सलमान रुश्दी पर हुए हमलों पर मेरा नजरिया
punjabkesari.in Friday, Nov 15, 2024 - 05:12 AM (IST)
जब सलमान रुश्दी का पहला उपन्यास ‘मिडनाइट्स चिल्ड्रन’ प्रकाशित हुआ तो मैंने उसकी एक प्रति खरीदी। मुझे वह पढऩे लायक नहीं लगा! रुश्दी ने उस पहले उपन्यास के बाद 21 उपन्यास लिखे हैं, लेकिन चूंकि उनकी शैली मुझे पसंद नहीं आई, इसलिए मैंने उन पर कोई ध्यान नहीं दिया और मैंने कोई भी उपन्यास नहीं खरीदा।
मैं दीवाली समारोह के दौरान गोवा में था। 31 अक्तूबर को मेरी पत्नी मेल्बा की दूसरी पुण्यतिथि थी। मैंने उनके और अपने निकटतम रिश्तेदारों को दोपहर के भोजन के लिए आमंत्रित किया। यह उपहार देने का अवसर नहीं था, लेकिन मेरी पत्नी की भतीजी सलमान रुश्दी की नवीनतम पुस्तक ‘नाइफ’ की एक प्रति लेकर आई, जिसमें 2 साल पहले न्यूयॉर्क में उनकी हत्या के प्रयास का वर्णन है। पुस्तक के विषय ने मेरी जिज्ञासा जगाई। मैंने खुद दो हत्या के प्रयासों का सामना किया था, पहला अक्तूबर 1986 में जालंधर, पंजाब में और दूसरा अगस्त 1991 में रोमानिया की राजधानी बुखारेस्ट में। मेरे मामले में, संभावित घातक हमले एक व्यावसायिक जोखिम थे, जो भावनात्मक रूप से आवेशित आतंकवादियों के संचालन वाले क्षेत्रों में अपेक्षित थे। मुझे याद है कि प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने सुझाव दिया था कि मैं अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए एस.पी.जी. या एन.एस.जी. से ‘ब्लैक कैट्स’ की एक टुकड़ी अपने साथ पंजाब ले जाऊं।
मैंने विनम्रतापूर्वक प्रधानमंत्री के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। चूंकि मुझे पंजाब पुलिस का मनोबल बढ़ाने के लिए भेजा जा रहा था। इसलिए खालिस्तानी आतंकवादियों के खिलाफ लड़ाई में उनका नेतृत्व करने के लिए पंजाब के पुलिस की वफादारी हासिल करना मेरे लिए आवश्यक था। अगर मैं चंडीगढ़ में ‘ब्लैक कैट्स’ के साथ पहुंचता तो यह उन लोगों के लिए एक संकेत होता, जिनकी कमान संभालने के लिए मुझे भेजा गया था कि मैं उन पर भरोसा नहीं करता! और इससे मेरा मिशन शुरू होने से पहले ही असफल हो जाता। पंजाब में कार्यभार संभालने के अगले दिन सुबह गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने मुझे फोन करके उस नौकरी में निहित खतरे के बारे में चेतावनी दी, जिसे मैंने स्वीकार किया था। मैंने जवाब दिया कि एक सैनिक किसी नौकरी को सिर्फ इसलिए नहीं ठुकरा सकता, क्योंकि वह खतरनाक है।
लेबनानी-अमेरिकी युवक जिसने सलमान रुश्दी की ‘सैटेनिक वर्सेज’ के प्रकाशित होने के बाद उन्हें मारने के लिए अयातुल्ला खुमैनी के फतवे को लागू करने का फैसला किया था, वह अपने ही पिता से प्रभावित था, जिसने लड़के व उसकी मां और बहनों को अमेरिका में छोड़ दिया था और लेबनान लौट आया था। सलमान रुश्दी ने इस नृशंस हमले में अपनी एक आंख खो दी थी। उन्होंने अपने शरीर के विभिन्न हिस्सों पर चाकू के एक दर्जन से अधिक वार झेले, जो एक विक्षिप्त युवक द्वारा बेतरतीब ढंग से निर्देशित किए गए थे। सलमान रुश्दी भाग्यशाली थे कि उन्हें वह मिला, जिसे वह खुद ‘दूसरा मौका’ कहते हैं। मेरा अपना ‘प्यार’ जिसने मुझे 62 साल की शादी के बाद अकेला छोड़ दिया, वह मेरी हत्या के दोनों प्रयासों के दौरान मौजूद था। जालंधर में पहला प्रयास पूरी तरह से अप्रत्याशित था। यह कड़ी सुरक्षा वाले पंजाब सशस्त्र पुलिस (पी.ए.पी.) के मुख्यालय में हुआ था। मुझे पता था कि भूमिगत खालिस्तानियों ने मुझे मारने के लिए प्रशिक्षित हत्यारों के आधा दर्जन समूह संगठित किए थे, लेकिन मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वे मुझे मारने के लिए दो दुर्जेय बाधाओं को पार कर जाएंगे।
आतंकवादियों ने दीवारों की रखवाली कर रहे पंजाब पुलिस के कर्मियों को गोली मार दी। ऊपर चढ़ गए और मुझ पर और मेरी पत्नी पर गोलियों की बौछार कर दी। गोलियों की पहली आवाज सुनते ही मैं जमीन पर गिर पड़ा और अपनी पत्नी से भी ऐसा ही करने के लिए चिल्लाया। लेकिन मुझे जमीन पर पड़ा देखकर वह जांच करने आई और उसके एक पैर में गोली लग गई।
दूसरा प्रयास बुखारेस्ट में हुआ, जो पूर्वी यूरोपीय देश रोमानिया की राजधानी है। कुछ दिन पहले मुझे हमारी बाहरी खुफिया एजैंसी, आर.ए.डब्ल्यू. (रॉ) और रोमानियाई विदेश कार्यालय द्वारा भारतीयों के एक समूह की मौजूदगी के बारे में चेतावनी दी गई थी जो मुझे मारने की साजिश रच रहे थे। जब 2 कारों में सवार पांच खालिस्तानी कमांडो फोर्स के लोगों ने हमला किया तो मैं अपनी 62 साल की उम्र के बावजूद भाग गया। मेरी पत्नी मेरे पीछे दौड़ी, लेकिन जल्द ही के.सी.एफ के लोगों ने अपनी ए.के. 56 राइफलों के साथ उन्हें पकड़ लिया। वे मुझ पर गोलियां चलाते रहे, लेकिन केवल एक गोली मेरे कूल्हे पर लगी।
मुझे उनमें से किसी के खिलाफ कोई व्यक्तिगत शिकायत नहीं थी। वे एक अघोषित युद्ध में लड़ाके थे। सलमान रुश्दी ने अपनी पुस्तक में अपने संभावित हत्यारे के साथ एक काल्पनिक बातचीत को शामिल किया है। यह उनकी पुस्तक का एक हिस्सा था जिसने मुझे दिलचस्पी दी। यह धर्म के प्रति उनके दृष्टिकोण को प्रकट करता है और बताता है कि उन्होंने सृष्टि के सिद्धांत को क्यों त्याग दिया है जिसे अधिकांश संगठित धर्म मानते हैं। अपनी खुद की मान्यताओं के अनुसार, आप उनसे सहमत हो सकते हैं या नहीं भी।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)