मानव तस्करी रोकने के लिए अभी बहुत प्रयासों की जरूरत

punjabkesari.in Thursday, Sep 16, 2021 - 06:28 AM (IST)

मानव तस्करी विश्व में एक गंभीर व संवेदनशील समस्या बनकर उभर रही है। मादक पदार्थों व हथियारों की तस्करी के बाद मानव तस्करी दुनिया में सबसे बड़ा संगठित अपराध है। किसी व्यक्ति को बल प्रयोग कर, डराकर, धोखा देकर, हिंसक तरीकों से भर्ती करना तस्करी या फिर बंधक बना कर रखना तस्करी के अंतर्गत आता है।  इसमें पीड़ित व्यक्ति से देह व्यापार, घरेलू काम तथा गुलामी इत्यादि के कार्य उसकी इच्छा के विरुद्ध करवाए जाते हैं। वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार मानव तस्करी का सबसे बड़ा रूप यौन शोषण है, दूसरा बलात् श्रम है। अफ्रीका और मेकांग क्षेत्र के कुछ हिस्सों में 100 प्रतिशत मामलों में पीड़ितों को उनके देश की बाहरी सीमाओं की बजाय देश की अंदर ही उनकी तस्करी की जाती है। 

नैशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार 90 प्रतिशत महिलाओं और लड़कियों की तस्करी यौन शोषण  के  लिए  की  जाती  है।  मानव  तस्करी  के  कई  कारण  हैं, जिनमें मु यत: गरीबी, अशिक्षा, सामाजिक  असमानता, क्षेत्रीय लैंगिक  असंतुलन, बेहतर  जीवन  की  लालसा, सामाजिक असुरक्षा इत्यादि हैं। इसके अतिरिक्त चाइल्ड पोर्नोग्राफी, यौन शोषण व बंधुआ मजदूरी जैसे भी कई अन्य कारण हैं। इस धंधे में आमतौर पर स्थानीय एजैंट संलिप्त होते हैं, जो गरीब मां-बाप को बहला-फुसला कर व कई किस्म के प्रलोभन देकर लड़कियों व बच्चों को अपने चंगुल  में फंसा  लेते हैं तथा इस धंधे से मोटी कमाई करते हैं। ये लोग पुलिस व अन्य सरकारी संस्थानों के अधिकारियों के साथ भी अपना पूरा ताल-मेल रखते हैं। 

ऐसे धंधों को चलाने के लिए कई संवेदनशील (हॉट-स्पॉट) होते हैं, जैसे कि फैक्ट्रियां, कृषि व पशु पालन क्षेत्र, डांस व मालिश इत्यादि पार्लर तथा अब तो होटलों व सड़क पर बने ढाबों में भी इन धंधों को चलाया जाता है। यदि हम पूरे विश्व की बात करें तो ईरान, ईराक, पाकिस्तान, नेपाल, बंगलादेश, चीन, जापान, थाईलैंड जैसे देशों में भी यह ध्ंाधा खूब चलाया जाता है। भारत में वैसे तो लगभग प्रत्येक राज्य में यह धंधा पनपता जा रहा है, परंतु मुख्यत: पश्चिम बंगाल, असम, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु, गुजरात व गोवा में यह अपराध बढ़ता जा रहा है। भारत में प्रत्येक 8 मिनट में एक बच्चे का अपहरण कर लिया जाता है तथा इनसे कई प्रकार के कार्य, जैसे बंधुआ व बाल मजदूरी, भीख मांगना, अंग निकालना, बाल विवाह तथा यौन शोषण इत्यादि जैसे कार्य करवाए जाते हैं। 

राष्ट्रीय रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2016 में भारत में मानव तस्करी के 8,000 से ज्यादा मामले सामने आए। वर्ष 2019 में 1,000 केस रिपोर्ट हुए थे तथा 95 प्रतिशत तस्करी की हुई महिलाओं को वेश्यावृत्ति में झोंका गया था।वर्तमान में 6616 मुकद्दमे रिपोर्ट हुए हैं। यह भी रिपोर्ट किया गया है कि प्रतिवर्ष 44,000 बच्चों का अपहरण कर लिया जाता है। इस अपराध को रोकने के लिए भारत सरकार ने समय-समय पर कई कदम उठाए हैं तथा कई प्रकार के स त कानून भी लागू किए हैं। वर्ष 2018 में मानव तस्करी (निवारण, संरक्षण और पुनर्वास) विधेयक बनाया गया जिसके अंतर्गत जिला स्तर पर एंटी ट्रैफिकिंग यूनिट बनाए जाने का प्रावधान रखा गया है। 

जिले में एक जिला नोडल अधिकारी नियुक्त किया जाएगा तथा ऐसी घटनाओं की एफ.आई.आर. तुरंत दर्ज की जाएगी और मामलों की त तीश 90 दिनों के भीतर पूरी करनी होगी। पीड़ितों के संरक्षण और पुनर्वास के लिए शरण स्थल, भोजन की व्यवस्था काऊंसलिंग, मैडीकल व संरक्षण गृह बनाने के प्रावधान रखे गए हैं। इसी के साथ-साथ शैक्षणिक कार्यक्रम चलाना, संवेदनशील समुदायों के लिए  जीविकोपार्जन कार्यक्रम तथा विशेष अदालतें गठित करने का प्रावधान रखा गया है। 

ऐसे मामलों में अपराधी को बिना वारंट गिर तार किया जा सकता है तथा उनकी स पत्ति की कुर्की व जब्ती का प्रावधान भी रखा गया है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, ऐसे मामलों का भी समय-समय पर संज्ञान लेता रहता है तथा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग व राष्ट्रीय महिला आयोग भी कड़ी नजर रखता है।

पिछले 2 वर्षों में कोविड-19 महामारी के अंतर्गत भी मानव तस्करी के मामले बढ़े हैं तथा केंद्र सरकार ने इस स्थिति से निपटने के लिए राज्य सरकारों को पर्याप्त धन उपलब्ध करवाया है तथा आपातकाल रिस्पांस सिस्टम को और भी मजबूत किया है। इसके अतिरिक्त पुलिस विभाग में महिला पुलिस को 33 प्रतिशत तक प्रतिनिधित्व देने का प्रस्ताव भी रखा है। ऐसे अपराधों को रोकने व अपराधियों को पकडऩे के लिए पुलिस विभाग अपना दायित्व निभाता आ रहा है मगर फिर भी काफी कुछ करना शेष है तथा इस संबंध में नि नलिखित कुछ सुझाव रखे जाते हैं। 

1. वेश्यावृत्ति में जबरदस्ती धकेली महिलाओं को वेश्या के रूप में न देखा जाए। उनकी मानसिक स्थिति का गहनता से अध्ययन किया जाए तथा उन्हें इस धंधे से बाहर निकालने के लिए अन्य सभी संबंधित संस्थाओं का सहयोग लेना चाहिए।
2. ऐसे मुकद्दमों को सिद्ध करने के लिए पीड़ित महिलाओं को अवांछित बयान देने के लिए बाध्य न किया जाए तथा अन्य प्रत्यक्ष साक्ष्यों को आधार बना कर ही अपना बयान देने के लिए प्रेरित किया जाए।
3. पीड़ित महिलाओं व उनसे संबंधित मुकद्दमों में शामिल किए गए गवाहों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त साधन जुटाने चाहिएं।
4. एंटी मानव तस्करी यूनिट स्थापित करने चाहिएं तथा इनमें विशेष प्रशिक्षण प्राप्त किए हुए तथा उच्च चरित्र वाले अधिकारियों/ कर्मचारियों को तैनात करना चाहिए और इन यूनिट्स की मॉनीटरिंग पुलिस अधीक्षक रैंक के अधिकारियों द्वारा की जानी चाहिए। 

5. ऐसे संस्थान, जहां पर महिलाएं  व बच्चे काम करते हों, का औचक  निरीक्षण करते रहना चाहिए तथा उनके पहचान पत्रों की गहनता से जांच करनी चाहिए।
6 सामुदायिक पुलिसिंग की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए तथा बीट प्रणाली को सुदृढ़ बनाना चाहिए। लोगों के ऐच्छिक सहयोग के लिए पंचायत स्तर के जन प्रतिनिधियों से निरंतर संपर्क बनाए रखना चाहिए।
7. इस धंधे में संलिप्त एजैंटों (पिंप्स) पर कड़ी
निगरानी रखनी चाहिए तथा उनके द्वारा अर्जित की गई संपत्ति का संज्ञान लेते रहना चाहिए। 

8. आपातकाल नियंत्रण कक्ष पूरी तरह सशक्त किए जाने चाहिएं। इन कक्षों में सुगम संचार व्यवस्था तथा पर्याप्त मोटर-वाहन की सुविधाएं उपलब्ध करनी चाहिएं।
9. सरकार को इस संवेदनशील समस्या के समाधान के लिए पुलिस को पर्याप्त धन उपलब्ध करवाना चाहिए।
10. पुलिस कर्मचारियों/ अधिकारियों का ऐसे संवेदनशाील अपराधों के प्रति अपने नजरिए व सोच में परिर्वतन लाना होगा, जिसके लिए उन्हें निरंतर प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।  
आओ हम सभी बुद्धिजीवी नागरिक, मीडिया व न्यायालय इस गंभीर व संवेदनशील समस्या पर नियंत्रण पाने के लिए अपना फर्ज व दायित्व निभाएं, ताकि आज के नन्हे बच्चे व महिलाएं इस प्रजातांत्रिक देश में खुले रूप से संास ले सकेंतथा दरिंदे भेडिय़ों पर शिकंजा कसा जा सके। जब तक हमारे भीतर के इंसान को बदलने की कोशिश नहीं होगी, तब तक मानव तस्करी जैसे अपराध होते रहेंगे।-राजेन्द्र मोहन शर्मा डी.आई.जी. (रिटायर्ड)


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