नैतिकता हो विद्यार्थी जीवन का आधार

punjabkesari.in Thursday, Nov 11, 2021 - 03:49 AM (IST)

जिस व्यक्ति के जीवन में नैतिकता नहीं, उस व्यक्ति का जीवन नेत्रहीन व्यक्ति के लिए दर्पण जैसा है। आधुनिक युग के मिजाज में हम अपनी संस्कृति, सभ्यता और नैतिकता को भूलते ही जा रहे हैं, जबकि शिष्टाचार व नैतिकता हमारे जीवन में एक अहम भूमिका निभाते हैं। नैतिकता के खिलाफ किसी भी विषय को लेकर आज का समझदार व्यक्ति पूरा दोष आज की युवा पीढ़ी पर डालकर अपना पल्ला झाड़ लेता है। 

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस दौर के ज्यादातर लोग नैतिकता पर बात करना ही नहीं चाहते। यह सच है कि हमारे घर-परिवार और समाज में बड़े-बुजुर्ग नैतिकता पर भाषण व अनेक उपदेश देते नजर आते हैं, किंतु आधुनिक संस्कृति में रंगा हुआ मानव नैतिकता की बातों को अव्यावहारिक और पाखंड कह कर नकार देता है। यहां तक कि यदि दोस्तों की महफिल में कोई नैतिकता की बातें करता है तो उसे महाज्ञानी कहकर उसका मजाक उड़ाया जाता है, उसे पाखंडी कहकर उसकी हंसी उड़ाई जाती है। 

यह चिंता का विषय है कि आज की युवा पीढ़ी में नैतिकता व शिष्टाचार की कमी दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। लेकिन सवाल यह भी है कि क्या सिर्फ युवा पीढ़ी को दोषी ठहरा कर हमारी जिम्मेदारी पूरी हो जाती है? क्या हम युवा पीढ़ी के लिए अपना कत्र्तव्य ईमानदारी से निभा रहे हैं? क्या सारी कमियां युवा पीढ़ी में ही हैं? 

मुझे नहीं लगता कि आज की युवा पीढ़ी ही सिर्फ इसकी जिम्मेदार है। आज अगर युवाओं में नैतिकता व शिष्टाचार की कमी आ रही है तो उसका कारण सिर्फ और सिर्फ हम ही हैं। आखिर क्यों हम उनमें अच्छे संस्कार, नैतिकता और शिष्टाचार नहीं भर पा रहे। यह एक चिंताजनक विषय है, बल्कि बच्चों का अनैतिक होना हमारी कमजोरी है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जब हम छोटे थे तब हमारे बचपन में बुजुर्ग दादा-दादी, नाना-नानी हमें अनेक तरह की शिक्षाप्रद कहानियां सुनाया करते थे और हमें उन कहानियों के अनुसार आचरण करने को कहा जाता था। 

यह माना जाता है कि जब बच्चा छोटा होता है तो उसका दिमाग शून्य होता है। उस समय आप उसे जिस प्रकार की शिक्षा व संस्कार देंगे, वह उसी राह पर चलेगा। अगर बाल्यावस्था में बच्चे को यह सिखाया जाए कि चोरी करना बुरी बात है तो वह चोरी जैसी हरकत करने से पहले सौ बार सोचेगा। छोटी उम्र में बच्चों को अच्छे संस्कार देने में माता-पिता, दादा-दादी व बड़े-बुजुर्गों का बड़ा योगदान होता है। 

हम नैतिकता को अपने से बाहर खोजते रहते हैं लेकिन वह तो हमारे भीतर समाई हुई है। यदि हम सब यह समझ लेंगे तो हमें इसे बाहर खोजने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। सभी धर्मग्रंथों का मुख्य उद्देश्य मनुष्य के अंदर नैतिक गुणों का विकास करना है ताकि वह मानवता और खुद को सही राह पर ले जा सके। एक बच्चे को बचपन से ही विद्यालय व परिवार द्वारा नैतिक मूल्यों से अवगत करा दिया जाता है। जैसे-जैसे उसकी उम्र व शिक्षा का स्तर बढ़ता जाता है, उसके नैतिक मूल्यों में विस्तार होना भी आवश्यक हो जाता है। ये नैतिक मूल्य उसे सिखाते हैं कि उसे समाज में, बड़ों के साथ, अपने मित्रों के साथ व दूसरे लोगों के साथ कैसे व्यवहार करना चाहिए। 

जिस देश का विद्यार्थी नैतिक मूल्यों से दूर होगा, उस देश का कभी भी विकास नहीं हो सकता। लेकिन दुख है कि नैतिकता हमारे जीवन से दूर होती जा रही है। हमारी शिक्षा व्यवस्था में नैतिक शिक्षा को अनिवार्यता नहीं दी जा रही, जिस कारण बच्चे नैतिकता से अनजान होकर चोरी, डकैती, हत्याएं, धोखाधड़ी, बेईमानी, झूठ तथा बड़ों का अनादर आदि गंदी आदतों में शामिल होकर देश के भविष्य को चुनौती दे रहे हैं। यह समय नैतिकता को लेकर मजाक उड़ाने का नहीं, बल्कि उसे बचाने का है। हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी भी बनती है कि समय रहते ही बच्चों को अच्छे संस्कारों की शिक्षा दी जाए ताकि हमारा भविष्य उज्जवल हो और राष्ट्र एक बार फिर से विश्वगुरु के सम्मान का अधिकारी बने।  ‘नैतिकता’ मात्र एक कल्पना नहीं, एक व्यवहार है, जो परवरिश के अनुसार हमारे आचरण में झलकता है।-प्रि. डा. मोहन लाल शर्मा


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