राष्ट्र और राष्ट्रीय हित ही सर्वोपरि होते हैं, पार्टी नहीं
punjabkesari.in Wednesday, May 21, 2025 - 05:20 AM (IST)

यह आक्रोश, दुख और प्रतिशोध का एक अल्पकालिक हम-साथ-साथ-हैं का प्रदर्शन था। 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए क्रूर हमले में 26 लोगों की मौत के बाद ‘ऑप्रेशन सिंदूर’ की स्याही अभी सूखी भी नहीं है कि यह फिर से शुरूआती स्थिति में आ गई है। सत्तारूढ़ भाजपा और उसकी धुर विरोधी कांग्रेस के बीच तुच्छ राजनीति की तू-तू, मैं-मैं चल रही है। यह तू-तू, मैं-मैं पहलगाम के बाद नई दिल्ली की कूटनीतिक पहुंच को मजबूत करने के लिए 30 विश्व की राजधानियों में सांसदों के प्रतिनिधिमंडलों को भेजने को लेकर है। यह सच है कि 7 प्रतिनिधिमंडलों में विपक्षी नेताओं को शामिल करने का मोदी सरकार का निर्णय चतुराईपूर्ण है। इसके अलावा, सहयोगी दलों जद(यू) और शिवसेना के अलावा कांग्रेस, एन.सी. और डी.एम.के. के 3 विपक्षी नेताओं को इन समूहों का नेतृत्व करने के लिए नामित करने का निर्णय भी लिया गया। फिर भी, कांग्रेस और टी.एम.सी. दोनों ने ही अपने-अपने कारणों से खेल बिगाडऩे का फैसला किया।
ममता की तृणमूल कांग्रेस ने एक प्रतिनिधिमंडल में अपने सांसद को भेजने का फैसला लिया है। वहीं कांग्रेस ने सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि वह ‘शरारती मानसिकता’ के साथ ‘खेल’ खेल रही है, क्योंकि उसने हमारे द्वारा सुझाए गए 4 सांसदों को दरकिनार करते हुए संयुक्त राष्ट्र के पूर्व राजनयिक से सांसद बने थरूर को एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का प्रमुख बनाया है। जैसा कि अनुमान था, भाजपा ने कांग्रेस पर आंतरिक पाखंड का आरोप लगाते हुए कहा, ‘‘पार्टी अपने उस सांसद का विरोध करती है जो भारत के लिए बोलता है...कांग्रेस नेतृत्व ऐसे किसी भी व्यक्ति से असहज महसूस करता है जो ‘हाईकमान’ को प्रभावित करता है।’’
कांग्रेस की बेचैनी को बढ़ाते हुए थरूर ने सरकार के फैसले का स्वागत करते हुए कहा, ‘‘इसका पार्टी की राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है।’’ इसलिए निश्चित रूप से, पूर्व संयुक्त राष्ट्र राजनयिक को शामिल किए जाने से बहुतों को आश्चर्य नहीं होगा क्योंकि वह भारत-पाकिस्तान गतिरोध पर सरकार के मुखर समर्थकों में से एक रहे हैं, जिन्होंने कहानी को स्पष्ट और सशक्त तरीके से बताया है। यह पार्टी लाइन से ऊपर उठकर सामूहिक राजनीतिक एकजुटता को दर्शाता है। लेकिन यह उनकी पार्टी के रुख से भी अलग है। इतना ही नहीं, कांग्रेस को यह घोषणा करने के लिए बाध्य होना पड़ा कि उनके बयान उनके अपने विचार थे, न कि पार्टी का रुख।
निष्पक्ष रूप से कहा जाए तो, कांग्रेस भी किसी अन्य विपक्षी दल की तरह चाहेगी कि जहां तक आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई का सवाल है, उसके प्रतिनिधि सरकार का समर्थन करें, लेकिन क्लीन चिट न दें या लगभग सभी सरकारी नीतियों को उचित न ठहराएं, जैसा कि थरूर कर रहे हैं। एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘‘उन्होंने लक्षण रेखा पार कर ली है। कांग्रेस में होना और कांग्रेस का होना में जमीन-आसमान का अंतर है। ’’ यह पहली बार नहीं है जब थरूर अपनी पार्टी के साथ मतभेद में फंसे हैं। इससे पहले, कांग्रेस सांसद ने स्वीकार किया था कि रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत के रुख का विरोध करने के कारण उनकी ‘बदनामी हुई’।
पूर्व संयुक्त राष्ट्र राजनयिक से राजनेता बने थरूर ने व्हाइट हाऊस में पी.एम. मोदी की ट्रम्प के साथ बैठक के परिणाम की भी प्रशंसा की। मुद्दा थरूर को शामिल करने या भाजपा-कांग्रेस के बीच झगड़े का नहीं है लेकिन इससे एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है: राष्ट्र पहले आता है या पार्टी? इसके अलावा, वयस्क मताधिकार का प्रयोग करते समय नागरिकों को पूरी तरह से अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। जाहिर है, राष्ट्र और राष्ट्रीय हित ही सर्वप्रथम आते हैं। प्रत्येक भारतीय, चाहे वह किसी भी जाति, पंथ या धर्म का हो, पहले वह भारतीय है। राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं और विचारधाराएं अपनी जगह हैं, लेकिन देश हमेशा पहले आता है। नेताओं और पाॢटयों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि किसी प्रतिद्वंद्वी या व्यक्ति का विरोध करना राष्ट्र के सर्वोत्तम हितों के विरुद्ध नहीं होना चाहिए।बढ़ती अर्थव्यवस्था के साथ भारत की वैश्विक छवि तेजी से बदल रही है और वह महाशक्ति बनने की राह पर है, इसलिए यह राजनीतिक चलन के अनुरूप है। इसके अलावा युद्ध, महामारी या झगड़े के समय में सरकार को बिना शर्त समर्थन देना होगा। एक नेता दूसरे का विरोध कर सकता है, या किसी पार्टी के खिलाफ आवाज उठा सकता है, लेकिन देश के खिलाफ आवाज नहीं बन सकता।
अब समय आ गया है कि हमारे नेतागण सर्वप्रथम भारत माता की प्रगति के बारे में सोचें तथा सभी व्यक्तिगत प्राथमिकताओं को किनारे रखें। वास्तविक विकास और प्रगति तभी होगी जब पूरा देश एकजुट होकर देखना शुरू करेगा। तर्कपूर्वक कहा जा सकता है कि लोकतंत्र का सार यही है। हालांकि, दुख की बात है कि लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांत पिछले कुछ वर्षों में ध्वस्त हो गए हैं। आज बहुत कम लोग यह याद रखना चाहते हैं कि लोकतंत्र अपने आप में कोई लक्ष्य नहीं है। यह केवल एक साधन मात्र है, जिसका लक्ष्य लोगों की बेहतर भलाई और खुशी है। अब समय रुककर भविष्य के दीर्घकालिक परिणामों पर विचार करने का है। क्या व्यक्तिगत अहंकार सामूहिक बुद्धिमत्ता पर हावी हो जाएगा? समय आ गया है कि हमारी राजनीति ऐसे नेताओं के रूप में विकसित हो जो पार्टी से पहले राष्ट्र को प्राथमिकता दें। किसी राष्ट्र में नेताओं का अनुपात जितना अधिक होगा, राष्ट्र के समृद्ध, आत्मनिर्भर और सफल बनने की संभावना उतनी ही अधिक होगी। हमें भारत के निर्माण के लिए ऐसे और अधिक नेताओं की आवश्यकता है जो विवेकशील, निष्ठावान और विश्वसनीय हों।-पूनम आई. कौशिश