रंगीन मिजाज था मोहम्मद शाह रंगीला

punjabkesari.in Sunday, Sep 01, 2024 - 05:05 AM (IST)

मुगलिया सल्तनत के चश्मो चिराग और शाहजहां के लखते जिगर बड़े अजीबो-गरीब मिजाज और हैरतअंगेज हरकतें  करने वाला बादशाह मोहम्मद शाह रंगीला हुआ है। उसका  पूरा नाम अबु-अल-फतह रोशन अख्तर नसीरुद्दीन मोहम्मद शाह था। हुस्नों जमाल, ऐशो इशरत और शराब नोशी के कारण उसे रंगीला कहा जाने लगा। हवस परस्ती में उसका कोई सानी न था। वह एक खूबसूरत नौजवान था। सैयद बंधुओं ने उसे 17 वर्ष की आयु में तख्ते ताऊस पर बैठा दिया।

वह न ही दीनी और न ही  दुनियावी इलम से वाकिफ था। न ही उसे कोई प्रशासन का तजुर्बा था। 1722 तक उसने अपने पर अंकुश लगाने वाले सैयद भाइयों से छुटकारा पा लिया और पूरी तरह एक निरंकुश बादशाह बन गया। गद्दीनशीन होते ही उसने हुक्म जारी किया कि देश की सभी हुस्न बानों पर केवल बादशाह का अधिकार है। लोगों ने अपनी बहू-बेटियों को सुरक्षित रखने के लिए बुर्के पहनवा दिए। यहां तक कि घर में भी महिलाएं बुर्के में रहने लगीं। लोग अपनी खूबसूरत बेटियों को छिपा-छिपा कर रखने लगे। वह घाघरा, चोली और पांव में घुंघरू डाल कर दरबार में नाचने वाला तथा तख्त पर बैठने वाला पहला और आखिरी मुगल बादशाह था।

एक रोज वह अल्फ नंगा होकर दरबार में आ गया। सभी लोग आश्चर्य में पड़ गए पर बेबस वजीर कुछ न बोल सके। कई बार वह हुक्म देता कि जेल में बंद सब कैदियों को रिहा कर दिया जाए और फिर कुछ दिनों के बाद नया हुक्म जारी करता कि जितने कैदियों को छोड़ा गया है उतने ही लोगों को पकड़कर जेल में डाल दिया जाए। उसने अपने शाही घोड़े को दरबारे खास में लाकर मंत्री की उपाधि से सुसज्जित कर दिया और हुक्म दिया कि घोड़े की हुक्म हदूली करने वाले को सख्त सजा दी जाएगी। मंत्रियों को गिरगिट के रंग बदलने से पहले ही बदल देता था।

एक बार वह अपने साथ नाचिया, गोलिया, लोडिया, बाधिया और तवायफों को साथ लेकर दरबार में आ गया और उनके साथ बैठकर हुक्म जारी करने लगा। वह 24 घंटे शराब के नशे में धुत्त रहता था यहां तक कि वुजु भी शराब से ही करता था। वह रोजमर्रा बटेरों और हाथियों की लड़ाई देखता, फरियादियों की फरियाद सुनता, बाजीगरों, नट, नकलचियों के जुमलों से आनंद उठाता। वजीर और उलेमा उसकी इन असभ्य हरकतों को देखने के सिवा कर भी क्या सकते थे क्योंकि वह सब उनके वेतनधारी थे।

कमियों, कमजोरियों और बदगुमानियों के बावजूद उसने औरंगजेबी इस्लामिक कट्टरवाद को तिलांजलि देकर नए युग का आगाज किया। उसने शाही दरबार में फारसी के स्थान पर उर्दू भाषा का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे उर्दू लश्करी भाषा से जनसाधारण की भाषा बन गई और इस भाषा के बड़े-बड़े प्रसिद्ध शायर भी हुए। उसने नृत्य, संगीत, चित्रकला  और  साहित्य  को  भी  प्रफुल्लित  किया। उसके दरबार में अदारंग और सदारंग बड़े नामवर संगीतकार थे।

निदामन और चित्रमन नामवर चित्रकार भी थे। तुॢकश लिबास को त्याग कर शेरवानी, चूड़ीदार पाजामा और सिर पर टोपी पहनने की एक नई संस्कृति की शुरूआत हुई और आज भी भारत के कई नेता इस लिबास में नजर आते हैं। उसकी बेवकूफियों  के कारण  बंगाल, अवध, दक्षिण, पंजाब और काबुल मुगलों के हाथ से निकल गए। इन परिस्थितियों का फायदा उठाते हुए नादिरशाह ने 1739 में भारत पर चढ़ाई कर दी। उसका मुकाबला करने के लिए मोहम्मद शाह रंगीला अपने साथ फौज के साथ-साथ बावरचियों, संगीतकारों, कुलियों सेवकों, कर्मचारियों, नर्तकियों, नकलचियों तथा अन्य लोगों को  ले गया और करनाल के नजदीक पता लगा कि बड़ी तोपें लाल किले में ही रह गईं।  

करनाल की लड़ाई में नादिरशाह जीत गया और उसने दिल्ली पर कब्जा कर लिया। नादिरशाह ने दिल्ली में इतना कत्लेआम किया कि कई स्थानों पर लाशों के ढेर लग गए। नादिरशाह ने तख्ते ताऊस, कोहिनूर, दरिया नूर हीरे-मोती और मुगल बादशाहों द्वारा करीब 200 वर्षों से इकट्ठा किया गया धन तथा 55 हजार हाथी, घोड़े, गधे, पशु, माल से लदी हुई बैल गाडिय़ां हजारों भारतीय महिलाओं को अपने साथ ले गया।हरियाणा में थानेसर के पास जस्सा सिंह आहलूवालिया, जस्सा सिंह रामगढिय़ा और बाबा  बघेल सिंह ने उसे लूट लिया और काफी महिलाओं को छुड़ाकर इज्जत से उनको अपने-अपने घरों में पहुंचाया। यह  पूरी लूट 72 करोड़ रुपए की थी परंतु इससे दिल्ली आर्थिक तौर पर पूरी तरह हिल गई।

आज भारत में कई भ्रष्टाचारी नेता नादिरशाह के भी बाप हैं। जिन्होंने  सरकार और लोगों को लूटकर अरबों रुपयों की सम्पत्ति खड़ी की है। भारतीय पहले इन बेमुरव्वत बादशाहों को बर्दाश्त करते रहे और अब भ्रष्टाचारियों, बलात्कारियों और असामाजिक तत्वों को बर्दाश्त कर रहे हैं। राष्ट्र के उज्ज्वल भविष्य के निर्माण के लिए इन तत्वों से निजात पाना अति जरूरी है। -प्रो. दरबारी लाल


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