पंजाब के कल्याण को समर्पित शक्तियों को पहचानना होगा

Tuesday, May 10, 2016 - 01:22 AM (IST)

(मंगत राम पासला): 2017 में होने वाले पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक दलों ने अपनी गतिविधियां तेज कर दी हैं। लोगों को लुभाने के लिए नए-नए वायदे किए जा रहे हैं और राजनीतिक गठजोड़ों की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। अभी से शुरू हो गए धन के दुरुपयोग से लगता है इस बार चुनाव खर्चे के पुराने सभी रिकार्ड ध्वस्त हो जाएंगे। 

 
पंजाब के लोगों को दिन-प्रतिदिन दरपेश आने वाली कठिनाइयों और समस्याओं की चर्चा भाषणों में दूसरे पक्ष को नीचा दिखाने के लिए ही की जाती है। न तो मौजूदा स्थिति की गंभीरता को ही टटोला जा रहा है और न ही जन समस्याओं के हल के लिए प्राथमिकताओं तथा उपायों का कोई उल्लेख किया जाता है। वैसे विभिन्न बुद्धिजीवी और लेखक अपने-अपने ढंग से पंजाब के चुनाव का एजैंडा तय करने के लिए अपनी राय की अभिव्यक्ति अवश्य कर रहे हैं। 
 
अकाली दल-भाजपा गठबंधन अपने 10 वर्षीय कार्यकाल दौरान अपनाए गए ‘विकास माडल’ को लोगों के सामने प्रस्तुत करके विकास के नाम पर फिर से सत्ता में आने की योजनाएं बना रहा है। इसके अलावा विपक्षी राजनीतिक खेमे में दुफेड़ पैदा करने  एवं कुछ दलों का सीधा व परोक्ष समर्थन हासिल करने के लिए सत्ता और पैसे का दुरुपयोग सभी सीमाओं को पार कर रहा है। पंजाब अंदर गुंडागर्दी करने वाले विभिन्न गिरोह भी सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए जीत का बड़ा हथियार हैं। 
 
कांग्रेस पार्टी मौजूदा सरकार की किसी आर्थिक नीति का विरोध करने की बजाय इसके शासनकाल दौरान हुए भ्रष्टाचार एवं कुशासन को अपने चुनाव अभियान का मुख्य मुद्दा बना रही है तथा विश्वास दिला रही है कि कांग्रेस के हाथों में सत्ता की बागडोर आने के बाद नशे के बढ़ रहे कारोबार पर पूरी तरह से रोक लगाई जाएगी और भ्रष्टाचार को खत्म किया जाएगा। ‘आप’ वाले दिल्ली की केजरीवाल सरकार की उपलब्धियों (?) का उल्लेख करके पंजाब के अलग-अलग भागों को जोडऩे एवं ‘नए पंजाब की स्थापना’ आदि जैसे फिजूल के नारों से सत्ता हासिल करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं।
 
इस आलेख का उद्देश्य किसी पार्टी की केवल आलोचना करना ही नहीं, बल्कि लोगों के समक्ष पंजाब के चुनाव के परिप्रेक्ष्य में एक लोकवादी एजैंडा प्रस्तुत करना है ताकि मतदाता किसी अन्य लालच या संकीर्ण मानसिकता के अधीन अपनी राय व्यक्त करने की बजाय इस एजैंडे को सामने रखें और इन आदर्शों के प्रति अतीत में जो प्रतिबद्ध संगठन संघर्षशील रहे हैं उन्हें अपना समर्थन दें। 
 
यह चुनाव कोई हल्की किस्म के लतीफे सुनने या मनोरंजन करने अथवा एक-दो महीनों के गुजारे हेतु भ्रष्टाचार रूपी दौलत इकठ्ठी करने का साधन नहीं है, बल्कि देश और पंजाब को विनाश से बचाने तथा आने वाली पीढिय़ों के उज्ज्वल भविष्य के प्रति संघर्षों के माध्यम से हासिल किए गए मताधिकार का सही प्रयोग करने का वाजिब अवसर है। 
 
सबसे महत्वपूर्ण प्रश्र है प्रदेश के अंदर तेजी से बढ़ रही बेकारी तथा शिक्षा, स्वास्थ्य एवं पेयजल सुविधाओं की कमी। यह काम विदेशी साम्राज्यवादी कम्पनियों, निजी ठेकेदारों अथवा बड़े-बड़े पूंजीपतियों के हवाले नहीं किया जाना चाहिए। 
 
लाखों की संख्या में घूम रहे अनपढ़ और पढ़े-लिखे बेरोजगारों को रोजगार की जरूरत है। सरकारी नौकरियों में खाली पड़ी आसामियों को भरकर एवं ठेकेदारी प्रथा का खात्मा करके सरकारी क्षेत्र में रोजगार सृजन द्वारा इस समस्या को काफी हद तक हल किया जा सकता है। बंद पड़ी छोटी एवं मझोली औद्योगिक इकाइयों को उचित सहायता देकर फिर से चालू किया जाना चाहिए। इसके साथ ही कृषि आधारित लघु एवं मझोले किस्म के कारखाने खोलने की भी भारी जरूरत है। इस काम के लिए उद्यमियों को वांछित पूंजी उपलब्ध करवाई जानी चाहिए। बेरोजगार लोगों को उचित बेरोजगारी भत्ता दिया जाना चाहिए। 
 
प्रदेश के अंदर अस्पतालों और स्कूलों की इमारतों एवं न्यूनतम आधारभूत ढांचे की कोई अधिक कमी नहीं है, मुख्य जरूरत है अध्यापकों, डाक्टरों और नर्सों  तथा नए यंत्रों की व्यवस्था करने की। निजी स्कूलों व निजी अस्पतालों में जिस प्रकार दोनों हाथों से लूट मची हुई है वह तभी बंद हो सकती है यदि मुकाबले पर सरकार अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों का अच्छी तरह निर्वाह करे और सबको नि:शुल्क एवं स्तरीय शिक्षा उपलब्ध करवाए। 
 
पंजाब में भू-जल का तीन-चौथाई हिस्सा बहुत ही नीचे चला गया है। प्रदेश के बड़े भाग में पानी पीने के योग्य नहीं रहा। 
विदेशी और देशी कम्पनियां पानी को शुद्ध करके लोगों को महंगे दामों पर बेच रही हैं। लोगों को पेयजल मुफ्त में उपलब्ध करवाना सरकार की जिम्मेदारी है। एक बड़ा मुद्दा है कृषि क्षेत्र का संकट। कर्जे के बोझ तले दबे 3-4 किसान हर रोज आत्महत्याएं कर रहे हैं। इनके ऋण का बोझ उतारे बिना यह संकट हल नहीं किया जा सकता। 
 
बढ़ रहा भ्रष्टाचार और नशे का छठा दरिया पंजाब को बर्बाद किए जा रहा है। यह काम सरकारें, सत्तारूढ़ राजनीतिक दलों के नेता, नौकरशाही और समाज विरोधी तत्व एकजुट होकर कर रहे हैं। बेकारी के कारण प्रफुल्लित हो रहे ये दोनों धंधे समाज में अफरा-तफरी मचा रहे हैं जिससे आम लोगों का जीवन असुरक्षित हो गया है। एक ओर आम आदमी बढ़ रही महंगाई से तंग हैं तथा दूसरी ओर भ्रष्टाचारी लोग उनकी कमाई हड़प किए जा रहे हैं। 
 
पंजाब में साम्प्रदायिक एवं चरमपंथी शक्तियां किसी न किसी बहाने अपनी कार्रवाई जारी रखे हुए हैं। पहले ही पंजाब इनके कारण बहुत संताप भोग चुका है। हर रंग के साम्प्रदायिक एवं प्रतिक्रियावादी तत्वों के विरुद्ध एक ओर जहां सरकार को वांछित कार्रवाई करने की जरूरत है, वहीं दूसरी ओर जनतांत्रिक एवं लोकवादी शक्तियों को साम्प्रदायिक शक्तियों के विरुद्ध वैचारिक संघर्ष पूरे जोर-शोर से लडऩा चाहिए। 
 
यदि उक्त निर्दिष्ट कुछ मुद्दों के आधार पर लोगों को जागरूक करके चुनाव दौरान उन्हें दोस्त और दुश्मन की पहचान करने की पद्धति बताई जा सके, तभी प्रदेश के अंदर होने वाले विधानसभा चुनाव में लोकवादी, प्रगतिवादी एवं वामपंथी शक्तियों को समर्थन देकर पंजाब की हो रही बर्बादी से उसे किसी न किसी हद तक बचाया जा सकता है। 
 
जरूरत इस बात की नहीं कि किसी व्यक्ति विशेष या किसी विशेष राजनीतिक पार्टी के हाथों में सत्ता सौंपी जाए या इसका परिवर्तन किया जाए, बल्कि जरूरत इस बात की है कि ऊपर बयान की गई मुश्किलों के हल हेतु जनवादी आर्थिक नीतियों, राजनीतिक इच्छाशक्ति, प्रतिबद्धता एवं अतीत की कारगुजारियों के आधार पर समर्पित शक्तियों की पहचान की जाए। 
 
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