नक्सलवाद एक चेतावनी-आखिर जिम्मेदारी किसकी

punjabkesari.in Wednesday, Apr 07, 2021 - 01:25 AM (IST)

अल्फ्रेड लॉर्ड टेनीसन की प्रसिद्ध कविता ‘द चार्ज ऑफ लाइट ब्रिगेड’ के एक छंद का सार यह है: लाइट ब्रिगेड आगे बढ़ो। क्या कोई व्यक्ति निराश है? नहीं। हालांकि सिपाही जानते हैं कि किसी ने भूल की है। उत्तर देने के लिए कोई नहीं है। यह पूछने के लिए कोई नहीं है कि ऐसा क्यों हुआ। उनके समक्ष केवल करो या मरो का विकल्प है और इसलिए मृत्यु की घाटी में 600 सैनिक आगे बढ़ गए।

1894 में लिखा गया यह छंद युद्घ के सबसे साहसिक और सबसे मार्मिक दोनों पक्षों को उजागर करता है और यह शनिवार को छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में नक्सलवादियों द्वारा मारे गए 22 सुरक्षाकर्मियों तथा घायल 29 जवानों के लिए एक समुचित श्रद्धांजलि है। लाइट मशीनगन और आई.ई.डी. से सुसज्जित माओवादियों ने उनके लिए अपना जाल बिछाया। उन्होंने जवानों को तीन ओर से घेरा और उन पर अचानक हमला कर दिया।

इस घटना पर गुस्सा और वेदना के अलावा यह नई दिल्ली के रायसीना हिल्स और राज्यों की राजधानियों में वातानुकूलित कमरों में बैठे लोगों की नीतियों पर भी प्रश्न उठाता है और इस कटु वास्तविकता को उजागर करता है कि 1967 में उपजा यह माओवाद आज खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है। आशानुरूप प्रधानमंत्री से लेकर सभी लोगों ने इस घटना की निंदा की। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह पश्चिम बंगाल में अपने चुनाव प्रचार अभियान में व्यस्त होने के बावजूद छत्तीसगढ़ पहुंचे और कहा सरकार नक्सलवादियों द्वारा पैदा किए गए असंतोष के विरुद्ध लड़ाई को अपनी तार्किक परिणति तक पहुंचाएगी। ऐसे ही उद्गार मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी व्यक्त किए।

यह शब्द सुनने में तो अच्छे लगते हैं और ऐसे शब्द हमने प्रत्येक हमले के बाद अनेक बार सुने हैं किंतु जैसे घटना का क्रम बताता है 400 माओवादियों ने सी.आर.पी.एफ. के कोबरा विंग, सी.आर.पी.एफ. के नियमित जवान और छत्तीसगढ़ रिजर्व गार्ड के 1500 जवानों को घेरा। सुरक्षा बलों के ये जवान खुफिया सूचना के आधार पर वांछित माओवादी नेता माडवी हिडमा की खोज कर रहे थे जिसके सिर पर 40 लाख रुपए का इनाम रखा गया है। किंतु कोई भी युद्ध युद्धघोष से नहीं लड़ा जा सकता है। गत चार वर्षों में यह सबसे वीभत्स माओवादी हमला था। पिछले माह सुकमा में सी.आर.पी.एफ. के 5 जवान मारे गए। नारायणपुर जिले में डी.आर.जी. के पांच कर्मियों को मारा गया। फिर सुकमा में 17 और जवानों को मारा गया।

प्रश्र उठता है कि केन्द्र इस लड़ाई को किस तरह लड़ना चाहता है। क्या वह नक्सलवादियों की असलियत को जानता है? क्या वह जानता है कि उन्हें कहां से संसाधन मिलते हैं? क्या ठोस नक्सल विरोधी रणनीति बनाई गई है? क्या इस चुनौती का वास्तविक और सही आकलन किया गया है? क्या नक्सलवादी संपन्न वर्ग को लूटकर गरीब वर्ग की सहायता करने के सिद्धांत से प्रेरित है? क्या एक सम्मानजनक उद्देश्य और स्वप्निल आकांक्षा हिंसा को उचित ठहरा सकती है? क्या हिंसा लोकतंत्र के मानदंडों के अनुरूप है?

इस संबंध में कुछ तथ्यों को ध्यान में रखना होगा: समन्वय, सहयोग, सी.आर.पी.एफ. और राज्य पुलिस के बीच पूर्ण सामंजस्य। राज्य पुलिस में स्थानीय लोग होते हैं और वे वहां की स्थिति से परिचित होते हैं जबकि सी.आर.पी.एफ. में संपूर्ण देश के जवान होते हैं और उन्हें अल्पकाल के लिए किसी क्षेत्र में तैनात किया जाता है। उन्हें वहां की भौगोलिक स्थिति या स्थानीय भाषा की जानकारी नहीं होती है। इसके लिए पुलिस को प्रेरित होना चाहिए। उन्हें प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, उन्हें समुचित हथियार उपलब्ध कराए जाने चाहिएं। साथ ही सुरक्षा बलों को समुचित खुफिया जानकारी उपलब्ध कराई जानी चाहिए।

सुकमा की घटना बताती है कि सुरक्षा बलों को समुचित खुफिया जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गई थी। जमीनी स्तर पर लोगों से सूचना लेने पर बल दिया जाना चाहिए तथा प्राधिकारियों को लोगों को सचेत करना चाहिए कि वे सुरक्षा बलों के बारे में माओवादियों को जानकारी न दे। स्थानीय लोगों को यह भी सचेत करना चाहिए कि ड्राइवर, स्वीपर तथा स्थानीय लोग यह सुनिश्चित करें कि माओवादियों को सुरक्षा बलों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी न मिले। इस संबंध में नई सोच विकसित करनी होगी।

सदैव सजग रहना होगा। कई बार वाहनों को छोड़कर पैदल आगे बढऩा होगा। इस संबंध में आंध्र और पंजाब से प्रेरणा लेनी होगी। आंध्र में प्रत्येक उपनिरीक्षक के लिए अनिवार्य है कि वह नक्सल रोधी कार्रवाई का प्रशिक्षण ले और आई.पी.एस. अधिकारियों को पुलिस अधीक्षक बनाए जाने से पहले नक्सल प्रभावित जिलों में तैनात किया जाता है। पंजाब में पुलिस द्वारा आतंकवाद का सफाया किया गया। पंजाब पुलिस ने सी.आर.पी.एफ., बी.एस.एफ. और आर्मी की सहायता से आतंकवादियों का सीधा मुकाबला किया। इसके अलावा सेना से भी सबक लेना होगा। जब सेना कठिन स्थिति में स्वयं को पाती है तो वह पीछे हट जाती है, पुन: संगठित होती है और फिर से हमला करती है। सुरक्षा बलों को भी ऐसा ही करना होगा।

फिर इस समस्या का समाधान क्या है? केन्द्र सरकार को इस समस्या पर अंकुश लगाने के लिए संसाधन उपलब्ध कराने होंगे। संघर्ष के क्षेत्रों में संसाधनों का सुनियोजित उपयोग करना होगा। सरकार को इस बात को समझना होगा यदि उसके उद्देश्यों, युक्तियों, संसाधनों और वास्तविक स्थितियों में अंतर होगा तो सारी रणनीतियां और उपाय निरर्थक हो जाएंगे। सरकार को गरीबी उन्मूलन, त्वरित विकास तथा कानून और व्यवस्था की स्थिति को बनाए रखने के लिए युद्ध स्तर पर कदम उठाकर सामाजिक व्यवस्था में आई खामियों को दूर करना होगा। पुलिस का पुनर्गठन किए जाने की आवश्यकता है। उसे नक्सलवादियों का सामना करने के लिए सुसज्जित किया जाना चाहिए और यह केवल पुलिस सुधारों तथा सामान्य पुलिस क्षमता में वृद्धि के माध्यम से ही संभव है।-पूनम आई. कौशिश

 


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