भारत के मुसलमान हैं ‘देशभक्त’

Wednesday, Jun 17, 2020 - 03:02 AM (IST)

परिवार नियोजन कार्यक्रम का एक प्रभाव यह हुआ कि पढ़े-लिखे बुद्धिजीवी वर्ग में परिवार छोटे होने लगे परन्तु गरीब प्रदेशों के गरीब, अनपढ़ वर्ग में आबादी उसी अनुपात में बढ़ती रही। मुस्लिम परिवारों में अधिक विवाह भी आबादी बढ़ा रहा है। मुस्लिमों में अधिक गरीबी का यह भी एक कारण है। इसके कारण आबादी के स्तर का अनुपात बिगड़ गया। 

बढ़ती आबादी से विभिन्न वर्गों में आबादी का अनुपात भी खराब हो रहा है। देश के विभाजन के समय मुसलमानों की कुल संख्या लगभग 3 करोड़ थी। जो आज बढ़ कर 18 करोड़ हो गई। मुसलमानों की बढ़ती आबादी इसलिए भी चिंता का विषय है कि उनमें आज भी बहुत से उस मनोवृत्ति के लोग हैं जो अपने आपको सैंकड़ों वर्ष पहले भारत में आए विदेशी आक्रमणकारियों का वंशज समझते हैं। 

भारत में नागरिकता कानून आंदोलन के समय शाहीन बाग जैसे स्थानों पर जिस प्रकार के नारे लगते रहे वह भारत के भविष्य के लिए चिंता का विषय है। एक समय था जब भारत के विभाजन की बात को केवल कोरी कल्पना समझा जाता था। महात्मा गांधी जैसे महान नेता ने कहा था,‘‘पाकिस्तान मेरी लाश पर बनेगा।’’ इस सबके बाद भी पाकिस्तान बना और लाखों लोगों का कत्लेआम और करोड़ों लोग विस्थापित हुए। 

मैं भारत के मुसलमानों को देश भक्त समझता हूं। मैं चाहता हूं कि भारत के मेरे सभी मुस्लिम भाई-बहन भारत के एक महान विद्वान देशभक्त मुसलमान सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस मोहम्मद करीम छागला की तरह की मनोवृत्ति रखें। छागला जी ने बड़े गर्व से कहा था, ‘‘मेरी रगों में भारत के ऋषियों-मुनियों का खून दौड़ता है।’’ वे कहते थे उनके पूर्वजों ने पूजा करने का तरीका बदला था। वे विदेशों से आए बर्बर हमलावरों की संतान नहीं हैं। 

इंडोनेशिया के बाली जैसे स्थानों पर भारत की तरह रामलीला का मंचन होता है। एक बार भारत के एक मंत्री वहां गए। उन्होंने वहां एक मंत्री से पूछा कि उनका धर्म मुस्लिम है, फिर वे रामलीला क्यों करते हैं। उस मंत्री ने यही कहा था,‘‘हमारे पूर्वजों ने पूजा करने का तरीका बदला था अपने बाप-दादा नहीं बदले थे।’’ इतिहास को भुलाया नहीं जा सकता। बढ़ती आबादी का यह भी एक बहुत बड़ा संकट है। इसीलिए कई बार कुछ हिंदू नेता हिंदुओं को अधिक बच्चे पैदा करने की शिक्षा देते हैं। यह समस्या का समाधान नहीं। आवश्यकता है कि सबके लिए अलग कानून बना कर बढ़ती आबादी के विस्फोट को रोका जाए। 

बढ़ती आबादी का सबसे अधिक खतरनाक और चिंताजनक परिणाम बढ़ती गरीबी है। देश के शहीदों ने फांसी के फंदों को चूमते समय एक खुशहाल भारत बनाने का संकल्प किया था परन्तु भारत में एक खुशहाल भारत नहीं बना-दुर्भाग्य से चार भारत बन गए। पहला नीरव मोदी जैसे लुटेरों का मालामाल भारत-उसी तरह के 65 लुटेरे भारत का लाखों करोड़ रुपया लूट कर विदेशों में ऐश कर रहे हैं। दूसरा खुशहाल भारत जो अपने महलों में आराम कर रहा है-तीसरा सामान्य भारत जो संघर्षमय जीवन व्यतीत कर रहा है और चौथा गरीब और भूखा भारत। यही वह भारत था जो पिछले दिनों भारत की सड़कों पर स्टेशन से बाहर प्रवासी मजदूरों के रूप में चलता-मरता नजर आ रहा था। 

ग्लोबल हंगर इंडैक्स के अनुसार विश्व के 129 देशों में भारत नीचे 103 क्रमांक पर है। 97 से 103 तक के देशों को भुखमरी की गंभीर स्थिति से आंका गया है। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत के 19 करोड़ 46 लाख लोग इतने गरीब हैं कि रात को लगभग भूखे पेट सोते हैं। भारत में प्रति व्यक्ति  आय 2 हजार डालर है। जबकि अमरीका में 55 हजार और चीन में 8 हजार डालर है। 

विश्व में सबसे अधिक भूखे लोग भारत में रहते हैं और कुपोषण से मरने वाले बच्चों की संख्या भी भारत में सबसे अधिक है। राष्ट्र संघ के एक सर्वेक्षण के अनुसार विश्व के खुशहाल देशों की सूची में भारत बहुत नीचे 122 क्रमांक पर है। नीति आयोग की रिपोर्ट ने भी यह कहा है कि 2017 के बाद आर्थिक विषमता बढ़ी है। आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की यू.एन.डी.पी. रिपोर्ट के अनुसार भी भारत में आॢथक विषमता बढ़ रही है।

विश्व बैंक के अनुसार दुनिया के गरीबों का तीसरा हिस्सा केवल भारत में है। विश्व में सबसे अधिक गरीब भारत में, उसके बाद नाईजीरिया में। ग्लोबल हंगर इंडैक्स के अनुसार विश्व के 118 देशों में भारत 2015 में नीचे क्रमांक  93 पर था। 2016 में और नीचे क्रमांक 97 पर पहुंचा फिर 2017 में क्रमांक 100 पर, 2018 में 103 परन्तु 2019 में थोड़ा ऊपर 102 पर आया। शर्म की बात तो यह है कि छोटे से देश नेपाल, बंगलादेश, श्रीलंका तथा दक्षिण अफ्रीका भारत से ऊपर हैं। 

भारत की गरीबी की नाजुक व शर्मनाक हालत यह है कि कुछ अति गरीब प्रदेशों की अति गरीब घरों की बेटियां खरीदी व बेची तक जाती हैं। पिछले दिनों ऐसी एक बेटी बिकते-बिकते हरियाणा तक पहुंची और एक हिमाचल भी पहुंची। गरीबी के कारण बच्चों को बेचने तक के समाचार शर्म से सिर झुका देते हैं। गरीबी से मजबूर कुछ को वेश्यालयों तक पहुंचाया जाता है। भारत में वेश्याओं की संख्या 7 लाख तक पहुंच गई है। भारत सदियों तक गुलाम रहा। इतिहास में गजनी के बाजारों में भारत का बहुत कुछ बिकने व नीलाम होने की कहानियां पढ़ कर शर्म आती है परन्तु आजादी के 72 वर्षों के बाद भी ऐसा हो तब समझ नहीं आता, क्या करें और कहां चले जाएं।-शांता कुमार(पूर्व मुख्यमंत्री हि.प्र. और पूर्व केन्द्रीय मंत्री)

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