राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने एक नया मोर्चा खोला

punjabkesari.in Friday, Nov 19, 2021 - 04:59 AM (IST)

भारतीय पुलिस सेवा में मेरे पूर्व सहयोगी और वर्तमान में देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एन.एस.ए.) अजीत डोभाल नि:संदेह जब बोलते हैं तो एक सुनने वाली आवाज होते हैं। गत सप्ताह हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय पुलिस अकादमी की पासिंग आऊट परेड में आई.पी.एस. प्रोबेशनर्स को संबोधित करते हुए उन्होंने ‘सिविल सोसाइटी’ की भारत के लोगों की एक नई दुश्मन के तौर पर पहचान की तथा कहा कि पुलिस को देश की एकता तथा अखंडता बनाए रखने के लिए इससे लडऩा है। 

यह एक गंभीर आरोप है, वास्तव में बहुत ही गंभीर। सामान्य तौर पर ‘देशद्रोही’ विशेषण वर्तमान सरकार के आलोचकों पर उछाला जाता है। विद्वान, लेखक, पत्रकार, एक्टिविस्ट तथा धार्मिक पहचान के आधार पर नफरत तथा विभाजन का विरोध करने वाले अब एन.एस.ए. के राडार पर होंगे। और यह एक सर्वाधिक ङ्क्षचताजनक विचार है। इस नए युद्ध में सिविल सोसाइटी के सदस्य क्या आशा कर सकते हैं? 

देश पर सत्तासीन मोदी-शाह के शासन ने बिना किसी पूर्व चेतावनी के काफी पहले ही इस नए दुश्मन के खिलाफ अपने पहले धमाके शुरू कर दिए थे। इसकी पहली शिकार विदेशी सहायता प्राप्त एन.जी.ओ’ज थीं, विशेषकर जिनकी स्थापना हमारी सीमाओं से परे हुई थी। विश्व की सर्वाधिक सम्मानित मानवाधिकार एन.जी.ओ. एमनेस्टी इंटरनैशनल ने भी अपना सामान बांधा और चलती बनी। कामनवैल्थ हयूमन राइट्स इनिशिएटिव को अपनी अधिकांश शोध परियोजनाओं को बंद करने के लिए मजबूर किया गया। इसकी कंट्री हैड माजा दारूवाला, जो अत्यंत प्रिय फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की बेटी हैं, को अन्य समान विचारधारा की एन.जी.ओ’ज को मंच उपलब्ध करवाने के लिए कहना पड़ा, जहां से वह पुलिस तथा जेल प्रशासनों में सुधार द्वारा न्याय के लिए अपने जीवन की प्रतिबद्धता को जारी रख सकें। 

जिस तरह से प्रशासन के मामलों पर काम कर रही एन.जी.ओ’ज को कार्पोरेट्स द्वारा दी जाने वाली सी.एस.आर. फंडिंग को पी.एम. केयर्स की ओर मोड़ा जा रहा है, यह वर्तमान शासन की, यहां तक कि देसी एन.जी.ओ’ज के खिलाफ शत्रुता का एक अन्य उदाहरण है जो सरकार द्वारा किए जाने वाले कई कार्यों में खामियों का पर्दाफाश करती हैं। केंद्र अथवा राज्यों में कोई भी सत्तासीन ताकत किसी भी तरह की आलोचना पसंद नहीं करती लेकिन मोदी-शाह का शासन अपने वैमनस्य को सीमाओं से कहीं आगे ले गया। यदि हम अजीत डोभाल को परिभाषित करें तो यह खुले तौर पर इसका दावा करते हैं, केवल उस भाषा में, जिसका सरकार अपने आलोचकों के खिलाफ इस्तेमाल करती है जिससे एन.जी.ओ’ज  अब वास्तव में इसके कब्जे में हैं। सरकार चाहती है कि हम गायब हो जाएं। 

मोदी तथा शाह दोनों ही गुजरात से हैं। मैं समझता हूं कि भारत के सभी राज्यों में गुजरात लोकोपकार तथा उन लोगों के लिए सरोकारों का एक पलना है जिन्हें परमात्मा का कम साथ मिलता है। 1985 में इसके पुलिस बल के महानिदेशक के तौर पर चार महीनों के लिए गुजरात के अपने छोटे से सेवाकाल में मैं इलाबेन भट्ट से मिला। वंचित महिलाओं के लिए उनके काम ने मुझे देश में एन.जी.ओ’ज के असल महत्व को लेकर बहुत प्रभावित किया जहां गरीबी एक असल शत्रु है। कैलाश सत्यार्थी की ‘जस्टिस फॉर एवरी चाइल्ड’ द्वारा किया जाने वाला काम एन.जी.ओ’ज द्वारा किए जाने वाले कार्यों की आवश्यकता का एक जीता-जागता सबूत है जो चुनी हुई सरकारें नहीं कर सकतीं, यहां तक कि अपने बेहतरीन इरादों के साथ भी। 

हमारे जैसे देशों के लिए  एन.जी.ओ’ज एक आवश्यकता है जहां लोग कष्टों में रह रहे हैं और उन्हें काफी कुछ मदद की जरूरत है। एन.जी.ओ’ज उनकी पीड़ा को कम करने के लिए आवश्यक ‘बाम’ उपलब्ध करवाती हैं। मोदी तथा शाह और अब मेरे मित्र अजीत को एक नया मोर्चा खोलने, जिसका उल्लेख डोभाल ने अपने भाषण में किया था, पर पुनॢवचार करना चाहिए। निश्चित तौर पर वे सरकार के प्रत्येक आलोचक को ‘ठीक’ नहीं करेंगे जैसा कि उन्होंने भीमा कोरेगांव मामले में किया था। यह भारत के दर्जे को विश्व में करीब-करीब अछूत बना देगा जैसे कि हमारा पड़ोसी पाकिस्तान। इसलिए मुझे आशा नहीं है कि ये इतनी दूर तक जाएंगे। 

मैं आई.पी.एस. प्रोबेशन्स को एन.एस.ए. द्वारा सिखाई गई सकारात्मक चीजों को लूंगा। उन्होंने उनको यह प्रभाव दिया कि लोगों के चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा बनाए गए कानूनों को आवश्यक तौर पर पुलिस बल द्वारा उसी भावना से लागू किया जाना चाहिए। सच है। लेकिन तब क्या यदि वही कानून निर्माता इन पुलिस अधिकारियों को उन कानूनों को लागू न करने की ‘प्रार्थना’ करें जिन्हें उन्होंने खुद बनाया है, जैसे कि निषेधात्मक कानून, या उन्हें चुङ्क्षनदा तौर पर केवल उनके विरोधियों के खिलाफ लागू किया जाए और उनके समर्थकों को छोड़ दिया जाए। विभिन्न सरकारों के अंतर्गत यह हर समय होता है। 

यहां तक कि मेरे जैसा एक तटस्थ, गैर-राजनीतिक सेवानिवृत्त आई.पी.एस. अधिकारी युवा अधिकारियों को इस डर से ऐसा सीधा सुझाव नहीं देगा कि इससे राष्ट्रीय पुलिस अकादमी के निदेशक तथा उसके स्टाफ को परेशानी होगी। हमारे युवा अधिकारियों को सच और केवल सच के साथ जुडऩा सीखना चाहिए। केवल तभी वास्तव में न्याय प्रदान किया जा सकेगा। केवल तभी कानून का शासन बनाए रखा जा सकेगा। केवल तभी जनता के सेवकों से राजनीतिक तटस्थता की आशा की जा सकेगी और इसे सामान्य व्यक्ति देख और अनुभव कर पाएगा और केवल तभी वह आई.पी.एस. अधिकारी, जिसने भारत के संविधान की शपथ ली है, गर्व से कह सकेगा कि उसने अपनी शपथ का मान रखा है।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी.पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी) 
 


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