‘म्यांमार के युवा’ ‘स्वतंत्रता संग्राम को सफल करेंगे’

Friday, Mar 19, 2021 - 03:15 AM (IST)

विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र होने के नाते भारत को 1 फरवरी 2021 को म्यांमार में तख्तापलट होने के बाद से चिन्तित होना लाजमी है। वहां देश की सशस्त्र सेनाओं ने लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सत्तारुढ़ पार्टी नैशनल लीग फॉर डैमोक्रेसी (एनएलडी) को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया। इसका मतलब म्यांमार के जीवंत लोकतंत्र के प्रतीक के तौर पर आंग सान सू की को सत्ता से बाहर करना है। वहां के लोग देश के सैन्य प्रशासन के खिलाफ उठ खड़े हुए और उन्होंने असहयोग आंदोलन चला दिया। प्रदर्शनकारी पिछले कई हफ्तों से सशक्त होते दिखाई दे रहे हैं। वह सेना के अत्यधिक दमनकारी उपायों के खिलाफ हैं। 

वहां इंटरनैट और सोशल मीडिया ब्लैक आऊट चल रहा है। जहां एक ओर अनेकों गिरफ्तारियां हुई हैं तथा प्रदर्शनकारियों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हो रहे हैं वहीं विरोध को दबाने के लिए सेना ने हिंसक वारदातों का सहारा लिया है। हजारों युवा प्रदर्शनकारी सैन्य विरोध में भाग ले रहे हैं। यंगून में सेना विरोधी रैलियां आयोजित की जा रही हैं। लोगों का गुस्सा सीधे तौर पर देश के सशस्त्र बलों के कमांडर-इन-चीफ मिन आंग हेंग के खिलाफ है जिन्होंने तख्तापलट किया। अब सैन्य प्रशासकों ने मार्शल लॉ लागू कर दिया है। 

इस कदम के तहत सेना के कमांडरों को अशांत क्षेत्रों जिसमें अदालतें भी शामिल हैं, का प्रशासन संभालने की अनुमति मिल गई है। यह बेहद परेशान करने वाली बात है। हम म्यांमार के सैन्य शासन में चीन के हाथ की अनदेखी नहीं कर सकते। विश्व के लोकतांत्रिक शासकों के लिए यह मुख्य चिंता का विषय है क्योंकि अभी तक देश में लोकतंत्र को बहाल करने में किसी भी देश ने सही जवाब नहीं दिया है। यह तख्तापलट उस दिन से पहले हुआ जब म्यांमार की संसद ने नवम्बर 2020 के आम चुनावों में चुने गए सदस्यों को शपथ दिलवानी थी।

राष्ट्रपति विन मिंट और स्टेट कौंसिलर आंग सान सू की शपथ ग्रहण समारोह को भी इस तरह रोका गया। उन्हें हिरासत में लिया गया। साथ ही अन्य मंत्रियों, उनके सहायकों तथा संसद सदस्यों को भी जेल में डाला गया। मिलिट्री शासकों द्वारा विभिन्न दमनकारी उपायों के बावजूद लोगों के प्रदर्शनों और विरोध का आकार बढ़ गया है और यह देश के अन्य हिस्सों में फैल गया है। 

प्रदर्शनकारियों ने आंग सान सू की की रिहाई की मांग की है। उन्होंने सैन्य तानाशाहों के खिलाफ नारेबाजी भी की है। मशहूर हस्तियों और राजनेताओं ने सार्वजनिक रूप से नागरिक प्रतिरोध का समर्थन किया है। चीजें और अधिक जटिल हो रही हैं क्योंकि सैन्य कमांडर लोगों के विरोध को बेरहमी से कुचल रहे हैं। ऐसी जटिल स्थिति में हताहत और घायल होने वालों की गिनती करना बेहद मुश्किल है। नवीनतम मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि सुरक्षा बलों ने लोकतंत्र समर्थक आंदोलनकारियों  की बड़ी गिनती में हत्याएं की हैं। एक लड़की के सिर पर गोली मारी गई और एक लड़के के चेहरे पर गोली मारी गई। 

अफसोस की बात यह है कि तख्तापलट के नेताओं द्वारा प्रदर्शनकारियों पर काबू पाने के लिए युद्ध जैसी रणनीति अपनाई गई है। स्वतंत्र अन्तर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षकों ने कपटपूर्ण चुनाव के सैन्य दावे को विवादित करार दिया है। उनके अनुसार चुनावों में कोई अनियमितता नहीं देखी गई। 

आंग सान सू की के खिलाफ आरोप निराधार हैं कि उनके पास अवैध रूप से 6 लाख डालर का 11 किलोग्राम सोना है। इसके बारे में कोई भी प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया गया। सैन्य कमांडर झूठ और गलत आरोपों को मढ़ रहे हैं। यह स्पष्ट है कि 1948 में ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्र होने के बाद सेना ने अधिकांश समय देश पर शासन किया। अब वह सत्ता के फल को याद कर रहे हैं। आंग सान 2015 के चुनावों के बाद सामने आई थीं। तख्तापलट के बाद म्यांमार के नेताओं ने कसम खाई है कि वह सैन्य प्रशासन के खिलाफ अपनी आवाज उठाते रहे। प्रमुख नेता महन विन माउंग खेंग ने इस दौर  को राष्ट्र का सबसे अंधकारमय क्षण करार दिया है। उन्हें उम्मीद है कि जल्द ही तानाशाही का दौर खत्म होगा। 

असली प्रश्र यह है कि आगे क्या होगा? अमरीकी, जापानी, आस्ट्रेलियाई और भारतीय नेताओं ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली पर जोर दिया है लेकिन यह सब कैसे होगा इस पर उन्होंने कोई शब्द नहीं कहे। समस्या इसलिए बड़ी है क्योंकि मूल रूप से यह लोगों की लड़ाई है। निश्चित तौर पर यह अत्यधिक कठिन कार्य है। एक अल्पकालिक संघर्ष की तरह यह नहीं दिखता। मुझे उम्मीद है कि देश के युवाओं के भीतर आग है और वह अपने स्वतंत्रता संग्राम को सफल करेंगे।-हरि जयसिंह
    

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