मुक्ति वाहिनी और 21 नवम्बर, 1971 का दिन

punjabkesari.in Sunday, Nov 21, 2021 - 03:51 AM (IST)

भारतीय उप-महाद्वीप के इतिहास में 1971 एक फलदायक वर्ष था। 25 मार्च 1971 को पश्चिमी पाकिस्तान की सेना ने आप्रेशन सर्चलाइट शुरू किया तथा केवल ढाका में ही रात भर चली कार्रवाई में 7000 से अधिक बंगाली विद्वानों तथा अन्य महत्वपूर्ण लोगों का नरसंहार कर दिया गया। इस पर मृत्युंजय देवरत की एक बहुत मार्मिक फिल्म है जिसका नाम चिल्ड्रन ऑफ वार अथवा ‘द बास्टर्ड चाइल्ड’ (मई 2014) है और इसमें दिखाया गया है कि पश्चिमी पाकिस्तान की सेना ने पूर्वी पाकिस्तान के जातीय बदलाव के लिए युद्ध के हथियार के तौर पर बलात्कार तथा महिलाओं को गर्भवती बनाया। 

9 महीने बाद आतंक की वह रात आखिरकार पूर्वी पाकिस्तान के यातना दिए गए लोगों के लिए समाप्त हुई। निर्णायक तौर पर रौंद दी गई पश्चिमी पाकिस्तान की सेना ने आखिरकार 16 दिसम्बर 1971 को लैफ्टिनैंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। जनरल आमिर अब्दुल खान नियाजी के अंतर्गत 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों को युद्धबंदी बना लिया गया। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को एक बार फिर 1971 के बाद दक्षिण एशिया के नक्शे को दोबारा बनाने का श्रेय जाता है तथा जनरल (बाद में फील्ड मार्शल) सैम मानेकशॉ एक युद्ध नायक के तौर पर उभरे। 

पहले आप्रेशन सर्चलाइट के बारे में। पाकिस्तान नैशनल असैंबली के लिए चुनाव 7 दिसम्बर 1970 को हुए। संयोग से यह पहले चुनाव थे जो पाकिस्तान के जन्म के बाद हुए थे और संयोग से बंगलादेश की स्वतंत्रता से पहले होने वाले भी एकमात्र थे। सभी 300 निर्वाचन क्षेत्रों में वोट डाले गए। उनमें से 162 पूर्वी पाकिस्तान में थे तथा 138 पश्चिमी पाकिस्तान में। पूर्वी पाकिस्तान में मौजूद 162 सीटों में से शेख मुजीबुर्रहमान की आवामी लीग 160 सीटें जीतने में सफल रही। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी ने पश्चिमी पाकिस्तान में पड़ती सभी सीटों में से केवल 81 जीतीं। 

पाकिस्तान के सैन्य तानाशाह जनरल याहिया खान ने इस निर्णय को स्वीकार करने से इंकार कर दिया और औपचारिक तौर पर नैशनल असैंबली का उद्घाटन कर दिया। वह तथा पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पी.पी.पी.) के नेता जुल्फिकार अली भुट्टो नहीं चाहते थे कि एक संघीय सरकार का नेतृत्व पूर्वी पाकिस्तान आधारित आवामी लीग के शेख मुजीबुर्रहमान करें। जनरल ने पूर्वी पाकिस्तान से एक ‘गद्दार’ नुरुल अमीन को प्रधानमंत्री के तौर पर नियुक्त कर दिया। उसे अवामी लीग तथा पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के बीच झगड़े को सुलझाने का काम सौंपा गया। 

22 फरवरी 1971 को पश्चिमी पाकिस्तान के जनरलों की बैठक में कोर-कमांडरों ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया कि प्रतिरोध की बंगाली भावना को समाप्त करने के लिए नरसंहार से कम कुछ भी नहीं चलेगा। बैठक में राष्ट्रपति याहिया खान ने गर्जना की कि उनमें से 30 लाख को मार दो तथा बाकी के हमारे हाथों में आ जाएंगे। 

लूट, बलात्कारों तथा नरसंहार को न्यायोचित ठहराने के लिए मुसलमानों को ङ्क्षहदुओं के वेश में भेजा गया। 25 मई 1971 तक 30 लाख बंगालियों को निर्दयतापूर्वक काट डाला गया जबकि अन्य एक करोड़ सीमा पार करके भारत भाग गए। इसीलिए 25 मार्च 1971 की तिथि को असम के 1985 के समझौते के पैरा 5.8 में एक प्रमुख उल्लेख हासिल है। पलक झपकते ही तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान राइफल्स तथा पूर्वी पाकिस्तान पुलिस में सेवारत हजारों बंगालियों ने अपने निरीह भाइयों पर किए जा रहे अत्याचारों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। उन्होंने अपनी रैजीमैंट्स तथा बटालियनों को छोड़ दिया और एक प्रतिरोध आंदोलन शुरू किया। 

कार्रवाई में जमीनी स्तर पर तालमेल बनाने के लिए एक कमान मुख्यालय बनाना अपिरहार्य बन गया था। इसकी स्थापना कलकत्ता में की गई तथा इसे भारतीय सेना की पूर्वी कमान के नियंत्रण में पूर्वी पाकिस्तान की निर्वासित सरकार के साथ जोड़ा गया। जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा को भारतीय सशस्त्र बलों तथा मुक्ति वाहिनी के नाम से जाने जाते प्रतिरोधी लड़ाकों के सुप्रीम कमांडर के तौर पर नामित किया गया। 

बड़ी संख्या में प्रशिक्षित तथा अप्रशिक्षित प्रतिरोधी लड़ाकों, जो पूर्वी पाकिस्तान से भारत पहुंचे थे, को भी उनकी गुरिल्ला युद्ध रैजीमैंट के अतिरिक्त 3 इंफैंट्री ब्रिगेड्स में संगठित किया गया। चूंकि मुक्ति वाहिनी के सदस्य सीमा पार की जमीन से वाकिफ थे, उनका ‘कोलैबोरेटर्स’ तथा रजाकारों को समाप्त करने के लिए बेहतर इस्तेमाल किया ताकि भारतीय सेना तेजी से ढाका की तरफ बढ़ सके। 21 नवम्बर 1971 को मुक्ति वाहिनी द्वारा पश्चिमी पाकिस्तान की सेना की फार्मेशंस में डर पैदा करने के लिए छापों, जिन्हें आज की भाषा में सर्जीकल स्ट्राइक कहा जाता है, की शुरूआत की। 

30 नवम्बर तक पश्चिमी पाकिस्तानी सुरक्षा को प्रभावी तौर पर कमजोर कर दिया गया ताकि भारतीय सेना अपना निर्णायक हमला बोल सके। यह हमला 30 नवम्बर तथा पहली दिसम्बर 1971 की मध्य रात्रि को शुरू हुआ। 16 दिसम्बर तक ढाका भारत के हाथों में आ गया। इस तरह से बंगलादेश का जन्म हुआ। इस तरह से पूर्वी पाकिस्तान में सैन्य आप्रेशन 21 नवम्बर को शुरू हुए न कि 10-12 दिन बाद, जैसा कि आमतौर पर माना जाता है।-मनीष तिवारी
 


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