एम.क्यू.एम.-पी. तथा पी.एस.पी. गठजोड़ अचानक क्यों टूटा

Tuesday, Nov 21, 2017 - 04:14 AM (IST)

मुत्ताहिदा कौमी मूवमैंट-पाकिस्तान (एम.क्यू.एम.(पी.) तथा पाक सरजमीं पार्टी (पी.एस.पी.) के बीच जल्दबाजी में हुआ गठबंधन कार्यशील होने से पहले ही टूट गया। इसके टूटने का एक कारण जहां सत्ताधारी संगठन रहा, वहीं मुख्य रूप से दूसरा कारण इसके भीतर के मतभेद थे। 

एम.क्यू.एम. (पी.) के प्रमुख फारूक सत्तार ने नवजात गठबंधन के निधन की घोषणा वीरवार शाम को की। इससे महज एक दिन पहले सत्तार तथा पी.एस.पी. प्रमुख मुस्तफा कमाल ने सबको हैरान करते हुए बड़े जोशो-खरोश से इस ‘निकाह’ की घोषणा की थी। हालांकि फारूक सत्तार ने तो केवल पी.एस.पी. के साथ गठबंधन की ही घोषणा की थी, मुस्तफा कमाल इस बात पर जोर देते रहे कि यह दोनों पार्टियों का विलय है। उनके अनुसार नई पार्टी नए नाम, नए घोषणा पत्र तथा नए चुनाव चिन्ह के साथ आने वाले आम चुनाव लड़ेगी। यह सुनने में तो बहुत अच्छा लगता है मगर एम.क्यू.एम. (पी.) कैसे कलम की एक चोट से अपनी मुहाजिर पहचान गंवा सकती थी? 

एम.क्यू.एम. का गठन मूल रूप से मुहाजिर कौमी मूवमैंट के नाम से हुआ था। यद्यपि इसके प्रमुख अल्ताफ हुसैन ने 1997 में चतुराई के साथ इसके नाम से मुहाजिर शब्द को हटाकर उसकी जगह मुत्ताहिदा शब्द जोड़ दिया, जिससे उसका संक्षेप नाम एम.क्यू.एम. ही बना रहा। एम.क्यू.एम. का वोट बैंक शहरी सिंध क्षेत्र में है। इसने राष्ट्रीय स्तर पर खुद को संगठित करने के लिए आधे अधूरे मन से कोशिश की या गैर-मुहाजिर वोटों के लिए आह्वान किया। इसीलिए यह और भी हैरानीजनक था कि एम.क्यू.एम. (पी.) ने आखिरकार अपनी जातीय पहचान छोड़कर राष्ट्रीय राजनीति में कूदने का निर्णय किया। हालांकि पी.एस.पी. प्रमुख इसके विपरीत दावे करते रहे। उनके अनुसार पी.एस.पी. राष्ट्रीय राजनीति में विश्वास करती है और गठबंधन के पीछे उसका उद्देश्य इसे हासिल करना था। यदि फारूक सत्तार अपनी कार्रवाई को लेकर गंभीर थे तो शीघ्र ही उन्हें अत्यंत विपरीत प्रतिक्रिया के माध्यम से अचंभा मिलने वाला था। 

स्वाभाविक है कि राबता कमेटी (समन्वय समिति) ऐसे किसी ‘निकाह’ के हक में नहीं थी। डा. सत्तार के बगैर जल्दबाजी में बुलाई गई बैठक  में इसने सर्वसम्मति से इस पूरे विचार को खारिज कर दिया। किसी भारतीय सोप ओपेरा के एक अन्य एपिसोड की तरह अपनी ही पार्टी में पूरी तरह से अलग-थलग कर दिए गए रुआंसे सत्तार ने एक प्रैस कांफ्रैंस में न केवल अपने इस्तीफे की घोषणा की बल्कि इससे भी बढ़कर यहां तक कह दिया कि वह राजनीति ही छोड़ रहे हैं। हालांकि देर रात ड्रामे के एक अन्य एपिसोड में अपनी मां तथा पूर्व नेता आमिर खान से घिरे हुए सत्तार ने घोषणा की कि अपनी मां द्वारा मनाए जाने के कारण वह वापसी कर रहे हैं। ऐसा दिखाई देता है कि एम.क्यू.एम. (पी.) लंदन में रहते अपने संस्थापक से अपनी गर्भनाल काटने में असफल रही है। मुहाजिरों के हो रहे शोषण का कार्ड खेलना अभी भी इसका मंत्र बना हुआ है। 

फारूक सत्तार ने अपने विरोधी पी.एस.पी. को शहरी सिंध से बाहर एक भी सीट जीतने की सही चुनौती दी है और यहां तक कह दिया कि अगर वह ऐसा कर पाई तो वह राजनीति छोड़ देंगे। देखा जाए तो पी.एस.पी. भी एक अलग पहचान के साथ मुहाजिर संगठन ही है। एम.क्यू.एम. (पी.) प्रमुख ने मुस्तफा कमाल की आय के स्रोतों पर भी प्रश्न उठाए हैं। उन्होंने पूछा है कि यदि वह 1969 से एक ही घर में रह रहे हैं तो उनके पास कैसे एक भव्य घर तथा बुलेट प्रूफ वाहनों के लिए धन आया?

स्वाभाविक है कि वह उस सामान्य धारणा को ही दोहरा रहे हैं कि पी.एस.पी. का गठन एम.क्यू.एम. (पी.) की कमर तोडऩे के लिए सत्ताधारी संगठन द्वारा किया गया है। एक वर्ष से जरा-सा अधिक समय पहले सिंध के सबसे लंबे समय तक गवर्नर रहे इशरातुल इबाद ने मुझे बताया था कि पी.एस.पी. को एक गमले में उगाया गया है इसलिए कभी भी इसकी जड़ें नहीं बनेंगी। एम.क्यू.एम. के पूर्व नेता को कुछ महीनों बाद हटा दिया गया था और अब वह दुबई में स्थायी निर्वासन में रह रहे हैं। उनके पार्टी अध्यक्ष के साथ अच्छे संबंध नहीं हैं। 

अब प्रश्न यह है कि किन कारणों से एम.क्यू.एम.(पी.) तथा पी.एस.पी. को अचानक अपने रास्ते अलग करने पड़े? फारूक सत्तार जोरदार तरीके से मुस्तफा कमाल के इन दावों का खंडन करते हैं कि पर्दे के पीछे की गई बातचीत के मुताबिक विलय 6 महीनों से अधिक चलता। सत्तार के करीबी सूत्रों के हवाले से कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि वीरवार की रात को डी.एच.ए. कराची में हुई एक बैठक में ‘कुछ लोगों’ की ओर से उन्हें अत्यंत दबाव का सामना करना पड़ा। उनसे कहा गया था कि वह पी.एस.पी. के साथ गठबंधन करें और उसके बाद एम.क्यू.एम. (पी.) को तोड़ दें। रिपोर्ट में जिस सूत्र का हवाला दिया गया है संभवत: वह खुद एम.क्यू.एम. (पी.) प्रमुख हैं जो कुछ स्वाभाविक कारणों से अपना नाम उजागर करना नहीं चाहते।

उसी रिपोर्ट के अनुसार, उन्हें चेतावनी दी गई थी कि जैसा कहा जा रहा है, वैसा करें, नहीं तो गिरफ्तारी के लिए तैयार रहें।  उन्हें कथित रूप से यह भी धमकी दी गई थी कि यदि वह अपनी पार्टी को खत्म नहीं करते तो उसे एक प्रतिबंधित संगठन घोषित कर दिया जाएगा। यदि देश के एक सम्मानित समाचार पत्र में छापी गई इस रिपोर्ट में कुछ सच्चाई भी है तो यह इस्लामिक गणतंत्र में राजनीति की स्थिति के बारे में काफी कुछ कहती है। क्यों नहीं तथाकथित राजनीतिक इंजीनियर वे काम करते जिनके लिए उन्हें वोट दी गई है और राजनीति को राजनीतिज्ञों के लिए छोड़ देते। यदि ‘कुछ लोगों’ बारे रिपोर्ट सही भी है तो यह समझ आता है कि खैबर पख्तूनख्वाह तथा बलोचिस्तान में भी धर्म आधारित दक्षिण पंथी पार्टियों का मुशर्रफ काल की तरह पुनर्गठन किसी भी समय हो सकता है। तो क्या हम उसी दिशा में जा रहे हैं जैसा कि तानाशाही के वर्षों में था।-आरिफ निजामी

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