो उसने पैंगोंग त्सो, देपसांग तथा एल.ए.सी. के अन्य हिस्सों में हथिया लिए हैं। यह दिखाता है कि साऊथ ब्लाक चीन के पत्ते बहुत सावधानीपूर्वक खेल रहा है। मैं नई दिल्ली की दुविधा को समझता हूं। यह संघर्ष की किसी भी स्थिति से बचना चाहती है जो युद्ध का कारण बन सकती है। 

यद्यपि मैं गर्व के साथ कह सकता हूं कि भारतीय सैनिकों ने पैंगोंग त्सो के दक्षिण में पांच महत्वपूर्ण चोटियों पर अपना नियंत्रण बना लिया है। सैन्य सूत्रों के अनुसार भारत एक प्रभुत्वशाली स्थिति में है क्योंकि इसने पी.एल.ए. की पोजीशन्स के उत्तर तथा पश्चिम में ऊंचाइयों पर अपना अधिकार जमा लिया है। पर्वतीय क्षेत्रों में ये ऊंचाइयां भारतीय सैनिकों को चीन की सैन्य गतिविधियों पर नजर रखना आसान बनाएंगी। इससे सेना को पी.एल.ए. की संदिग्ध गतिविधियों के खिलाफ जल्दी से कार्य योजना बनाने में मदद मिलेगी। लेकिन यह अवश्य स्वीकार किया जाना चाहिए कि भारत को एशियाई देशों तथा पूरे विश्व में नीचा दिखाने के लिए राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अपनी ही भू-रणनीतिक गणनाएं हैं। इस पृष्ठभूमि में मैं यह कहना चाहूंगा कि हमारे नेताओं को चीन के संदिग्ध रणनीतिक उद्देश्यों को मद्देनजर रखते हुए भारत की नीतियों तथा रणनीतियों का पुन:मूल्यांकन करना तथा एक गतिशील रणनीतिक-रोधी कार्य योजना बनानी चाहिए। 

मेरा बिंदू साधारण है। हम कैसे पड़ोसी देश पर विश्वास कर सकते हैं, जो तकनीकी रूप से ‘विदेशी लक्ष्यों’ के अपने वैश्विक डाटा बेस में विभिन्न महत्वपूर्ण स्थानों के साथ-साथ संगठनों में 10,000 से अधिक भारतीयों की जासूसी में संलिप्त है? बहुत हो चुका। माओवादी देश के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से निपटने के लिए हमें एक नए दृष्टिकोण की जरूरत है। एक रिपोर्ट के अनुसार पी.एल.ए. ने पूर्वी लद्दाख में अग्रिम रेखा पर 40,000 के करीब सशस्त्र सैनिक तैनात किए हैं। शुक्र है भारत ने भी इस सैक्टर में 2 नियमित सैन्य डिवीजन तैनात की हैं जिन्हें भारतीय वायुसेना का समर्थन हासिल है। 

मगर विचलित करने वाली बात यह है कि पी.एल.ए. ने लद्दाख में कुछ ऐसे क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया है जो ‘विवादग्रस्त’ श्रेणी में आते हैं, कैसे? मुझे पूरा विश्वास नहीं है। सेवानिवृत्त सेना प्रमुख जनरल वी.पी. मलिक  ने कहा कि पश्चिमी लोकतांत्रिक देशों के विपरीत हमारे मंत्री तथा नौकरशाह अभी भी रक्षा नीति निर्माण अथवा विदेशी राजनीतिज्ञों के साथ ऐसे मुद्दों पर बातचीत करने के दौरान सीधे तौर पर सैन्य कर्मियों को शामिल करने में शर्म महसूस करते हैं। जनरल वी.पी. मलिक सही हैं। हमारे नेताओं को इस मामले को गंभीरतापूर्वक देखना चाहिए तथा चीन और पाकिस्तान जैसे निर्मम पड़ोसियों से निपटने के लिए अपनी नीति तथा रणनीति को फिर से तैयार करना चाहिए। 

इन सभी महीनों के दौरान पेईचिंग ने काफी आक्रामक दृष्टिकोण अपनाया है। हमने पी.एल.ए. के सैनिकों को लद्दाख सीमा क्षेत्रों में रॉड्स, भाले आदि अपने साथ ले जाते देखा है। इसने स्पष्ट तौर पर चीन के आक्रामक चेहरे को बेनकाब किया है। एयर वाइस मार्शल मनमोहन बहादुर (सेवानिवृत्त), अतिरिक्त महानिदेशक सैंटर फॉर एयर पावर स्टडीज, नई दिल्ली ने 15 सितम्बर को एक समाचार पत्र में अपने लेख में सुझाव दिया था कि भारत को तीन कार्रवाइयों के साथ तैयार रहने की जरूरत है। पहली केवल लद्दाख में ही नहीं बल्कि उत्तरी मोर्चे पर नजर रखने की जरूरत है। 

उनका दूसरा ङ्क्षबदू यह है कि चीन को भारत की प्रतिक्रिया यथास्थिति से बदल कर राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति (एन.एस.एस.) के ढांचे के अंतर्गत अग्रसक्रिय निर्णय पर प्रक्रिया की होनी चाहिए। उनका तीसरा बिंदू अपनी क्षमता तथा आत्मनिर्भरता पैदा करने पर है।  मेरा भी यही विचार है कि चीन के रणनीतिक रक्षा नियमों को विफल करने के लिए भारत को आवश्यक तौर पर एक प्रभावी काऊंटर-स्ट्रैटेजी प्लान बनाना चाहिए।-हरि जयसिंह 
 

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