प्रकृति ने हर पशु को भी विशिष्ट पहचान सौंपी है
punjabkesari.in Thursday, Dec 05, 2024 - 05:27 AM (IST)
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के आई.आई.टी. के वैज्ञानिकों ने आर्टिफिशियल इंटैलीजैंस के जरिए एक जांच प्रणाली विकसित की है। इसके अनुसार गायों की पहचान उनके थूथन के जरिए की जा सकेगी। इसमें गायों का डाटा एक सर्वर पर अपलोड किया गया है। इस पर क्लिक करने से उनके बारे में सटीक जानकारी मिल सकेगी। उन्हें पहचाना जा सकेगा। अक्सर पशु चोरी हो जाते हैं, खो जाते हैं। कई बार उनकी पहचान करना मुश्किल होता है। इस नई प्रणाली के जरिए अपनी गाय की पहचान ठीक से हो सकती है। इसे विकसित करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि गायों की नाक पर अलग-अलग तरह-तरह की रेखाएं और पैटर्न होते हैं। इन पर अध्ययन करने के लिए अलग-अलग गायों की नाक के फोटो लिए गए। फिर इन विशिष्ट संरचनाओं का अध्ययन किया गया और तभी पता चला कि हर गाय की नाक पर अलग-अलग तरह के निशान होते हैं।
इन्हीं को इकट्ठा करके एक डाटाबेस बनाया गया है। यह आधार कार्ड की तरह है। जैसे आधार के द्वारा भारत के हर नागरिक की पहचान की जा सकती है, उसी तरह इस प्रणाली से गायों की पहचान की जा सकती है। उसके बारे में सारी जानकारी मिल सकती है। यहां तक कि अभी तक उसने कितनी बार बच्चे दिए हैं, यह भी पता चल सकता है। इस तकनीक से देश भर की गायों का रिकार्ड रखा जा सकता है। मनुष्यों के बारे में कहा जाता है कि इस दुनिया में जितने लोग हैं, उनमें से हर एक के फिंगर प्रिंट या उंगलियों के निशान अलग-अलग हैं। यही बात आंखों के बारे में भी कही जाती है। गाय की इस पहचान प्रणाली से यह निष्कर्ष निकलता है कि प्रकृति ने हर पशु को भी विशिष्ट पहचान सौंपी है।
दूध उद्योग में इस तरह की पहचान का बहुत महत्व है। हैदराबाद की कंपनी हैरीटेज फूड लिमिटेड कम्पनी अपनी गायों की पहचान के लिए बायोमैट्रिक प्रणाली का उपयोग कर रही है। इससे गायों की निगरानी में भी मदद मिल रही है। अब तक गायों की पहचान के जो तरीके हैं जैसे कि गाय का नाम या नंबर उसकी पीठ पर लिख देना, उनका कान छेद देना आदि, वे बहुत बार काम नहीं आते हैं। बताया जा रहा है कि इस नई प्रणाली को अपनाकर गायों की बीमारियों के बढऩे का पता चलाया जा सकता है। उनका टीकाकरण हुआ है या नहीं यह भी जाना जा सकता है। गाय किसकी है, यह भी पता चल जाता है। इस विधि को पेटैंट भी करा लिया गया है।
अब भारतीय अनुसंधान परिषद ने इन्हीं वैज्ञानिकों को सूअर, भेड़ और बकरी की सटीक पहचान कैसे की जाए, इसका काम सौंपा है। बाघ के पंजों के निशानों से भी उनकी पहचान की जाती है, मगर कई बार यह उतनी सही नहीं होती। यदि यह प्रणाली भारत भर में अपना ली जाए तो गायों की रक्षा में भी बहुत मदद मिल सकती है बल्कि भैंस, गधे, ऊंट आदि के लिए भी ऐसी प्रणाली विकसित की जानी चाहिए। बल्कि लगता तो यह है कि ऐसी ही कोई विशिष्ट पहचान पक्षियों के पास भी होगी। बताया जा रहा है कि इस प्रणाली से गायों की चोरी को भी रोकने में मदद मिलेगी। हमारे यहां गायों की चोरी भी बहुत आम बात रही है। इस संदर्भ में बचपन की एक घटना भी याद आती है। घर में कई गायें, भैंसे, बकरियां, कुत्ते, तोते आदि थे। इन जानवरों में गुलाबो नाम की गाय बहुत विशिष्ट थी। वह एक दिन में 16 किलो दूध देती थी। इतना दूध होता था कि दही, छाछ, मक्खन पूरा परिवार खाता, मोहल्ले के लोगों को जब जरूरत होती, उन्हें भी दे दिया जाता।
आसपास वाले कहते कि काश, उनके पास भी ऐसी ही कोई गाय होती। एक बार गाय रस्सा तुड़ाकर भाग गई। उसे बहुत ढूंढा गया, मगर नहीं मिली। कुछ दिन बाद किसी ने बताया कि गाय पड़ोस के गांव में अमुक व्यक्ति के घर में है। भाई ढूंढते हुए उस आदमी के घर पर पहुंचे, लेकिन गाय कहीं दिखाई नहीं दी। उस आदमी से पूछा, तो उसने साफ मना कर दिया। तब भाई को एक तरीका सूझा। वह नाम लेकर पुकारने लगे-गुलाबो, गुलाबो। उनकी आवाज सुनकर गाय रंभाई और बार-बार रंभाने लगी। उस आदमी ने गाय को अपने घर के आंगन में बांध रखा था। भाई ने उससे कहा। उसने भी गाय की आवाज सुन ही ली थी। वह चुपके से अंदर गया और गाय की रस्सी भाई के हाथ में पकड़ा दी। यानी कि पशुओं को उनके नाम से भी ढूंढा जा सकता है, मगर कई बार यदि पशु बहुत दूर ले जाए जाएं तो उन्हें ढूंढना मुश्किल होता है। अधिकांश बार चोरी किए गए पशु मिलते भी नहीं हैं। फिर जिस तरह से उस गांव वाले ने अपनी गलती मानकर गाय की रस्सी पकड़ा दी थी, यह दशकों पहले की बात है। तब आदमी शायद इतना चालाक भी नहीं हुआ था। उसे अपनी गलती मानने में ज्यादा वक्त नहीं लगता था। या यूं कहें कि वह आदमी ही शरीफ था। इन दिनों तो शायद ही कोई अपनी गलती मानता है। छोटे पशुओं की चोरी तो और भी आम है।-क्षमा शर्मा