मोदी का भाषण स्वागतयोग्य परन्तु...

Wednesday, Aug 16, 2017 - 11:47 PM (IST)

2019 में दोबारा चुनाव में उतरने से पहले लाल किले की प्राचीर से अपने अंतिम से पूर्व स्वतंत्रता दिवस उद्बोधन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बहुप्रतीक्षित आशा की किरण प्रस्तुत की है। उन्होंने न केवल कश्मीर के संबंध में अपनी चुप्पी तोड़ी है बल्कि दोस्ती का हाथ भी बढ़ाया है। 

ऐसे करते हुए उन्होंने उन उद्दंड भीड़ों को भी सख्त चेतावनी दी जिन्होंने भारत को ‘हिन्दू राष्ट्र’ बनाने के बहाने कानून को अपने हाथों में लिया हुआ है और अपने रास्ते में ‘रोड़ा’ बनने वाले लोगों को पीट-पीट कर मौत के घाट उतारने में किसी प्रकार का अपराधबोध महसूस नहीं करते। बेशक उनके भाषण में चीन के साथ पैदा हुए तनाव एवं गोरखपुर में बड़ी संख्या में बच्चों की मौत की त्रासदी सहित कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं की अनदेखी की गई, तो भी उनका स्वर उल्लेखनीय हद तक नरम और जमीनी हकीकतों से जुड़ा हुआ था। कथित ‘गौ भक्तों’ को अपने स्पष्ट संकेत में उन्होंने धार्मिक श्रद्धा के नाम पर होने वाली हिंसा की जोरदार शब्दों में ङ्क्षनदा की। उन्होंने कहा कि गांधी और बुद्ध का यह देश ‘आस्था के नाम पर हिंसा’ को कदापि स्वीकार नहीं करेगा। 

उनके द्वारा कश्मीर की परिस्थितियों के उल्लेख स्वागतयोग्य हैं। बहुत सोच-समझ कर उन्होंने लंबे समय तक मौन साधे रखा था। काश! ‘गौरक्षकों’ के संबंध में यही बयान उन्होंने काफी समय पहले दिया होता। उन्होंने कहा  कि कश्मीर समस्या न गाली से हल होगी और न ही गोली से। लेकिन लोगों को मिल बैठकर संवाद रचाने की जरूरत है। हर किसी को मुख्य धारा में शामिल होने का उनका निमंत्रण उनकी अपनी सरकार की उस कठोर नीति से एक अलग रास्ते का संकेत देता है, जिस नीति पर उनकी सरकार कश्मीर में गत अनेक महीनों से चल रही है। मोदी के अभिभाषण में चुनावी अभियान की सभी खूबियां मौजूद हैं। वैसे इसकी एक खास बात यह भी थी कि उन्होंने उन विभिन्न पहलुओं के न केवल खुलासे किए बल्कि टिप्पणियां भी कीं जिनके बारे में उन्होंने खुद व उनकी सरकार ने गोपनीयता का आवरण बनाया हुआ था। नोटबंदी के तात्कालिक और दीर्घकालिक प्रभावों का खुलासा भी इन बातों में शामिल था। 

मोदी ने यह भी खुलासा किया कि नोटबंदी के बाद बैंकों में जमा होने वाला 1.75 लाख करोड़ रुपया तथा 18 लाख लोगों की घोषित आय के अलावा अन्य अज्ञात स्रोतों का भी जांच दौरान पता चला। मोदी ने कहा कि गत नवम्बर में 500 और 1000 के नोटों के विमुद्रीकरण के फलस्वरूप कम से कम 2 लाख करोड़ रुपए का ऐसा धन बैंकिंग तंत्र में आया जिसका किसी आय में खुलासा नहीं किया गया था। इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि नोटबंदी के कारण ही आयकर रिटर्न दाखिल करने वालों की संख्या लगभग दोगुनी होकर 56 लाख पर पहुंच गई है। इसके अलावा 3 लाख ऐसी जाली तथा कागजी कम्पनियों का पता चला जिनको धन शोधन के लिए प्रयुक्त किया जाता था। फिर भी  जितने सवाल मोदी से आप पूछने पसन्द करेंगे उन सभी का इस खुलासे से पर्याप्त मात्रा में उत्तर नहीं मिलता।

पाठकों ने शायद यह संज्ञान लिया होगा कि 3 पूर्व सत्ता में आने के बाद मोदी ने एक भी संवाददाता सम्मेलन न करके एक तरह से कीर्तिमान ही स्थापित किया था। यहां तक कि आम तौर पर ‘मौन’ रहने वाले उनके पूर्ववर्ती डा. मनमोहन सिंह ने भी मोदी से कहीं अधिक संवाददाता सम्मेलनों को संबोधित किया था और अपनी सरकार की योजनाओं और इसके विभिन्न मुद्दों पर स्टैंड के संबंध में प्रश्नों के उत्तर दिए थे। ऐसा आभास होता है कि मोदी के मन में मीडिया के प्रति किसी प्रकार की नफरत है और अब तक उन्होंने केवल आसान सवालों के जवाब देने के लिए ही टी.वी. चैनलों के केवल मित्र भाव रखने वाले एंकरों व मीडिया प्रतिष्ठानों के एक वर्ग को ही अनुगृहीत किया है। 

अब तक मोदी का संवाद मुख्यत: ‘मन की बात’ अथवा रेडियो और टी.वी. उद्बोधनों एवं संसद के अंदर या बाहर उनके भाषणों के रूप में सामने आया है और वह भी एक तरफा है। शायद वह मीडिया के साथ बातचीत करना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं। इन सब बातों के बावजूद भारत की स्वतंत्रता के 70 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में लाल किले की प्राचीर से उनका भाषण अत्यंत स्वागतयोग्य है और यह उम्मीद करनी चाहिए कि उन लोगों को इससे कड़ा संदेश जाएगा जो दूसरों के वाहनों की तलाशी लेना और कथित रूप में हत्या के लिए गऊओं को ले जाने की लेशमात्र आशंका होने पर वाहन मालिकों, चालकों तथा पशु व्यापारियों की हत्या करना अपना जन्म सिद्ध अधिकार समझते हैं। 

मोदी ने ये बातें कितने सच्चे मन से कहीं हैं, इनकी परीक्षा इस बात से होगी कि क्या वह अपने 3 वर्षों के शासन दौरान ऐसे अपराध करने वाले लोगों को ऐसी सजा देंगे जिससे दूसरों को कान हो जाएं? उन्हें उन लोगों के विरुद्ध भी कड़ी कार्रवाई करनी होगी जिनकी लापरवाही के कारण गोरखपुर में बच्चे मौत के मुंह में गए हैं। इसके अलावा देश में बिगड़ रही अमन-कानून की स्थिति से भी निपटना होगा। चंडीगढ़ में स्वतंत्रता दिवस के जश्नों में हिस्सा लेने के लिए अपने स्कूल जा रही एक छात्रा के साथ दुष्कर्म इस बात का कड़वा स्मरण करवाता है कि सरकार को अपनी गत 3 वर्ष की उपलब्धियों के बावजूद अभी कितना लंबा सफर तय करना है। सरकार किसी भी कीमत पर अपनी चौकसी में कमी करना गवारा नहीं कर सकती और इसे हर हालत में राष्ट्र को आगे ले जाने के लिए उल्लेखनीय कदम उठाने होंगे।    

Advertising