नैंसी पेलोसी की ताइपे यात्रा अमरीका खुल कर आया ताईवान के समर्थन में

Thursday, Aug 04, 2022 - 03:18 AM (IST)

दक्षिण-पूर्व चीन के तट के निकट ताईवान एक द्वीप देश है, जिसे वैटिकन के अलावा अभी तक मात्र 13 देशों ने ही एक स्वायत्त देश के रूप में मान्यता दी है। चीन दूसरे देशों पर इसे मान्यता न देने के लिए भारी दबाव डालता आ रहा है और उसका साथ देने वालों को अपना शत्रु मानता है। यहां के लोगों की सांस्कृतिक पहचान चीन से काफी अलग है।

चीन में 1644 में सत्ता में आए चिंग वंश ने इसे जापानी साम्राज्य को सौंप दिया था, परंतु 1911 में ‘चिन्हायक क्रांति’ के बाद चीन में ‘कामिंगतांग’ की सरकार बनने पर चिंग राजवंश के अधीन वाले इलाके कामिंगतांग को मिल गए। ताईवान का असली नाम ‘रिपब्लिक आफ चाइना’ है। यह क्रियात्मक रूप से 1950 से ही स्वतंत्र रहा है, परंतु चीन इसे अपना विद्रोही राज्य मानते हुए तभी से इस पर कब्जा करने की कोशिश करता आ रहा है।

यही कारण है कि अमरीका के प्रतिनिधि सदन की स्पीकर नैंसी पेलोसी की एशिया यात्रा के दौरान उनकी प्रस्तावित ताईवान यात्रा की भी अटकलें सुनाई देते ही चीन भड़क उठा है। चीन की धमकियों की उपेक्षा कर नैंसी पेलोसी 2 अगस्त को 25 लड़ाकू विमानों की निगरानी में ताईवान की राजधानी ताईपे पहुंचीं, जबकि चीन ने भी अपनी सम्प्रभुता के लिए सभी जरूरी कदम उठाने की चेतावनी दे कर अपने 21 फाइटर जैट ताईवान की सीमा के निकट भेज दिए तथा चीनी सेना ने ताईवान के चारों ओर 6 स्थानों पर लाइव फायर ड्रिल शुरू कर दी।

जिस तरह के अभेद्य सुरक्षा कवच के साथ नैंसी पेलोसी ताईवान की यात्रा पर पहुंचीं, उससे यह बात बिल्कुल स्पष्ट हो गई कि अमरीका खुल कर कथनी और करनी दोनों ही रूपों में ताईवान के पक्ष में आने को तैयार है। हालांकि कूटनीतिक दृष्टि से अमरीका फिलहाल ‘एक चीन’ नीति पर कायम है, जो सिर्फ एक ही सरकार (बीजिंग) को मान्यता देता है, परंतु इसी वर्ष मई में सैन्य दृष्टि से ताईवान की रक्षा करने की बात कह चुके अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन नहीं चाहते थे कि नैंसी पेलोसी इस समय ताईवान जाएं, परंतु नैंसी पेलोसी राष्ट्रपति की सलाह मानने को बाध्य नहीं हैं और अमरीकी कांग्रेस की स्पीकर होने के नाते उनकी सोच अलग है।

ऐसी पृष्ठभूमि में नैंसी पेलोसी ने ताईवान की संसद में घोषणा की कि अमरीका कभी भी ताईवान को अकेला नहीं छोड़ेगा, जबकि ताईवान की राष्ट्रपति त्साई इंग वेन ने कहा कि हम धमकियों के आगे झुकेंगे नहीं। नैंसी का यह चीन विरोध नया नहीं है। उन्होंने पहली बार 1991 में बीजिंग में तिनानमिन चौक नरसंहार के बाद वहां पहुंचकर बैनर लहराया था, जिस पर लिखा था, ‘‘टू दोज हू डाइड फार डैमोक्रेसी इन चाइना’’। इसके बाद 2008 में 9 सांसदों के साथ भारत दौरे पर आई नैंसी पेलोसी ने तिब्बत में धर्मगुरु दलाई लामा से भेंट की थी, जिन्हें चीन अपना दुश्मन मानता है और उसके बाद 2017 में भी नैंसी पेलोसी ने अपनी दूसरी भारत यात्रा के समय दलाई लामा से भेंट की थी। उनकी पिछली चीन यात्रा की तुलना में इस समय स्थिति काफी बदली हुई है।

उनकी तिनानमिन यात्रा के दौरान चीन के सर्वोच्च नेता डेंग शियाओपिंग उदारवादी विचारधारा के थे, जबकि वर्तमान राष्ट्रपति शी जिनपिंग उनसे भिन्न हैं, जो कोविड से पैदा समस्याओं के अलावा अपने देश में अपने विरुद्ध बढ़े हुए जन असंतोष का सामना कर रहे हैं तथा इसकी ओर से लोगों का ध्यान बंटाने के लिए वह युद्ध छेडऩे जैसा दुस्साहस भी कर सकते हैं। बहरहाल, ताईवान पहुंची नैंसी का ताईवान की सरजमीं पर उतरना चीन सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है। उनकी 18 घंटों की ताईवान यात्रा के कारण चीन की विस्तारवादी नीतियों की ओर विश्व का ध्यान गया है, क्योंकि हांगकांग के बाद इसके शासकों ने ताईवान को अपने कब्जे में लेने के लिए पूरा जोर लगा रखा है।

चीन सिर्फ ताईवान पर कब्जा करके ही नहीं रुकेगा, बल्कि अन्य नजदीकी द्वीप देशों पर भी कब्जा करने के बाद दक्षिण चीन सागर में विजय प्राप्त करके ङ्क्षहद महासागर में आना चाहता है जो भारत के लिए बड़ा खतरा सिद्ध हो सकता है। इससे विश्व के सामने यह बात उजागर होती है कि चीन के इन हथकंडों का मुकाबला करने के लिए एक होने की कितनी अधिक जरूरत है। उधर रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध के कारण यूरोप पहले ही हिला हुआ है तथा वे अमरीका और चीन या चीन और ताईवान के बीच युद्ध नहीं चाहते। भारत, अमरीका, जापान और आस्ट्रेलिया पर आधारित क्वाड देश भी यही चाहते हैं कि हालात को किसी भी रूप से बिगडऩे नहीं देना और वे ताईवान के साथ हैं।

Advertising