मंदिर से अधिक, श्री राम के आदर्शों का पालन महत्वपूर्ण

punjabkesari.in Thursday, Jan 18, 2024 - 06:48 AM (IST)

चूंकि इन दिनों टैलीविजन चैनलों के पास अयोध्या में नए राम मंदिर की निर्धारित प्राण-प्रतिष्ठा की तैयारियों या राजनीतिक निहितार्थों के अलावा दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है, लेकिन यह प्रतिबिंबित करने का भी समय है कि हमारा समाज किस ओर जा रहा है। 

यह विचार अखबारों में एक खास दिन की सुर्खियों से उपजा था जो समाज में बढ़ती हिंसा और असहिष्णुता की प्रवृत्ति की ओर इशारा करता था। जाहिर तौर पर जहां ध्यान भगवान राम के जन्मस्थान पर मंदिर के निर्माण पर है, वहीं समाज में मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जीवन से सबक लेने की प्रवृत्ति कम हो रही है। उनके सिद्धांतों और उनके आदर्शों, जिनका हर किसी को पालन करना चाहिए, को तेजी से नजरअंदाज किया जा रहा है या यहां तक कि खारिज कर दिया गया है क्योंकि हमारे समाज में हिंसा और असहिष्णुता में तेज वृद्धि देखी जा रही है। भगवान राम द्वारा दिखाए गए धैर्य और स्वीकार्यता की भावना ऐसे गुण हैं जिनकी आज समाज को सबसे अधिक आवश्यकता है, लेकिन दुख की बात है कि इनका अभाव है। धार्मिक नेताओं या अन्य शिक्षकों द्वारा बच्चों और युवाओं में ऐसे मूल्यों को विकसित करने के लिए बहुत कम प्रयास किए जा रहे हैं। 

अखबार की सुर्खियों में से एक कर्नाटक के एक होटल के कमरे में एक जोड़े-एक हिंदू लड़के और एक मुस्लिम लड़की-पर हमले से संबंधित थी। पुरुषों का एक समूह होटल के एक कमरे में घुस गया। उन्होंने लड़के की पिटाई की और महिला के साथ सामूहिक बलात्कार किया। उन्होंने इस शर्मनाक घटना का वीडियो भी बनाया और इंटरनैट पर प्रसारित कर दिया। एक दिन पहले, इसी राज्य के बेलगावी में एक सार्वजनिक पार्क में एक जोड़े को अंतरधार्मिक जोड़ा होने के संदेह में निशाना बनाया गया था।

एक अन्य शीर्षक तलाक की कार्रवाई से गुजर रही एक सुशिक्षित महिला से संबंधित था जिसने अपने 4 साल के बेटे को मार डाला क्योंकि वह बेटे को अपने से अलग हो रहे पति को सौंपना बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। उसने गोवा के एक होटल में उसकी गला दबाकर हत्या कर दी और उसके शव को एक सूटकेस में बंद कर दिया, लेकिन उसका पीछा करने पर उसे पकड़ लिया गया। तब मणिपुर में मारे गए लोगों के शवों की बरामदगी के अलावा बलात्कार और हत्याओं से संबंधित सुर्खियां थीं। 8 महीने से अधिक समय से उथल-पुथल वाले राज्य मणिपुर से केंद्र ने मुख्य रूप से अपनी आंखें मूंद लीं क्योंकि यह एक भाजपा शासित राज्य है।

सोशल मीडिया पर हाल ही में वायरल हुआ एक वीडियो जिसमें एक युवक एक बुजुर्ग व्यक्ति को लगातार थप्पड़ मारता दिख रहा है, यह हमारे समाज के तेजी से बीमार होने का एक और उदाहरण है। जिस बुजुर्ग व्यक्ति से यह स्वीकार करने के लिए कहा गया कि उसका नाम मोहम्मद है, गंभीर पिटाई के बाद अंतत: उसकी मृत्यु हो गई। बाद में पता चला कि मृतक हिंदू था और असल में मानसिक बीमारी से पीड़ित था। वह समझ नहीं पा रहा था कि उसका हमलावर उससे  क्या जानना चाह रहा था। 

समान रूप से परेशान करने वाली बात यह है कि कोई व्यक्ति एक बुजुर्ग, मानसिक रूप से अस्थिर व्यक्ति पर शैतान को हावी होने से रोकने की बजाय वीडियो शूट कर रहा था। जाहिर तौर पर कानून के डर के बिना सार्वजनिक रूप से पीट-पीटकर हत्या करने के कई अन्य मामले भी सामने आए हैं। रोड रेज के मामले भी तेजी से बढ़ रहे हैं। ये सभी घटनाएं दर्शाती हैं कि हम एक समाज के रूप में उन लोगों के प्रति अधिक असहिष्णु होते जा रहे हैं जो विपरीत दृष्टिकोण रखते हैं या यहां तक कि जो लोग अलग आस्था रखते हैं। 

सरकारों द्वारा आलोचना के प्रति बढ़ती असहिष्णुता की प्रवृत्ति आम आदमी और व्यक्तियों तक में घर कर रही है। हाल के दिनों में ‘सतर्कता समूहों’ द्वारा किसी भी व्यक्ति के खिलाफ बड़े पैमाने पर अपमानजनक अभियान शुरू करने के लिए लगातार अभियान चलाया गया है, जिसे वे ‘राष्ट्र-विरोधी’ मानते हैं। यहां तक कि प्रसिद्ध लेखक और इस प्रवृत्ति की आलोचना करने वाली अन्य हस्तियां भी लोकतंत्र के स्व-नियुक्त अभिभावकों का आसान निशाना बन जाती हैं। दुर्भाग्य से उन्हें राष्ट्रवाद और देशभक्ति में कोई अंतर नहीं दिखता। उनके लिए सत्ता प्रतिष्ठान या नीतियों की कोई भी आलोचना देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा बन जाती है। जो कोई भी उनकी विचार प्रक्रिया पर सवाल उठाता है, वह राष्ट्र-विरोधी होने के योग्य है। 

लेखकों को न केवल ‘बिकाऊ’ कहा जाता है, बल्कि उन्हें गालियां भी दी जाती हैं। कभी-कभी चिन्हित लेखकों की गैर-विवादास्पद टिप्पणियों को भी तोड़-मरोड़ कर पेश किया जाता है। वास्तव में यह विडंबनापूर्ण है कि जहां ध्यान राम मंदिर के निर्माण पर है, वहीं समाज का पतन हो रहा है और उन मूल्यों और नैतिकताओं को विकसित करने के लिए बहुत कम प्रयास किए जा रहे हैं जिनके लिए भगवान राम पूजनीय हैं।-विपिन पब्बी     
 


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