मुस्लिम परिवारों ने शिवरात्रि का त्यौहार मना कर कायम की ‘साम्प्रदायिक सौहार्द’ की मिसाल

Friday, Mar 03, 2017 - 10:38 PM (IST)

देश के मुकुट जम्मू-कश्मीर की जमीनी हकीकत पूर्व केन्द्रीय मंत्री पी. चिदम्बरम के उस दावे को सिरे से खारिज करती है, जिसमें उन्होंने उल्लेख किया था कि कश्मीर भारत के हाथ से लगभग निकल चुका है। आतंकवाद के दुर्दिनों में बुरी तरह झुलसने के बावजूद राज्य का जम्मू संभाग तो खैर हमेशा तमाम शंकाओं से अछूता रहा, लेकिन कश्मीर घाटी में भी हालात इतने बुरे नहीं हैं कि देश की आंतरिक सुरक्षा की कमान संभाल चुके किसी नेता को राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता के कटघरे में खड़ा करती और देशवासियों की भावनाओं को लहूलुहान करती ऐसी चुभने वाली बात कहने की जरूरत पड़े। 

कश्मीर में खूंखार आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिद्दीन के कमांडर बुरहान वानी की सुरक्षा बलों के हाथों हुई मौत के बाद कश्मीर घाटी में चले पत्थरबाजी के दौर, आतंकी संगठनों में 59 कश्मीरी युवाओं की ताजा भर्तियों, आगामी पंचायतीराज चुनावों एवं श्री अमरनाथ यात्रा में खलल डालने की साजिश संबंधी खुफिया एजैंसियों की सूचनाओं और अलगाववादी नेताओं से लेकर भारतीय संविधान की शपथ ग्रहण करके महत्वपूर्ण पदों पर आसीन रहे डा. फारूक अब्दुल्ला जैसे नेताओं के भड़काऊ बयानों के रूप में नकारात्मक घटनाओं की फेहरिस्त निस्संदेह बहुत लम्बी है, लेकिन उदार कश्मीरी मुस्लिमों द्वारा समय-समय पर दर्शाई गई देशभक्ति के किस्से और साम्प्रदायिक सद्भावना की मिसालें भी कम नहीं हैं। 

इसी कड़ी में कश्मीर के बांदीपुरा जिले में स्थानीय मुस्लिम परिवारों द्वारा स्थापित की गई साम्प्रदायिक सद्भाव की मिसाल तूफान में जलते छोटे से दीए के प्रकाश-पुंज की भांति अंधेरे में उम्मीद का भाव जगाती है। इस महाशिवरात्रि पर बांदीपुरा के स्थानीय मुस्लिम परिवारों ने महाशिवरात्रि पर न केवल शिव मंदिर की सफाई एवं साज-सज्जा की बल्कि शिवङ्क्षलग का जलाभिषेक करके मिठाइयां और प्रसाद भी बांटा। इन मुस्लिम परिवारों ने कश्मीर में शांति स्थापना की प्रार्थना करने के अलावा आतंकवाद के कारण घाटी से पलायन कर चुके कश्मीरी पंडित परिवारों को घरवापसी का आह्वान भी किया। धूमधाम से शिवरात्रि का महापर्व मनाने वाले ये मुस्लिम परिवार ही नहीं, बल्कि घाटी का बहुत बड़ा मुस्लिम तबका यह मानता है कि कश्मीरी पंडितों के बिना कश्मीर अधूरा है। यदि पंडित कश्मीर में लौट आएं तो घाटी की अर्थव्यवस्था को मजबूत किया जा सकता है। 

घाटी में ऐसा सुखद माहौल पहली बार देखने को नहीं मिला है, बल्कि विभिन्न जिलों में इस प्रकार की मिसालें अक्सर देखने को मिलती हैं। गंदरबल व अनंतनाग में मुस्लिम परिवारों द्वारा की गई कश्मीरी पंडितों की शादियां और पुलवामा व श्रीनगर के हब्बा कदल इलाके में मुस्लिमों द्वारा कश्मीरी पंडितों का हिन्दू रीति से अंतिम संस्कार किया जाना भी साम्प्रदायिक सद्भाव का उदाहरण है। यह सही है कि आतंकवाद का दौर शुरू होने के बाद कश्मीर घाटी में हिन्दू पूजास्थल मंदिरों को भारी नुक्सान पहुंचा है और बहुत से मंदिरों की जमीनों पर अवैध कब्जे हो गए लेकिन यह भी उतना ही सच है कि नाममात्र हिन्दू आबादी वाले मुस्लिम बहुल इलाकों में स्थित कई हिन्दू मंदिरों को घाटी के मुस्लिम समुदाय के सहयोग से ही सहेजकर रखा गया है। 

उदाहरण के तौर पर आतंकवाद के गढ़ रहे शोपियां व पुलवामा के बीच होल में सड़क किनारे स्थित प्राचीन शिव मंदिर और अनंतनाग का ऐतिहासिक मार्तंड तीर्थ प्रमुख हैं। इसी प्रकार, अवंतीपुरा में पांडवों के निशानी स्थल को पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित किया गया है। कश्मीर में सकारात्मक पहलू भी काफी मजबूत है, लेकिन फिर कुछ अप्रिय घटनाएं लोगों की भावनाओं को चकनाचूर कर देती हैं। खुद पंडित भी घाटी स्थित अपने घरों को लौटना चाहते हैं, लेकिन कुछ शरारती तत्व बीच-बीच में हिंसात्मक गतिविधियों को अंजाम देकर अशांति का माहौल बनाकर उनके मन में असुरक्षा की भावना उत्पन्न कर देते हैं। 

यह सही है कि कश्मीर घाटी में आतंकवादियों एवं अलगाववादियों की सक्रियता के चलते अशांति, असुरक्षा एवं अनिश्चितता का दौर है, लेकिन पिछले 27 वर्षों के दौरान धरती के स्वर्ग कश्मीर ने जो कुछझेला है, उसके मुकाबले आज के हालात कुछ भी नहीं हैं। आज कश्मीर के हालात में पहले से बहुत सुधार आया है। आज कोई भी व्यक्ति घाटी के किसी भी कोने में निश्चिंत होकर घूम सकता है। ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए कि निकट भविष्य में कश्मीर के हालात में और सुधार होगा तथा कश्मीर को भारत के हाथ से निकलने की उम्मीद पालने वालों को मुंह की खानी पड़ेगी।

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