मुसलमान लड़कियां और ‘हिजाब’

punjabkesari.in Friday, Feb 11, 2022 - 07:03 AM (IST)

कनार्टक में कुछ मुस्लिम लड़कियां कालेज में ‘हिजाब’ पहन कर जाने पर जोर दे रही हैं। कालेज प्रशासन  का कहना है कि इसकी इजाजत नहीं दी जाएगी। जो लड़कियां हिजाब पहनना चाहती हैं उनका कहना है कि ये उनका संवैधानिक अधिकार है तथा ऐसा करना धार्मिक कत्र्तव्य। क्या यह कत्र्तव्य मुस्लिम धर्मग्रंथ में प्रतिष्ठापित है? मुझे इसमें संदेह है। मुस्लिम धर्मग्रंथ पैगंबर के समय में अस्तित्व में आया जब हवाओं से रेगिस्तान की धूल उड़ती थी तथा पुरुषों तथा महिलाओं दोनों को उचित कपड़े का इस्तेमाल करके अपनी आंखों तथा मुंह को बचाने के लिए मजबूर होना पड़ता था। 

यदि इस्लाम में हिजाब पहनना एक धार्मिक कत्र्तव्य है तो इस बात में तर्क है कि इस्लाम का अनुसरण करने वाली विश्व में सभी महिलाओं को निश्चित तौर पर बुर्का पहनना चाहिए मगर निश्चित तौर पर ऐसा नहीं है। न केवल भारत में बल्कि इस्लाम के केंद्र अरब प्रायद्वीप में मैंने निजी तौर पर बहुत सी महिलाओं को देखा है जिन्होंने अपना चेहरा नहीं ढंका था। जिन्होंने लंबा काला लबादा (हमारे यहां के पुरुषों के विपरीत, जो सुविधाजनक पहरावा पहनते हैं, उनके पुरुष ल बा सफेद लबादा पहनते हैं) पहन रखा था उनमें से बहुसंख्यक ने एक नियम के तौर पर अपने चेहरे को नहीं ढंका था।

रोमानिया में अपने देश के राजदूत के तौर पर अपने 4 वर्षों के दौरान मैं इस्लामिक देशों के अपने समकक्षों की पत्नियों से मिला हूं। ईराक, सीरिया, मिस्र तथा लेबनान से महिलाओं ने वास्तव में पश्चिमी परिधान पहन रखे थे, जो पाकिस्तान से थीं उन्होंने अपने चेहरे या बालों को ढंकने के विचार के बिना पारंपरिक सलवार कमीज तथा जो बंगलादेश से थीं उन्होंने साड़ी पहन रखी थी। इससे मुझे यह अनुमान लगता है कि ‘हिजाब’ पहनना एक धार्मिक जरूरत नहीं है तो फिर क्यों एक ऐसे नियम को लेकर यह सारा विवाद है, जो कै पस में झगड़े तथा राजनीति से बचाव कर सकता है?

मेरी जवानी के दिनों में मेरे शहर मु बई में हिजाब कुछ मध्यमवर्गीय तथा नि न वर्गीय महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला कपड़ा था। वे उन परिवारों से थीं जो ‘मुल्लाओं’ के आदेशों को मानते थे। विश्व भर में इनकी सं या बढ़ गई है क्योंकि राजनीतिक टिप्पणियां करनी होती हैं। प्रमुख अस्पतालों में शिक्षित लड़कियां, युवा डाक्टर देखी जा सकती हैं जिन्होंने अपने गले में स्टेथोस्कोप लपेटे होते हैं तथा अपने सिर को फैशनेबल हैड-स्काव्र्स से ढंका होता है जो उनके प्रत्येक बाल को छिपा लेते हैं। 

ऐसा मैंने अपने विद्यार्थी काल में नहीं देखा। मगर आज राजनीतिक इस्लाम ऐसा करने में सफल हो गया है। मगर यूनिवॢसटी अथवा कालेज के नियमों की उल्लंघना करके इसे और बढ़ा दिया गया है जिससे ये सबकुछ जनता की जांच के घेरे में आ गया है। और यहां मुझे डर है कि परेशान अल्पसं यक समुदाय को बहुसं यक समुदाय के प्रबुद्ध लोगों से जिस समर्थन की जरूरत है वह खत्म हो जाएगा। 

उदारवादी तथा सहानुभूतिपूर्ण हिन्दुओं तथा गैर मुसलमानों की नजरों में हिजाब एक कुरुपता है जो महिलाओं को एक अधीनता में ले आता है क्यों किसी महिला को उसके करीबी पारिवारिक सदस्यों के सिवाय पुरुषों की नजरों से अपनी खूबसूरती को छिपाने के लिए कहा जाए। निश्चित तौर पर उसके साथ पुरुष के अधिकार वाली एक वस्तु की तरह व्यवहार किया जाता है। ऐसा विचार वर्तमान समय के पूर्णत: खिलाफ है। लिंग समानता एक शिखर है जहां आधुनिक समाज पहुंचना चाहते हैं। ‘हिजाब’ इसके ठीक विपरीत बताता है। 

मेरी राय में यदि कर्नाटक में लड़कियों ने पहले परीक्षण के तौर पर हिजाब पहन कर राज्य में भाजपा सरकार का परीक्षण करने की ठानी है तो उन्होंने एक रणनीति गलती बल्कि बहुत बड़ी गलती की है। हिजाब वह अंतिम कपड़ा है जो बहुलतावादी शक्तियों के खिलाफ लड़ाई में शामिल होने के इच्छुक गैर मुसलमानों की सहानुभूति को आकर्षित करता है।-जूलियो रिबैरो (पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)
 


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