राजनीतिक और विचारधारक क्षेत्र में आई नैतिक गिरावट
punjabkesari.in Thursday, Aug 01, 2024 - 05:44 AM (IST)
आजादी के बाद भारत ने अर्थव्यवस्था और विज्ञान के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। सभी सरकारों ने अपनी बुद्धि और नीति के अनुसार इस विकास में भाग लिया है और इस आर्थिक विकास से पूरे देश को लाभ भी हुआ है। इस विकास के फलस्वरूप हमारे समाज में एक सशक्त मध्यम वर्ग का उदय हुआ है। पूंजी संचय के मामले में अधिकांश लाभ देश के बंटे हुए पूंजीपतियों, सामंतों और शाही बहुराष्ट्रीय निगमों को हुआ है। लेकिन आज देश के राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में जो कुछ हो रहा है वह काफी चिंताजनक और भयावह है।
इस सारी घटना के तार आर.एस.एस. से जुड़े हैं लेकिन 2014 के बाद से संघ ने जिस तेजी से खुलेआम सांप्रदायिकता, हिंसा, नफरत और असहिष्णुता का प्रचार किया है, वह देश के लोगों के लिए संभावित रूप से बड़ा खतरा है। यह सत्य है कि आतंकवादी और सांप्रदायिक ङ्क्षहसक तत्व, जो पूरे समाज के लिए बड़ा खतरा हैं, सभी धर्मों और समुदायों में मौजूद हैं। जिस प्रकार कई साम्प्रदायिक विवादों में मुस्लिम समुदाय के शरारती लोगों का हाथ देखा जाता है, उसी प्रकार कई अन्य विवादों और हिंसक घटनाओं में कुछ हिंदू संगठनों की भागीदारी भी देखी जा सकती है।
पंजाब में आतंक के दौर में आतंकवादी तत्व पंजाब की भूमि के ही निवासी थे। इसलिए, किसी भी विशेष धर्म या समुदाय को समग्र रूप से आतंकवादियों के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए। हालांकि 2014 के बाद से मोदी सरकार और संघ परिवार द्वारा एक विशेष धार्मिक अल्पसंख्यक को निशाना बनाया गया है और बड़ी संख्या में शहरों, सड़कों और स्टेशनों का नाम बदल दिया गया है, जो मुस्लिम समुदाय की पहचान से जुड़े थे। मुसलमानों के धार्मिक स्थलों को इसलिए तोड़ा जा रहा है क्योंकि संघ से जुड़े लोग दावा कर रहे हैं कि ये स्थान मुगल बादशाहों ने हिंदुओं के धार्मिक स्थलों को तोड़कर बनाए थे।
लव-जिहाद, गौहत्या और हिंदू कार्यक्रमों में बाधा डालने जैसे झूठे बहानों के तहत सैंकड़ों मुसलमानों को मार दिया गया या जेल में डाल दिया गया। संघ परिवार के कट्टरपंथी गिरोह हिंसा का डर दिखाकर मुसलमानों को हिंदू आबादी वाले इलाकों में संपत्ति खरीदने, मकान किराए पर लेने और व्यापार करने से रोक रहे हैं। वर्तमान स्थिति पर विचार करने से पहले हमें श्री गुरु नानक देव जी के उदासी में जाते समय भाई मरदाना को अपना साथी बनाने के सुंदर विचार को समझना होगा।
गुरु गोबिंद सिंह जी के नेतृत्व में लड़े गए भंगानी के युद्ध में पीर बुद्धू शाह और उनके 4 पुत्रों की शहादत भी उन लोगों की गौरवपूर्ण कहानी है जिन्होंने मुस्लिम समुदाय के दमनकारी शासन के खिलाफ लड़ते हुए अपनी जान गंवा दी। शहीद ऊधम सिंह ने जब इंगलैंड में सर माइकल ओ’डायर को गोली मारी तो उन्होंने अपना नाम ‘राम मोहम्मद सिंह आजाद’ रख लिया क्योंकि गोरे शासकों के सामने झुकने वाले देश के हिंदू, सिख और मुसलमान न केवल पूरी तरह एकजुट थे, बल्कि हथियारबंद थे। वे एक साथ बांहों में बांहें डालकर फांसी के तख्ते पर झूल गए।
यह प्रेम पहले भी एकतरफा नहीं था और आज भी नहीं है। हिन्दू समाज ने भी मुसलमानों को हर क्षेत्र में अपनाया है और भाईचारे का मार्ग प्रशस्त किया है। 1947 के दंगों में जब साम्प्रदायिकता का रंग धारण करने वाले लोग हिंदुओं, मुसलमानों और सिखों को मार रहे थे, तब दोनों तरफ के ‘भाई कन्हैया’ के अनुयायी सभी प्यासे लोगों को अपना मानते थे। हिंदुस्तान की ओर से हिंदुओं द्वारा हजारों मुसलमानों की हत्याओं को हिंदुओं और सिखों ने रोका और वही नेक काम पाकिस्तान की धरती पर कई मुस्लिम भाइयों ने किया।
अमृतसर के हॉल बाजार में घटी इतिहास की अनोखी और अद्भुत घटना आज संकीर्ण सोच वालों के लिए एक दर्पण के रूप में काम करती है। जब गुंडे और दंगाई गिरोह मुस्लिम महिलाओं को निर्वस्त्र कर हॉल बाजार में घुमाने की कोशिश कर रहे थे तो महान देशभक्त ज्ञानी गुरमुख सिंह मुसाफिर की बेटी ने एक करीबी रिश्तेदार को देखा जो दंगा कर रहा था और उसने चुनौती देते हुए कहा कि ‘अगर आप इन मुस्लिम महिलाओं के साथ ऐसे भद्दे मजाक करना बंद नहीं करेंगे तो मैं भी अपने सारे कपड़े उतारकर उनके साथ शामिल हो जाऊंगी।’
कॉमरेड गेहल सिंह छज्जलवड्डी को कुछ सिख साम्प्रदायिक कट्टरपंथियों ने आग की भट्ठी में जिंदा फैंक कर शहीद कर दिया क्योंकि वह दंगाइयों को निर्दोष मुसलमानों की हत्या करने से रोक रहे थे। यह अफसोस की बात है कि वर्ष 1919 में रामनवमी के पवित्र त्यौहार के अवसर पर अमृतसर की हॉल मार्कीट में 21 मुस्लिम युवाओं के नेतृत्व में धार्मिक जलूस की गौरवशाली विरासत को उन लोगों द्वारा भुलाने की कोशिश की जा रही है जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में कोई हिस्सा नहीं लिया (बल्कि ब्रिटिश साम्राज्य के लिए काम किया), और कभी भी श्रमिकों, किसानों और अन्य मेहनती लोगों के अधिकारों के लिए सच्ची लड़ाई नहीं लड़ी।
15 अगस्त, 1947 को भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू, जो लाल किले की प्राचीर पर झंडा फहराने जा रहे थे, का नेतृत्व विश्व प्रसिद्ध शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान ने किया था। आज 77 साल बाद, भारत के शासकों द्वारा महान संगीतकार से संबंधित पूरे समुदाय को अपनी पहचान दिखाने के लिए, उनके द्वारा लाए गए फलों और सब्जियों की दुकानों पर उनके नाम के बोर्ड लगाने के आदेश दिए जा रहे हैं।
राज्य के प्राकृतिक आपदा बचाव संगठन के एक कर्मचारी अशाक अली द्वारा अपनी जान जोखिम में डालकर हरिद्वार में हरि की पौड़ी में स्नान करते समय पानी के तेज बहाव में बह गए 5 कांवडिय़ों को बचाने की घटना इतिहास के स्वर्णिम पन्नों पर अंकित है। 15 अगस्त, 1947 और 15 अगस्त, 2024 के बीच का अंतर वर्षों में नहीं, बल्कि राजनीतिक और वैचारिक क्षेत्र में नैतिक गिरावट के संदर्भ में मापा जाना चाहिए। -मंगत राम पासला